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बिहार और निशांत कुमार : पिता के ढहते जनाधार पर अकुलाता भविष्य

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विष्णुकांत मिश्र
28 मार्च 2025
 राजनीति (Politics) में पांव जमाने के लिए पढ़ा-लिखा होने की अनिवार्यता नहीं है. तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) कितने पढ़े-लिखे हैं! खुद को बिहार का भावी मुख्यमंत्री (Chief Minister) के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं. पढ़ा-लिखा समर्थक वर्ग उनका यशोगान कर रहा है! मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुत्र निशांत कुमार (Nishant Kumar) ने बिड़ला प्रौद्योगिकी संस्थान, मेसरा (बीआईटी, मेसरा) से कम्प्यूटर साइंस (Computer Science) में इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल कर रखी है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) खुद भी इंजीनियर हैं. निशांत कुमार की मां मंजू कुमारी सिन्हा (Manju Kumari Sinha) पटना के एक स्कूल में अध्यापिका थीं. नीतीश कुमार पटना इंजीनियरिंग कालेज में पढ़ाई करते राजनीति में घुस गये थे. निशांत कुमार ने डिग्री हासिल करने के बाद न राजनीति में कदम रखा और न कहीं नौकरी की.

परिवार की है इच्छा
मां मंजू कुमारी सिन्हा का 2007 में निधन हो गया. निशांत कुमार अध्यात्म (Spirituality) में इस कदर रम गये कि शादी की तरफ ध्यान ही नहीं गया. नीतीश कुमार चाहते हों या नहीं, जानकारों के मुताबिक परिवार के लोगों की इच्छा है कि निशांत कुमार पिता के जीवनकाल में ही उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी बन जायें. ठीक वैसे ही जैसे राजद में लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के रहते तेजस्वी प्रसाद यादव ने पार्टी की कमान संभाल ली. पहचान भले ‘लालू पुत्र’ की रह गयी, पर पार्टी में बड़ी सहजता से उनके नेतृत्व को स्वीकार्यता मिल गयी. लोजपा में रामविलास पासवान (ram vilas paswan) ने अपने जीवनकाल में ही चिराग पासवान (Chirag paswan) को पार्टी का नेतृत्व सौंप दिया. हालांकि, कुछ ‘अपनों’ को नागवार गुजरा, अलग हो गये. पार्टी पर चिराग पासवान का नियंत्रण कायम हो गया. यहां तक कि जीतनराम मांझी (jitanram Manjhi) के सक्रिय रहते उनके पुत्र संतोष कुमार सुमन (Santosh Kumar Suman) ने भी ‘हम’ की कमान संभाल ली है.


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एक व्यक्ति की पार्टी नहीं
जदयू में निशांत कुमार के साथ ऐसा संभव है क्या? शायद नहीं. पार्टी की कमान मिल जा सकती है, स्वीकार्यता मिलेगी इसमें संदेह है. इसलिए कि जदयू का सांगठनिक स्वरूप व राजनीतिक चरित्र राजद और हम, जैसे कथित परिवारवादी दलों से कुछ भिन्न है. यह किसी एक व्यक्ति की पार्टी नहीं है. राजद (RJD) का गठन लालू प्रसाद, लोजपा (LJP) का रामविलास पासवान और ‘हम’ (Ham) का जीतनराम मांझी ने किया था. जदयू (JDU) का गठन कोई एक नेता ने नहीं, जार्ज फर्नांडिस (george fernandes) , शरद यादव  (Sharad Yadav) , नीतीश कुमार आदि ने संयुक्त रूप से किया था. सहयोगी दल के तौर पर इसके उत्थान में भाजपा (BJP) का भी बड़ा योगदान है. ऐसे में इस पार्टी में परिवारवाद (familism) और वंशवाद (Vanshavad) के लिए कोई जगह बनती है क्या?

सामाजिक आधार क्या?
गौर करने वाली बात यह भी कि तेजस्वी प्रसाद यादव के पास ‘माय’ रूपी पुश्तैनी जनाधार है. चिराग पासवान और संतोष कुमार सुमन के पीछे स्वजातीय समाज है. निशांत कुमार के साथ कौन-सा सामाजिक आधार है? जिस कुर्मी-कुशवाहा और अतिपिछड़ा वर्ग के समर्थन की बुनियाद पर नीतीश कुमार की राजनीति परवान चढ़ी, वह लगभग बिखर चुकी है. नीतीश कुमार का नेतृत्व ढीला पड़ा तब इन सामाजिक समूहों का एक हिस्सा राजद और दूसरा भाजपा की ओर मुखातिब हो जा सकता है.

अटक जा रहा गणित
थोड़ा बहुत समर्थन बचेगा भी तो उसमें निशांत कुमार के प्रति वैसी ही प्रतिबद्धता रह पायेगी, जैसी नीतीश कुमार के प्रति रही है? जवाब नकारात्मक ही होगा. ऐसे में ले-देकर कुर्मी समाज को ही साथ में माना जा सकता है. पर, सवाल यहां यह भी है कि कुर्मी समाज साथ है भी तो उसकी आबादी ही कितनी है? कल क्या होगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता. फिलहाल निशांत कुमार को जदयू के लिए ‘संजीवनी’ (Sanjeevani) समझने वालों का सारा गणित इसी सवाल में आकर अटक जा रहा है.

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