तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

प्रदेश कांग्रेस : नहीं है कोई चारा इसके अलावा!

शेयर करें:

विकास कुमार
29 मार्च 2025

PATNA : नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है. इस प्रचलित लोकोक्ति का प्रसंगवश इस्तेमाल लोग खूब करते हैं. 25 मार्च 2025 से पहले तक बिहार प्रदेश कांग्रेस (Bihar Pradesh Congress) के नये पदधारियों की भाव-भंगिमा बहुत कुछ ऐसी ही दिख रही थी. उनके पद संभालने से कांग्रेस के 1990 के पूर्व वाले अच्छे दिन लौट आने का ख्वाब पाल बैठे दूसरे नेताओं की भी. बिहार विधानसभा के 2025 के चुनाव से तकरीबन सात माह पहले प्रदेश कांग्रेस (Congress) में सांगठनिक बदलाव के बीच विवादित छवि के युवा नेता कन्हैया कुमार की बहुप्रचारित ‘पलायन रोको, नौकरी दो यात्रा’ की शुरुआत के साथ महागठबंधन, राजद (RJD) और लालू प्रसाद (Lalu Prasad) से कांग्रेस के संबंधों को लेकर जो सांकेतिक बातें की जा रही थीं, जो हाव-भाव दिखाये जा रहे थे, वे नया मुल्ला के ज्यादा प्याज खाने जैसे ही थे.

जमीनी जानकारी नहीं
हैरान करने वाली बात यह कि मीडिया के एक तबके को भी राजद से अलग कांग्रेस का राजयोग दिखने लग गया था. विशेष कर उस तबके को जिसे बिहार की जाति आधारित राजनीति (Caste Based Politics) का इतिहास, सामाजिक समूहों की राजनीतिक प्रतिबद्धता और कब्र में समाये कांग्रेस के खंडित-विखंडित जनाधार की जमीनी जानकारी नहीं है. ऐसी अधकचरी समझ रखने वालों को भ्रम हो गया कि जातीय जनगणना (Caste Census) का ढोल पीट राहुल गांधी के राजनीति का ‘लालू राग’ अलापने से बिहार का सामाजिक समीकरण कांग्रेस के अनुकूल हो गया है. कब्र में सोया पुश्तैनी जनाधार जग गया है.

साथ रहने की जरूरत क्या
राजद के साथ राजनीति के ‘लालू राग’ के बीच अप्रत्याशित ढंग से मोहन प्रकाश की जगह कृष्णा अल्लावरु (Krishna Allavaru) को बिहार कांग्रेस का प्रभारी तथा डा. अखिलेश प्रसाद सिंह को हाशिये पर डाल दलित समाज के राजेश कुमार (Rajewsh Kumar) को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष (State Congress President) बना दिये जाने और कन्हैया कुमार के राज्यव्यापी ‘पलायन रोको, नौकरी दो यात्रा’ निकाल लेने से राज्य में कांग्रेस का कायाकल्प हो जायेगा. सत्ता खुद-ब-खुद उसके चरणों में लोटने लगेगी तो फिर पिछलग्गू के रूप में राजद के साथ रहने की जरूरत क्या है? प्रदेश कांग्रेस के ऐसे नेताओं की ऐसी कोई मंशा रही हो या नहीं, इस धारणा को मजबूती मिलने के कई कारक थे.


ये भी पढ़ें :

बिहार और निशांत कुमार : पिता के ढहते जनाधार पर अकुलाता भविष्य

बिहार और निशांत कुमार: राजनीति में सक्रियता, नीतीश की विवशता!

बिहार और निशांत कुमार : पार्टी का हित बन जायेगा पलटी का आधार!

बिहार और निशांत कुमार : धड़कने बेतहाशा तड़पने लगी


दूरी बनने के रूप में देखा गया
डा. अखिलेश प्रसाद सिंह को राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद का करीबी माना जाता है. 2022 में प्रदेश कांग्रेस के तबके प्रभारी भक्त चरण दास ने इसी राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष पद पर काबिज कराने की कोशिश की थी. वह कोशिश कामयाबी के करीब पहुंच भी गयी थी. बस, घोषणा भर बाकी थी. इसी बीच लालू प्रसाद का हस्तक्षेप हुआ और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष का पद डा. अखिलेश प्रसाद सिंह को मिल गया. यही आधार रहा कि डा. अखिलेश प्रसाद सिंह की अध्यक्ष पद से विदाई हुई तब उसे लालू प्रसाद से कांग्रेस की दूरी बनने के रूप में देखा गया.

माजरा एकदम से बदल गया
प्रदेश कांग्रेस के नये प्रभारी कृष्णा अल्लावरु और नये अध्यक्ष राजेश कुमार के लालू प्रसाद के दरबार में मत्था नहीं टेकने से ऐसी समझ को विस्तार मिला. फिर राजद की बहुचर्चित इफ्तार पार्टी में कांग्रेस के शामिल नहीं होने से दोनों की राहें अलग हो जाने की आशंकाओं को बड़ा आकार मिल गया. प्रदेश स्तरीय नेताओं का यह रूख कांग्रेस नेतृत्व निर्देशित था या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता. पर, कहते हैं कि लालू प्रसाद ने इसे ‘हमारी बिल्ली हमीं पर म्यायूं’ के रूप में लिया. कहते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व को समझा दिया गया कि इस तरह की पैंतरेबाजी से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, अलग राह से कंधा देने वाले ही चार जीत कर आयेंगे, उससे अधिक नहीं. माजरा एकदम से बदल गया.

स्वीकार करना ही पड़ जायेगा
25 मार्च 2025 को बिहार के तमाम बड़े नेताओं को दिल्ली तलब किया गया. कांग्रेस अध्यक्ष (Ccongress President) मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के साथ लम्बी बैठक हुई. फलाफल राजद के साथ महागठबंधन में बने रहने के रूप में निकला. इस आशय की घोषणा प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी कृष्णा अल्लावरु और अध्यक्ष राजेश कुमार से करवायी गयी. राजनीति के लिए यह हैरानी की कोई बात नहीं रही. इसलिए कि बिहार में वजूद तलाश रही कांग्रेस के पास राजद का पिछलग्गू बने रहने के अलावा कोई चारा नहीं है. इस मामले में वह बिल्कुल बेचारी है. ऐसे में हंस कर या रो कर, ‘हाथ उठाई’ के रूप में महागठबंधन में मिलने वाली सीटें और तेजस्वी प्रसाद यादव के नेतृत्व को उसे स्वीकार करना ही पड़ जायेगा.

#Tapmanlive

अपनी राय दें