प्रयागराज महाकुंभ : कुंभ मेलों में है कुछ ज्यादा महत्व
प्रदीप कुमार नायक
10 जनवरी 2025
महाकुंभ को सनातन संस्कृति (Sanatan Sanskrti) का सबसे बड़ा धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है. ऐसी धारणा है कि जो कोई महाकुंभ (Mahakumbh) में पवित्र स्नान कर जप-तप करता है उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं. धर्मशास्त्र के अनुसार कुंभ चार प्रकार के होते हैं. कुंभ, अर्द्ध कुंभ, पूर्ण कुंभ और महाकुंभ. महाकुंभ 144 साल पर लगता है. पूर्ण कुंभ 12 साल और अर्धकुंभ 6 साल पर आयोजित होता है. कुंभ का आयोजन ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है. 144 साल पर लगने वाले पूर्ण महाकुंभ का महत्व बहुत ज्यादा होता है और यह कई दुर्लभ संयोग लेकर आता है.
यह पूर्ण कुंभ है
महाकुंभ धार्मिक और सांस्कृतिक मेला के तौर पर अपने निर्धारित समय पर हरिद्वार (Haridwar), प्रयागराज (Prayagraj), नासिक (Nashik) और उज्जैन (ujjain) में आयोजित हुआ करता है. 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ मेले का आयोजन होगा. यह 13 जनवरी से शुरू होगा और 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन इसका समापन हो जायेगा. यह पूर्ण कुंभ है. शास्त्रों के मुताबिक बृहस्पति जब वृषभ राशि में होते हैं और सूर्य मकर राशि में तब प्रयागराज में महाकुंभ लगता है. बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ मेले का आयोजन होता है.
ये हैं चार पवित्र नगर
प्रयागराज का कुंभ मेला सभी कुंभ मेलों में ज्यादा महत्व रखता है. जानने वाली बात यह भी है कि 1882 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन सिर्फ 20 हजार रुपये में हुआ था. 2025 में इस पर /07 हजार 500 करोड़ रुपये का खर्च आयेगा. कुंभ का अर्थ है कलश. ज्योतिष शास्त्र में कुंभ राशि का भी यही चिह्न होता है. महाकुंभ मेला हर 12 साल में चार प्रमुख नदियों- गंगा (Ganga), यमुना (Yamuna), गोदावरी (Godavari) और शिप्रा (Shipra) के तट पर लगता है. इसके साथ ही कुंभ मेला चार पवित्र नगरों प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक में ही लगता है.
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जहां गिरी थीं अमृत की कुछ बूंदें
शास्त्र बताता है कि समुद्र मंथन (Samudr manthan) के दौरान सागर से अमृत (Amrt) और विष (vish) के साथ कई रत्न निकले थे.देवताओं और राक्षसों ने इन सभी चीजों को आपस में बांटने का फैसला लिया. अमृत कलश के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच 12 दिनों तक लड़ाई हुई. अमृत कलश को असुरों से बचाने के लिए भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने उसे अपने वाहन गरुड़ को सौंप दिया. लड़ाई के दौरान दानवों ने गरुड़ से अमृत कलश छिनने की कोशिश की तो उसमें से छलक कर कुछ बूंदें 12 जगहों पर गिर गयी थीं. पृथ्वी पर चार जगह और देवलोक में आठ जगह. पृथ्वी की वही चार जगह प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक है.
अन्नदान का भी है महत्व
ऐसी मान्यता है कि जहां अमृत की बूंदें गिरीं वहां की नदियां अमृत में बदल गयीं. इसी कारण दुनिया भर के हिन्दू तीर्थयात्री (Tirthayatri) स्नान करने के लिए कुंभ मेले में आते हैं. प्रयागराज के महाकुंभ में इस बार 40 से 45 करोड़ श्रद्धालुओं के संगम तट पर आस्था की डुबकी लगाने का अनुमान है.मान्यताओं के मुताबिक महाकुंभ में स्नान के साथ अन्नदान का भी विशेष महत्व है.
(यह आस्था और विश्वास की बात है. मानना और न मानना आप पर निर्भर है.)
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