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चढ़ल चइत : चांदनी चितवा चुरावे हो रामा…

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शिवकुमार राय
23 मार्च 2025

ह प्रकृति (Nature) का अकाट्य-अखंड नियम है कि भारतीय ऋतु चक्र  में काव्य रस वसंत (Vasant) का अवसान चैत (Chait) की रातों में होता है. चैत को ‘मधुमास’ (Madhumas) कहा गया है. स्वाभाविक रूप से इसमें गीत-संगीत (songs and music) और शृंगार (Shrngar) का सम्मोहन बढ़ जाता है. मधुमास का मतलब मिलन का महीना. इसमें माधुर्य है, संयोग का उल्लास है, तो विरह की वेदना भी है. इस दृष्टि से विरह-व्याकुल प्राणियों के लिए इसे बेहद पीड़ादायक माना जाता है. फागुन उन्मादी महीना है तो चैत पिया-वियोग की पीड़ा जगा-बढ़ा देने वाला उत्पाती महीना. इसी संयोग और वियोग की वजह से चैत को फागुन की परिणति के तौर पर देखा और समझा जाता है.

चांदनी चितवा चुरावे हो रामा
चैत के रतिया
मधु ऋतु मधुर-मधुर रस घोलै
मधुर पवन अलसावे हो रामा
चैत के रतिया

शृंगार का आकर्षण-सम्मोहन
इसे थोड़ा विस्तार दें, तो फागुन (Phagun) की मादकता चैत की अलसायी रातों में लुप्त होने लगती है तब शृंगार का आकर्षण-सम्मोहन छाने लग जाता है. चैत की सुहानी शाम, शुभ्र चांदनी (Chandani)) और कोयल (Koyal) की मादक कूक का उल्लेख करते हुए महाकवि कालिदास (Mahakavi kalidas) ने ‘ऋतुसंहार’ (Ritusanhar) में कहा भी है-‘चैत्र मास की वासंतिक सुषमा से परिपूर्ण लुभावनी शामें, छिटकी चांदनी, कोयल की कूक, सुगंधित पवन, मतवाले भौरों का गुंजार और रात में आसवपान- ये शृंगार-भाव को जगाये रखने वाले रसायन ही हैं.’ इन्हीं रसायनों के कारण भारतीय ऋतु चक्र में चैत को ‘मधुमास’ कहा गया है.

भारतीय संस्कृति की अनुपम धरोहर
काव्य रस से ओत-प्रोत, स्वर स्नेह, लय लसे, हृदय तल से उभरे लोक गीत भारतीय संस्कृति (Bharatiy sanskrti) की अनुपम धरोहर है. यह साहित्य की अमूल्य निधि है, सामाजिक जीवन का दर्पण है. भारत (India) की ऋतु सुलभ लोक गायन (folk singing) की परंपरा में चैत माह के लिए भी विशेष गीत-संगीत है जिसे चैती, चैता, चैतार, चैतावर या घाटो कहा जाता है. महत्वपूर्ण बात यह कि ऋतु परंपरा में इस लोक गीत-संगीत की धारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी कंठ से कंठ होकर अविरल बह रही है. होरी गायन (Hori Singing) के समापन के साथ ही चैता-चैती गायन की शुरुआत हो जाती है-

उतरल फगुनवा चैत चढ़ आइल हो रामा
अमवां से लउकत टिकोरवा हो रामा.

इस लोकगायन में लोकमानस का समग्र रूप चित्रित-वर्णित है. वैसे तो मूल रूप में यह लोकगीत है, पर शास्त्रीय संगीत (Classical Music) के कुछ मशहूर गायकों ने ठुमरी, ध्रुपद, धमार, दादरा शैली में गाकर इसे शास्त्रीय स्वरूप में भी ढाल दिया है. इसे उपशास्त्रीय बंदिशों के रूप में भी गाया जाता है. आमतौर पर ये राग वसंत या मिश्र वसंत में निबद्ध होते हैं. इसकी खासियत है कि गीतों में संयोग और वियोग दोनों का सुंदर संयोजन होता है . बारहमासे में भी चैत महीना गीत-संगीत के माह के रूप में वर्णित है.

चढ़ल चइत चित लागेल न हो रामा
बाबा के भवनमा
बीर बभनमा सगुनमा विचारो
कब होइहें पिया से मिलनमा हो रामा
चढ़ल चइत चित लागेल न हो रामा

#Tapmanlive

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