तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

बात बिहार की : मत रहिये मुगालते में… यही है उनकी कार्यशैली

शेयर करें:

विशेष प्रतिनिधि

15 जनवरी 2025

Patna : बिहार (Bihar) में राजकाज कैसे चल रहा है और कौन चला रहा है, यहां उसी की बात की जा रही है. मुख्यमंत्री (Chief Minister) नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की कार्यशैली को लेकर लोगों की सामान्य धारणा जो हो, यह लगभग निर्विवाद है कि वह विकेंद्रीकरण में विश्वास रखते हैं. शासन से लेकर संगठन तक विकेंद्रीकृत है. हां, हरेक केंद्र पर उनकी तीखी नजर रहती है. क्या मजाल कि कोई अपनी मर्जी से कुछ कर ले. तभी तो राजनीति (Politics) के गलियारे में यह चर्चा आम है कि एक के पीछे एक को लगाये रखने का फंडा कैसे काम करता है, उसके बारे में किसी को कुछ सीखना है तो नीतीश कुमार की इस कार्यशैली से सीख ले.

वास्तव में ऐसा है नहीं
विधानसभा (Assembly) में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) समेत विपक्ष के अधिसंख्य नेता कह रहे हैं कि शासन का सारा निर्णय एक रिटायर आईएएस अधिकारी IAS officer) अपनी मर्जी से कर लेते हैं. खुले तौर पर रिटायर आईएएस अधिकारी का नाम कोई नहीं लेता है, पर इशारा समझने में किसी का भी ज्यादा दिमाग नहीं खपता है. कहने वाले जो कहें, पर वास्तव में ऐसी बात है नहीं. रिटायर आईएएस अधिकारी को बता दिया गया है कि किसकी बात को वजन देना है और किसको टरका देना है.


ये भी पढ़ें :

एनडीए और बेगूसराय : मटिहानी की मुश्किलें… पार पाना आसान नहीं

नीतीश कुमार: क्या हासिल होगा तब?

देसला लोग, देसला भोज : चाचा ने दिया भतीजा को छोड़!

वंशवाद : नेताजी का विकास प्रतिमान


बेचारे कभी नहीं बोल पाते!
हमेशा अगल-बगल रहने वालों पर भरोसा करें तो नीतीश कुमार के सामने ट्रांसफर-पोस्टिंग (Transfer-Posting) के लिए जितने चीट पूर्जा आते हैं, उसे देने वाले के सामने ही रिटायर आईएएस अधिकारी को थमा दिया जाता है. निर्णय के समय उन्हीं पूर्जों की खोज होती है, जिसे नीतीश कुमार चाहते हैं. स्वाभाविक रूप से जिसका काम नहीं होता है, वह रिटायर आईएएस अफसर को कोसता है. कहता है कि उनकी मनमानी चलती है. इससे थोड़ा आगे बढ़िये, शिकायत मिलने पर पैरवीकार के सामने ही नीतीश कुमार अपने अधिकारी (Officer) से पूछ लेते हैं कि इनका क्या हुआ? पैरवी क्यों नहीं मानी गयी? अधिकारी भी एक तरह के घाघ हैं. बेचारे कभी नहीं बोल पाते हैं कि हुजूर ने ही तो कहा था.

सेठजी और गांधी जी
अब संगठन में देखिये. बोर्ड, निगम, आयोग की मेंबरी, अध्यक्षता आदि से जुड़े जितने आवेदन आते हैं, पैरवी आती है, सब कागज चौधरीजी (Chaudharyji) को थमा दिया जाता है. अब पैरवीकार उनका जीना हराम कर रहे हैं. उधर, आरिजनल लिस्ट गांधीजी (Gandhiji) तैयार करते हैं. अभी तो एकाध आयोग के अध्यक्ष और सदस्य का मनोनयन हुआ है. पूरी सूची निकल जाये, तब पता चलेगा कि चौधरीजी के यहां तो नाहक ही परिक्रमा कर रहे थे. असली देवता का वास तो कहीं और हो रहा था. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कुशवाहाजी हैं. पर, प्रदेश कार्यालय की असली जवाबदेही सेठजी और गांधीजी की है.

यह भी है रणनीति का ही अंग
कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष (Acting National President) की ताकत का पता तो सबको चल ही गया. प्रदेश कमेटी बनी तो उनके कहे जाने वाले अपने लोग कहीं नहीं जगह पा सके. अपनों का दबाव पड़ा. नीतीश कुमार से इज्जत बचाने की गुहार की गयी. तब जाकर कुछ लोगों को पदाधिकारियों की सूची में जगह मिल पायी. पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष के लोगों को भी प्रदेश कमेटी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. उन्हें भी अपने लोगों को बिठाने के लिए नीतीश कुमार के पास ही पैरवी करनी पड़ी. यह सब तो है ही, नीतीश कुमार जो कभी अपने हाव-भाव में बदलाव करते नजर आते हैं, उसे भी रणनीति का ही अंग माना जा रहा है.

#tapmanlive

अपनी राय दें