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वंशवाद : नेताजी का विकास प्रतिमान

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बांके बिहारी साव
11 जनवरी 2025

नेताजी (Netaji) का विकास प्रतिमान… यानी नेता जी के विकास का रिकार्ड…तरक्की किसको कहते हैं- यह नेता जी को देख कर आप समझ सकते हैं. कभी उनके गंदे कपड़ों को देख लोग नाक -भौं सिकोड़ते थे. आज उनकी चमक देखकर लोगों की आंखें चौंधिया जाती हैं. सब तरह की लग्जरी गाड़ियां…,परिवार के प्रत्येक सदस्य के लिए अलग-अलग ड्राईवर…,पत्नी के लिए अलग सेविका… बेटी के लिए अलग… बेटा तो एकदम प्रिंस… उसे स्वयं को प्रिंस समझना भी चाहिये. क्योंकि वह जानता है कि नेताजी की मौत के बाद उसे टिकट मिलेगा ही. आखिर सहानुभूति वोट भी तो कोई चीज हैं. उस पर जाति बाहुल्य क्षेत्र… नेताजी की खूबसूरत बीवी भी दो टर्म से विधायक (MLA) हैं. उन्होंने बेटे के लिए दूसरे जातिवादी क्षेत्र से कोशिश की, लेकिन उनकी नहीं चली. आश्वासन मिला कि इस बार यदि दूसरे क्षेत्र का उम्मीदवार हार जायेगा, तो उनके बेटे को अवश्य टिकट मिलेगा. सो, नेताजी अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार को हराने में लग गये.

फल-फूल रहा है सब जगह

पार्टी कोई हो, वंशवाद (Vanshavad) सब जगह फल-फूल रहा है. एक नेता तो खुद राज्य सभा (Rajya Sabha) में थे. फिर भी उन्होंने बेटे को लोक सभा (Lok Sabha) का टिकट दिलवा जीता दिया. नेता दलित हो या ऊंची जाति का… सब की मंशा यही रहती है कि उसका सम्पूर्ण परिवार राजनीति (Politics) में ही सेट करे. क्योंकि यहां इज्जत भी है, पावर भी है और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण राजनीति में होनेवाली कमाई है. एक नेताजी स्वयं केन्द्र में मंत्री हैं तो बेटा स्टेट में मंत्री. अब तो पतोहू को भी एमएलए बनवा दिये हैं. यही सब नेता मंच पर जनतंत्र (democracy) जिंदाबाद के नारे लगाते हैं, लेकिन वंशवाद को बढ़ावा देकर जनतंत्र की जड़ों में मट्ठा डाल रहे हैं. कई-कई वंश तो अयोग्य होकर भी बाप-दादा के नाम पर पार्टी के शीर्ष पर बैठ कर जनतंत्र को चुनौती दे रहे हैं.

मन समेटकर बैठ गयी

मनमोहिनी यही सब सोच कर चिन्तित थी. मन नहीं माना तो चरित्तर चाचा को फोन किया. चरित्तर चाचा ने भी चिन्तित होकर पूछा-
‘कोई विशेष बात है क्या बेटी…? ‘मैं तो कल आ ही रहा हूं.’
‘ठीक है, आराम से आइये.’
‘नहीं बेटी… मैं आज ही आ रहा हूं. वैसे भी अकेली रहने से तुम्हारा मन घबड़ा रहा होगा. गांव में अब कोई काम नहीं है. मैं आज ही बस पकड़ रहा हूं. तीन-चार घंटे में पहुंच जाऊंगा.’
‘ठीक है चाचा….!’ कह कर मनमोहिनी मन समेट कर बैठ गयी.
इधर चरित्तर चाचा ने अपनी मंडली को फोन कर अपने आने का समय बता दिया.

सत्ता सुख के लोभ में

शाम के करीब छह बजे चाचा के पहुंचते ही खखरू चाचा, लूटन चाचा और झगड़ू भैया भी पहुंच गये. इन सभी को देखकर मनमोहिनी की उदासी थोड़ी दूर हो गयी. उनलोगों के बैठते ही मनमोहिनी तुरंत चाय लेकर आ गयी. चाय पीते हुए चरित्तर चाचा ने मनमोहिनी से पूछा-
‘क्या बात है बेटी…? तुमने फोन करके मुझे चिंता में डाल दिया.’
‘कुछ नहीं चाचा जी…! मैं कई दिनों से सोच रही हूं कि अपने देश में जनतंत्र मजबूत हो रहा है या सत्ता-सुख के लोभ में वंशवाद इसकी जड़ों को धीरे-धीरे काट रहा है. नेता दलित हो या उच्च जाति का- सभी अपनी औलादों को ही स्थापित करने में लगे हैं.’
‘वंशवाद का विरोध कर आनेवाली पार्टियां भी तो यही कर रही हैं. वैसे भी सब गलतियां पार्टी की नहीं, जनता की है. आखिर अपने नेता के पापों को जानने के बाद भी वह उसकी औलादों को क्यों वोट देती है..?
‘इसका तो कोई जवाब ही नहीं है भैया…? खखरू चाचा ने इस बार अपना मुंह खोला. ‘ मैं कुछ कहूं…, चरित्तर भैया!’ लूटन चाचा ने परमिशन मांगा.
‘हां… कहो…!’


