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नागा साधु : कुंभ के बाद…जाने चले जाते हैं कहां!

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सचमुच रहस्यमयी जिंदगी होती है नागा संन्यासियों की. इनको लेकर सबसे बड़े आम जिज्ञासा यह होती है कि कुंभ के दौरान बड़ी संख्या में अवतरित होने वाले नागा साधु सामान्य दिनों में कहां और कैसे रहते हैं. तापमान लाइव ने इस पर शोध किया है. प्रस्तुत है किस्तवार संबंधित आलेख की पहली कड़ी :

महर्षि अनिल शास्त्री

08 जनवरी 2025

नागा साधु 21वीं सदी में भी आम लोगों की उत्सुकता का विषय बने हुए हैं. लोग उनकी उत्पत्ति और रहस्यमयी जिन्दगी के बारे में गहराई से जानने की जिज्ञासा रखते हैं. यह भी कि कुंभ मेला (Kumbh Mela) के दौरान सैंकड़ों की संख्या में अवतरित होनेवाले नागा साधु (Naga Sadhu) सामान्य दिनों में कहां धुनि रमाते हैं, आम लोगों से दूर-दूर क्यों रहते हैं? इस रहस्य की गहराई में जाने से पहले यह जानते हैं कि नागा साधु हैं क्या, उनकी उत्पत्ति कैसे हुई. इतने रहस्यमय वे कैसे हो गये. जानकारों के मुताबिक भारत (India) में नागवंश और नागा जाति का इतिहास बहुत पुराना है. देश के पूर्वोत्तर में नागालैंड (Nagaland) (अब नगालैंड)  नाम का एक राज्य है. ऐसा माना जाता है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में ही नागवंशी, नागा जाति और दसनामी संप्रदाय के लोग रहते आये हैं. नाथ संप्रदाय भी दसनामी संप्रदाय से संबंध रखता है. शैव पंथ से बहुत सारे संन्यासी पंथों और परंपराओं की शुरुआत मानी गयी है.


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पहले भी थे नागा संन्यासियों के अखाड़े
जहां तक नागा जाति की बात है तो यह देश की प्रमुख जनजातियों में से एक है. नागालैंड, जहां नंगा पर्वत श्रेणियां फैली हुई हैं, नागा जनजाति का मूल निवास स्थान है. ‘नागा’ शब्द की उत्पत्ति के बारे में कुछ विद्वानों का मानना है कि यह संस्कृत के ‘नागा’ शब्द से निकला है, जिसका अर्थ ‘पहाड़’ होता है और इस पर रहने वाले लोग ‘पहाड़ी’ या ‘नागा’ कहलाते हैं. कच्छारी भाषा में ‘नागा’ से तात्पर्य ‘एक युवा बहादुर लड़ाकू व्यक्ति’ से है. ‘नागा’ का एक अर्थ ‘नंगे’ रहने वाला भी है. पूर्वोत्तर भारत (North East India) में नागा जाति के लोग हैं, पर वे साधु-संन्यासी नहीं हैं. आमतौर पर दसनामी संप्रदाय के संन्यासियों को नागा साधु कहा जाता है. कुछ विद्वानों का मानना है कि नागा संन्यासियों के अखाड़े आदि शंकराचार्य (Shankaracharya) के पहले भी थे. लेकिन, उस समय उन्हें अखाड़ा नाम से नहीं पुकारा जाता था. बेड़ा अर्थात साधुओं का जत्था कहा जाता था. पहले अखाड़ा शब्द का चलन नहीं था. साधुओं के जत्थे में पीर और तद्वीर होते थे. अखाड़ा शब्द का चलन मुगलकाल (Mughal period) से शुरू हुआ.

वैदिक साहित्य में भी है वर्णन
कतिपय इतिहासकार (historian) मानते हैं कि भारत में नागा संप्रदाय की परंपरा प्रागैतिहासिक काल (Pragaitihasik kal) से शुरू हुई है. सिंधु घाटी (Sindhu Ghatei) में स्थित विख्यात मोहनजोदड़ो की खुदाई में पायी जानेवाली मुद्रा तथा उस पर पशुओं द्वारा पूजित एवं दिगंबर रूप में विराजमान पशुपति की प्रतिमा  इस बात का प्रमाण है कि वैदिक साहित्य में भी ऐसे जटाधारी तपस्वियों का वर्णन है. भगवान शिव (lord shiva) इन तपस्वियों के आराध्य देव हैं. इस पर मतभिन्नता हो सकती है, पर इतिहास बताता है कि सिकंदर महान के साथ आये यूनानियों को अनेक दिगंबर साधुओं के दर्शन हुए थे. बुद्ध (Buddha) और महावीर (Mahavir) भी उन्हीं साधुओं के दो प्रधान संघों के अधिनायक थे. जैन धर्म के दिगंबर साधु और हिन्दू धर्म के नागा संन्यासी एक ही परंपरा से निकले हुए माने जाते हैं.

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