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‘भूत उत्सव’ : मिलता है प्रशासन का संरक्षण !

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देवव्रत राय
04 नवम्बर 2024

घिन्हू ब्रह्म स्थान (Bikramganj) : धिन्हू ब्रह्म स्थान में आयोजित तथाकथित ‘भूत उत्सव’ का आमानवीय पक्ष भी है. यह कि भूत भगाने के नाम पर ओझा भूत-प्रेत पीड़ित पुरुषों व महिलाओं की निर्मम पिटाई करते हैं. हालांकि, उनका कहना होता है कि वे पीड़ितों की नहीं, शरीर में प्रवेश कर चुकी बुरी आत्मा की पिटाई करते हैं. ओझाओं का कहना जो हो, उनकी ओझाई में निर्ममता की पराकाष्ठा इस रूप में भी दिखती है कि महिलाओं को बाल पकड़कर और मुड़ी गोतकर भी पीटा जाता है. इस प्रक्रिया में किसी न किसी रूप में अनैतिकता भी झलक जाती है.

ओझाओं का बेतुका तर्क
तांत्रिक तर्क यह कि पिटाई का असर पीड़ितों के शरीर पर नहीं होता. पिटाई भूत-प्रेत व बुरी आत्मा की होती है. इससे डरकर वे शरीर छोड़कर भाग जाते हैं. ओझाओं-तांत्रिकों का यह तर्क निःसेदह बेतुका है. परन्तु, परंपरागत आस्था और विश्वास के मामले में इस बेतुकेपन का कोई मायने-मतलब नहीं रह जाता है. महिलाओं की तरह कुछ पुरुष भी भूत खेलाते हैं. अजब-गजब हरकतें करते हैं. कोई फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है तो कोई गाना गाता है, डांस करता है.

सरकार वसूलती है राजस्व
राज्य सरकार भूत-प्रेत प्रभावितों, ओझाओं और मेला परिसर में व्यवसाय करने वालों से राजस्व वसूलती है- श्री घिन्हू ब्रह्म मेला सैरात वसूली! इसके लिए मेला परिसर की सैरात बंदोबस्ती होती है. इस समय यह बंदोबस्ती संझौली प्रखंड क्षेत्र के चांदी इंग्लिश गांव के ददन यादव और लालमोहन यादव को मिली हुई है. राजस्व की वसूली वही करते हैं. बंदोबस्ती की रकम जमा करने के अलावा मेला व्यवस्थित रखने के लिए मुखिया और थाना को भी उन्हें ‘उपकृत’ करना पड़ता है. यह सब खेल तो होता है, पर मेला परिसर में पसरी नरक सरीखी गंदगी की ओर ध्यान किसी का नहीं जाता है.


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है दंडनीय अपराध
यहां गौर करने वाली बात है कि ‘भूत उत्सव’ का यह ‘व्यवस्थित आयोजन’ तब हो रहा है जब 1999 से बिहार में डायन के संदेह में महिलाओं की प्रताड़ना के खिलाफ कानून लागू है. उस कानून के अनुसार न केवल किसी व्यक्ति की डायन के रूप में पहचान करना, बल्कि किसी महिला को ‘झाड़-फूंक’ या ‘टोटका’ द्वारा ठीक करना और शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुंचाना दंडनीय अपराध है. यह कहने में कोई संकोच नहीं कि घिन्हू ब्रह्म स्थान के ‘भूत उत्सव’ में इस कानून का खुले तौर पर माखौल उड़ाया जाता है. शासन-प्रशासन जिस ढंग से आंखें बंद किये रहता है, उसको देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अंधविश्वास के इस घृणित खेल को उसका ‘संरक्षण’ प्राप्त है.

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