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याद नहीं है लोगों को

‘देखिये, हमलोगों ने हजारों वर्षों की गुलामी (Gulaami) जब बर्दाश्त कर ली, तो यह वंशवाद क्या चीज है? पहले भी राजा (King) होते थे, आज भी जनतंत्र के राजा हो रहे हैं.’
‘लेकिन, जनतंत्र में राजतंत्र?’ झगडू ने आखिर पूछ ही दिया.
‘राजाओं का सम्मान अभी भी हमारे दिलों पर राज करता है, लूटन.’
‘उनका शोषण, उत्पीड़न और राजाओं की फूट से उपजी गुलामी लोगों को याद नहीं है?’ भगडू ने पूछा.
‘याद…, क्या कहते हो तुम? जिस देश की जनता एक रोटी के लिए अपना धर्म बदल रही हो, उसे अपना शोषण, उत्पीड़न कहां से याद रहेगा? जिन राजाआंें और जमींदारों (Jamindaron) ने जनतंत्र के साथ विश्वासघात किया, समाज की बहू-बेटियों की इज्जत लूटी, आज हम उसी को फिर से राजतंत्र (Rajatantr) का राजा बना रहे हैं.’

एक ही वंश की पांच-पांच पीढ़ियां

‘इतना ही नहीं…, अपने राज्यों को बचानेवाले नेता, राजा और बड़े-बड़े क्रांतिकारियों को पकड़वाकर अंग्रेजों (Angrejon) द्वारा फांसी दिलवाने वाले लोग भी आज हमारे इस जनतंत्र में सत्ता- सुख भोग रहे हैं.’
‘ऐसा होता ही रहेगा. जिस देश में शीर्ष पद पर एक ही वंश की पांच-पांच पीढ़ियां शासन कर रही हों, वह वंशवाद तो चाहेगा ही कि दूसरों का भी वंशवाद आगे बढ़े ताकि उसके वंशवाद के विरुद्ध वातावरण नहीं बने.’
‘आखिर, ऐसा कब तक चलेगा भैया?’
‘जब तक जातिवाद (Jativad) और धर्म (Dharm) का बोलबाला रहेगा.’
‘लेकिन राष्ट्र (Rashtr) की रक्षा भी तो एक महान धर्म है.’ ‘कभी था, लेकिन अब नहीं…. जैसे-जैसे धन की महत्ता बढ़ रही है वैसे-वैसे धर्म की महत्ता घट रही है.’

सबसे बड़ा खतरा

‘खतरा इस बात का है चाचा कि कल यदि वंशवादियों ने अपने सत्ता-सुख के लिए राष्ट्रीय सिद्धांतों को विदेशियों (Videshiyon) के हाथों सौंपकर देश को मानसिक और आर्थिक गुलाम तो बना ही सकते हैं.
‘लेकिन चाचा…, अब तो वंशवाद विदेशियों से भी हाथ मिलाने लगा है जो देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है.’
‘लेकिन, जनता इस बात को कहां समझना चाहती है.’
‘लेकिन चाचा जी…, जब तक हम जागंेगे तब तक तो अंधेरा छा चुका होगा. इससे भी बड़ी बात यह है कि आज की पीढ़ी टार्गेट और पैकेज के पीछे पागल है और ज्यादा कंपनियां विदेशी हैं, तो क्या वे रोटी छोड़कर देश की अस्मिता की रक्षा के लिए बलिदान देंगे?’- मनमोहिनी ने सवाल किया.

पहले वंशवाद फिर परतंत्र…!

‘यह सब समय बतायेगा बेटी…! दुःख की बात तो यह भी है कि पहले हमें विदेशियों से लड़ना पड़ा था, इस बार अपनों से ही लड़ना पड़ेगा’
‘अगर यह लड़ाई नहीं तब…?’
‘तब देश पहले वंशवाद फिर परतंत्र…!’
और फिर चरित्तर चाचा चुप हो गये क्योंकि वह जानते हैं कि यदि देश को अपनी प्रतिष्ठा बचानी होगी तो वह कोई न कोई ऐसा लाल पैदा करेगा जिसे लोग अगुवा मानकर उसका साथ देंगे…, मजबूरी में साथ देंगे क्योंकि अब यहां की जनता फिर से गुलामी पसंद नहीं करेगी.

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