चढ़ल चइत : एहि ठैयां झुलनी हेरानी हो रामा, एहि ठैयां…
शिवकुमार राय
26 मार्च 2025
बनारस (Banaras) के संगीताचार्यों ने चैती (Chaiti) को उपशास्त्रीय गायन का नया रूप दिया. उपशास्त्रीय गायन में ठुमरी (Thumri) और चैती की भावाभिव्यक्ति में करीब-करीब समानता है. शुद्ध चैती मात्र लोक धुन है. परन्तु, स्वर संयोजन से ऐसा प्रतीत होता है कि ज्यादातर यह खमाज ठाट, विलावल ठाट और काफी ठाट में गाया जाता है. इन ठाटों पर आधारित रागों में चैती सहज ग्राह्य होती है. कजरी की तरह चैती भी अत्यंत मधुर और रसभरा गायन है. इसमें रस भाव युक्त ठुमरी की अनुभूति तो होती ही है, ध्रुपद-धमार (Dhrupad-Dhamar) जैसी शैली की चैती में शास्त्रीय संगीत(Classical music) की मिठास भी मिलती है. इसमें दीपचंदी, कहरवा, रूपक आदि तालों का प्रयोग होता है. कुछ लोग अद्धाताल यानी सितारवानी या जलद त्रिताल में भी गाते हैं.
लोक गायन है चैता
चैता और चैती दो अलग-अलग गायन शैली है. चैता के समूह गायन में पुरुष (Male) और महिलाएं (women) दोनों होते हैं. चैती में सिर्फ पुरुष या सिर्फ महिलाएं ही गाती हैं. चैता गांवों के जनजीवन से जुड़ा लोक गायन है. इसमें शास्त्रीयता के आग्रह की जरूरत नहीं होती. चैती उपशास्त्रीय गायन की ऋतुबद्ध परंपरा है. पं. रामप्रसाद मिश्र (Pandit Ramprasad Mishra) के ठुमरी शैली में गाये- एहि ठैयां झुलनी हेरानी हो रामा, एहि ठैयां… तथा बाबू श्याम नारायण सिंह की पीलू ठुमरी शैली में गाये- आईल चइत महिनवा हो रामा, पियरी न पेन्हब. जैसे गीतों से चैता को ऊंचाई मिली है. दरभंगा के प्रसिद्ध ध्रुपद-धमार गायक पंडित रामचतुर मलिक (Pandit Ramchatur Malik) ने भी चैता गाये हैं. गिरिजा देवी, शोभा गुर्टू, शुभा मुद्गल, सिद्धेश्वर देवी, सविता देवी आदि अनेक ख्यात स्वर साधिकाएं हैं, पर पटना की लोकगायिका पद्मश्री विंध्यवासिनी देवी के गायन का कोई जवाब नहीं.
कोयल तोरी बोलिया
पद्मश्री शारदा सिन्हा (Sharda Sinha) के गायन से भी चैती को नया आयाम मिला है. कुछ चैती गीतों को साहित्य पक्ष इतना समृद्ध होता है कि श्रोता संगीत और साहित्य के सम्मोहन में बंध जाते हैं. पद्मश्री विंघ्यवासिनी देवी की एक चैती में अलंकारों का अद्भुत प्रयोग हुआ है, शृंगार पक्ष में अनूठा है.
चांदनी चितवा चुरावे हो रामा,
चइत के रतिया.
मधु ऋतु मधुर-मधुर रस घोले
मधुर पवन अलसावे हो रामा…
पंडित महादेव मिश्र और पंडित हरिशंकर मिश्र की तरह पंडित छन्नुलाल मिश्र का बनारसी चैती गायन का अपना एक अलग अंदाज रहा है. उनकी एक मशहूर चैती का बंद कुछ इस प्रकार है :
सेजिया से सइयां रूठि गईलें हो रामा
कोयल तोरी बोलिया
रोज तू बोलेली सांझ-सवेरबा
आज काहे बोले अधरतिया हो रामा
कोयल तोरी बोलिया
होत भोर तोर खोतबा उजरबो
और कटइबो बन बगिया हो रामा
संत कवियों का भी मन लुभाया. यह सब तो है ही, चैती की रसमयता ने संत कवियों (Saint poets) को भी लुभाया है. वैसे संत कवियों में शामिल कबीर दास ने भी चैती शैली में निर्गुण पदों की रचना की-
पिया से मिलन हम जाएब हो रामा
अतलस लहंगा कुसुम रंग सारी
पहिर-पहिर गुन गाएब हो रामा.
कबीर दास की एक और निर्गुण चैती है-
कैसे सजन घर जैबे हो रामा…
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