चढ़ल चइत : घरे-घरे बाजेला आनंद बधइया हो रामा…
शिवकुमार राय
25 मार्च 2025
चैती गायन (Chaiti Gayan) की शुरुआत कब और कैसे हुई, इतिहास (History) में इसका कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है. पर, चर्चित लेखिका मीनाक्षी प्रसाद का मानना है कि भारतीय संस्कृति में जन्म, नामकरण, यज्ञोपवीत संस्कार एवं अन्य तमाम वैदिक अनुष्ठानों के वक्त लोेकगीत और भजन गाये जाते हैं. भगवान श्रीराम (Sriram) का जन्म चैत्र में हुआ. इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि चैती गायन की शुरुआत त्रेता युग में हुई थी. तर्क यह भी कि चैती में ‘हो रामा’ टेक लगाकर गाने का चलन है और राम जन्म, राम-सीता की होली और राम विवाह से संबंधित कई चैती गाये जाते हैं. मीनाक्षी प्रसाद के इस कथन पर सहमति-असहमति की बात अपनी जगह है, चैत महीना धार्मिक आस्थाओं एवं भावनाओं से जुड़ा है, यह निर्विवाद है.
चैती धुन में रामायण पाठ
रामनवमी के दिन उत्सवी माहौल में रामजन्म एवं उनके जीवन से संबंधित प्रसंगों पर आधारित चैता या चैती गायन का अपना अलग महत्व है. उस दिन चैती धुन में रामायण पाठ की भी परम्परा है.
चढ़ले चइतवा राम जनमलें हो रामा
घरे-घरे बाजेला आनंद बधइया हो रामा
दसरथ लुटावे अनधन सोनमा हो रामा
कैकेयी लुटावे सोने के मुनरिया हो रामा.
चैती-चैता गायन में प्रेम व विरह के अलावा धार्मिक पर्वों एवं भावनाओं की विविधता भी दिखती है. इसमें भगवान श्रीराम तो होते ही हैं,राधा-कृष्ण (Radha-Krishna) की भी चर्चा होती है और शिव-पार्वती (Shiva-Parvati) की भी.
कान्हा चरावे धेनु गइया हो रामा
जमुना किनरवा
लय प्रवाह में समानता
चैता और चैती पूर्वी उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) , अवध (Awadh) और पश्चिमी बिहार (Bihar) की लोक संस्कृति से जुड़ा गीत- संगीत (songs and music) है. घाटो के रूप में भोजपुरी (Bhojpuri) क्षेत्र, चैतार के रूप में मगही (Magahi) क्षेत्र और चैतावर के रूप में मिथिलांचल में इसका गायन होता है. भाषाएं भिन्न, बोलियां विभिन्न, पर विषय वस्तु, स्वर संयोजन तथा लय प्रवाह में लगभग समानता. विविधता में एकता का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है? मिथिलांचल (mithilanchal) में चैती के संदर्भ में मीनाक्षी प्रसाद के आलेख में चर्चा है-‘ऐसा प्रतीत होता है कि श्रीराम से सीताजी के विवाह के बाद सांस्कृतिक आदान-प्रदान के तहत उत्तर प्रदेश से चैती मिथिलांचल पहुंच गयी थी, क्योंकि सीता के जन्म से संबंधित चैती की तुलना में मिथिला की प्रकृति या राम-सीता युगल से संबंधित चैती ज्यादा मिलती है.’ मीनाक्षी प्रसाद के कथन की पुष्टि इससे होती है. राजा जनक (Raja Janak) ने कठिन प्रण कर रखा है कि जो शिव के धनुष को तोड़ेगा, अपनी बेटी जानकी का विवाह उसी से करेंगे-
रामा राजा जनक ने
कठिन प्रण ठाने हो रामा
देसे-देसे लिखि-लिखि
पतिया पठावे हो रामा
अवध नगरिया
पाऊं आनंद अपार हो…
श्रीराम और माता सीता विवाहोपरांत अयोध्या (Ayodhya) आते हैं और दोनों को स्वागत संबंधी रस्मों के लिए साथ में बैठाया जाता है, उस मनोहारी दृश्य का एक चैती में खूब सुन्दर वर्णन है :
राजा राम सिय साथे हो रामा
अवध नगरिया
माता कौशल्या तिलक लगावे
सुमित्रा के हाथ सोहे पनमा हो रामा
अवध नगरिया
दासी सखी चलो दरसन कर आवें
पाऊं आनंद अपार हो रामा
बाबा दशरथ दुअरिया
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