मान न मान : पप्पू यादव … तौहीन नहीं तो और क्या?
विशेष प्रतिनिधि
29 मार्च 2025
Patna : अपने दम पर राजनीति (Politics) करना एक बात है. मगर, बड़ी पार्टी से जुड़कर राजनीति करने में एक दिन में कई पापड़ बेलने पड़ जाते हैं. इन दिनों राजनीतिक त्रासदी झेल रहे प्रतिद्वंद्वियों की नजर में परिस्थितियों के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (Rajesh Ranjan alias Pappu Yadav) को इसका बखूबी अहसास हो रहा है. पप्पू यादव एकला चल रहे थे तो कोई परेशानी नहीं थी. खुद अपनी पार्टी के संस्थापक और संचालक यानी सर्वेसर्वा थे. कांग्रेस (Congress) पार्टी से अपनत्व बढ़ाने लगे तो उन्हें पता चल गया कि असली राजनीति यानी दूसरों पर आश्रित राजनीति में क्या सब करना पड़ता है.
खेल कुछ और हो गया
पप्पू यादव को पहला झटका तकरीबन साल भर पहले 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha elections) के दौरान लगा. गले में ‘हाथ’ का पट्टा डाल उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया. कहने के लिए कांग्रेस में शामिल हो गये. पर, खेल कुछ और हो गया. पार्टी हाथ से निकल गयी और वह हाथ मलते रह गये. पद की बात छोड़िये, करीने से कांग्रेस की चवनिया सदस्यता भी नहीं मिल पायी. पूर्णिया (Purnia) संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवारी लेने की बारी आयी तो कांग्रेस के साथ-साथ राजद (RJD) ने भी टांग फंसा दिया. ये तो अच्छा हुआ कि पप्पू यादव ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय किया. जीत भी गये.
श्रेय दो कौड़ी का भी नहीं मिला
अब आगे की आफत सुनिये. पप्पू यादव के मामले में कांग्रेस पार्टी दो हिस्से में बंटी है. राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के रूख का पता नहीं चलता है. मगर, प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) समेत उनके कुछ करीबी नेता चाहते हैं कि पप्पू यादव कांग्रेस से जुड़ जायें. ऐसे ही नेताओं के संरक्षण के कारण पप्पू यादव झारखंड (Jharkhand) विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में प्रचार करने चले गये. मुख्यमंत्री (Chief Minister) हेमंत सोरेन (Hemant Soren) और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन (Kalpana Soren) का मंच साझा कर आये. चुनाव में कांग्रेस की सेहत अच्छी रही. फिर भी आधिकारिक रूप से पप्पू यादव को दो कौड़ी का श्रेय नहीं दिया गया. दिल्ली विधानसभा (Delhi Assembly) के चुनाव में भी वह कांग्रेस के लिए प्रचार कर आये. पता नहीं, उसका श्रेय मिला या नहीं.
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कांग्रेसियों ने मजाक बना दिया
इसका रोचक प्रसंग यह है कि अंडरवर्ल्ड सरगना लारेंस विश्नोई (Lawrence Bishnoi) गैंग की कथित धमकी के मामले में पप्पू यादव व्यथित हो गये. इंटरव्यू में रोने लगे. कांग्रेस के बड़े हिस्से ने कहा-देखिये, इसी दम पर खुद को दबंग और बाहुबली कहते हैं. किसी ने फोन पर धमकी दी और लगे रोने. इस धमकी की परिणति ने कांग्रेसियों को पप्पू यादव का मजाक बनाने का एक और अवसर दिया. क्योंकि धमकी देने वाले का लारेंस विश्नोई गिरोह से दूर-दूर तक कुछ लेना नहीं था. धमकी देने वाला चिंदी चोर श्रेणी का अपराधी था.
हाथ मलकर रह गये
एक और वाकया देखिये -18 जनवरी 2025 को राहुल गांधी पटना आये थे. दो जगह भाषण था. पप्पू यादव को भाषण नहीं देना था. सिर्फ राहुल गांधी से मिलना था. प्रदेश के कांग्रेसियों ने ऐसा प्रबंध किया कि राहुल गांधी से उनकी मुलाकात नहीं हो पायी. उस वक्त डा. अखिलेश प्रसाद सिंह (Dr. Akhilesh Prasad Singh) प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे. रणनीति यही बनी कि किसी भी हालत में पप्पू यादव को राहुल गांधी के पास फटकने नहीं देना है. वही हुआ. हवाई जहाज के लिए समय बचा था. लोग राहुल गांधी को लालू प्रसाद (Lalu Prasad) से मिलवाने चले गये. फिर वहां से ही दिल्ली के लिए उड़ा दिया गया. पप्पू यादव फिर हाथ मल कर रह गये. बात यहीं खत्म नहीं होती है. कुछ ही दिनों बाद राहुल गांधी का दोबारा पटना आगमन हुआ. उस दौरान भी पप्पू यादव को वैसा ही अनुभव प्राप्त हुआ.
बेलने पड़ेंगे अभी बहुत पापड़
इधर, डा.अखिलेश प्रसाद सिंह की प्रदेश अध्यक्ष पद से विदाई हो गयी. पप्पू यादव के अरमान हरे हो गये. मुस्कान खिल उठी. राजनीतिक हलकों में बयार बंधी कि सदाकत आश्रम (Sadaqat Ashram) अब पप्पू यादव के हवाले कर दिया जायेगा. सदाकत आश्रम प्रदेश कांग्रेस का मुख्यालय है. लेकिन, वैसा कुछ नहीं हुआ. पहले की तरह कांग्रेस से उन्हें दूर-दूर ही रखा गया. 25 मार्च 2025 को दिल्ली में आयोजित बिहार के कांग्रेस नेताओं की बैठक में बुलाया तक नहीं गया. इससे अधिक तौहिनी और क्या हो सकती है कि प्रदेश कांग्रेस के नये प्रभारी कृष्णा अल्लावरु (Krishna Allavaru) और अध्यक्ष राजेश कुमार (Rajesh Kumar) ने कांग्रेस से उनके जुड़ाव के मामले को महागठबंधन के घटक दलों के निर्णय पर छोड़ दिया. इसे कहते हैं असली राजनीति. कुल मिला कर कांग्रेस के करीब जाने के लिए पप्पू यादव को अभी बहुत पापड़ बेलने पड़ेंगे
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