बिहार और निशांत कुमार: राजनीति में सक्रियता, नीतीश की विवशता!
विष्णुकांत मिश्र
25 मार्च 2025
राजनीति (Politics) में सक्रियता मुख्यमंत्री (Chief Minister) नीतीश कुमार के निर्णय और निशांत कुमार (Nishant Kumar) की इच्छा पर निर्भर है. यही आखिरी सच है. नीतीश कुमार की सहमति है या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता. उधर निशांत कुमार ने भी खुले तौर पर ऐसी कोई इच्छा व्यक्त नहीं की है. पर, अप्रत्याशित ढंग से राजनीतिक बयानबाजी करते वह अवश्य दिख रहे हैं. मुख्यमंत्री आवास (Chief Minister’s residence) पर होली (Holi) में पहली बार उनकी सार्वजनिक मौजूदगी भी दिखी. कयासों को पर लग गये. उनकी गतिविधियों से एक साथ कई सवाल खड़े हो गये हैं. पहला यह कि निशांत कुमार वाकई सक्रिय राजनीति में आ रहे हैं या यह मीडिया का शिगूफा है? दूसरा यह कि उनके इस रूप में प्रकटीकरण को लोग राजनीति में सक्रियता की संभावना से सिर्फ इसलिए जोड़ रहे हैं कि वह मुख्यमंत्री के पुत्र हैं? तीसरा यह कि नीतीश कुमार ने उन्हें राजनीति में लाने का मन बना लिया है और जनता की प्रतिक्रिया एवं हवा का रूख भांपते हुए पृष्ठभूमि तैयार की जा रही है?
बेहद चिंतित हैं नीतीश कुमार
तीसरे सवाल के संदर्भ में यह माना जा सकता है कि नीतीश कुमार के बाद जदयू (JDU) का क्या होगा, अस्तित्व बचेगा या मिट जायेगा, इसको लेकर नीतीश कुमार कभी स्पष्ट कुछ बोलते नहीं हैं, पर अंदरुनी तौर पर बेहद चिंतित हैं. यह अकाट्य है कि उनके बाद पिछड़ा या अत्यंत पिछड़ा वर्ग का ही कोई नेता जदयू का खेवनहार हो सकता है. परेशानी वाली बात यह है कि उन वर्गों का वैसा कोई बड़ा व्यक्तित्व जदयू में नहीं दिख रहा है. यूं कहें कि नीतीश कुमार ने उभरने नहीं दिया है. तकरीबन 23 वर्षों से जदयू की राजनीति उनके ही इर्द-गिर्द घूम रही है. वर्तमान में नीतीश कुमार के करीब रहने वाले जदयू के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष (National Executive Chairman) संजय झा (Sanjay Jha) , केन्द्रीय मंत्री (Union Minister) राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Rajiv Ranjan Singh alias Lallan Singh) , बिहार के वित्त एवं संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी (Vijay Kumar Chaudhary) अघोषित रूप से पार्टी पर हावी हैं.
सवर्ण नेतृत्व स्वीकार नहीं
सामान्य समझ में ये सभी नीतीश कुमार के इतने भरोसेमंद हैं कि जदयू को इनमें से किसी एक के हवाले कर दे सकते हैं. परन्तु, इस तथ्य को वह बखूबी समझते हैं कि जदयू समर्थक सामाजिक समूहों को किसी भी सूरत में सवर्ण नेतृत्व स्वीकार नहीं होगा. इसी समझ के तहत पिछड़ा या अत्यंत पिछड़ा वर्ग से नेतृत्व उभारना चाहते हैं. उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra kushwaha), आरसीपी सिंह (RCP Singh) और मनीष कुमार वर्मा (Manish Kumar Verma) को इसी मकसद से अलग-अलग समय में अवसर उपलब्ध करा उनमें नेतृत्व की क्षमता टटोली गयी, भविष्य धुंधला दिखा. निशांत कुमार की सक्रियता को भी इसी नजरिये से देखा जा रहा है.
हो रहा झंडा बुलंद
क्या होगा क्या नहीं, यह वक्त के गर्भ में है. निशांत कुमार की इस पहलकदमी से इतना जरूर हुआ है कि जदयू के उस तबके को सुकून मिल रहा है, जो खुद को पार्टी में अलग-थलग महसूस कर रहा है. यह तबका इतना उत्साहित है कि निशांत कुमार के विधिवत जदयू में आने से पहले ही उनका झंडा बुलंद कर रहा है. पटना (Patna) में जदयू कार्यालय के बाहर बड़े-बड़े पोस्टर लगा इसका इजहार कर रहा है. ‘बिहार करे पुकार, आइये निशांत कुमार.’ हालांकि, जदयू में ही एक ऐसा भी तबका है जिसका मानना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुत्र होने के अलावा निशांत कुमार में न नेतृत्व का कोई गुण है और न राजनीति का अनुभव है. राजनीति में उतरने के बाद नेतृत्व का गुण दिखने लग जाये तो वह अलग बात होगी.
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फूटा विरोध का स्वर
इस संदर्भ में गौर करने वाली बात यह है कि जदयू के विधान पार्षद भगवान सिंह कुशवाहा (Bhagwan Singh Kushwaha) ने निशांत कुमार को जदयू की कमान सौंपने की कोशिश का खुला विरोध किया है. सवाल उठाया है कि ऐसा हुआ तब लालू प्रसाद और नीतीश कुमार में अंतर क्या रह जायेगा? इस बीच जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा, संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी, ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार (Shravan Kumar) आदि ने स्पष्ट किया है कि निशांत कुमार की राजनीति में सक्रियता पर जदयू में अभी कोई बात-विचार नहीं हुआ है. वैसे, मामला नीतीश कुमार के विवेकाधिकार का है.
देख रहे हैं पार्टी का भविष्य
इसके बरक्स नेताओं-कार्यकर्त्ताओं के एक तबके की समझ यह बन रही है कि जदयू में नेतृत्व को लेकर जो अंदरूनी खींचतान है, निशांत कुमार उसका समाधान हो सकते हैं. जदयू के कई बड़े नेता उनकी इस रूप में सक्रियता में पार्टी का भविष्य देख रहे हैं. सिर्फ जदयू के ही नहीं, दूसरे दलों के नेता भी उनके राजनीति में आने का स्वागत कर रहे हैं. पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी (jitan ram manjhi) , राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) , पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) , केन्द्रीय मंत्री चिराग पासवान (Chirag paswan) सभी चाहते हैं कि निशांत कुमार राजनीति में उतरें. पूर्व केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे (Ashwini Choubey) , पूर्व विधायक मिथिलेश तिवारी (Mithilesh Tiwari) जैसे भाजपा नेता भी इसकी वकालत करने लगे हैं. जदयू के बड़बोले विधायक नरेन्द्र कुमार नीरज उर्फ गोपाल मंडल (Narendra Kumar Neeraj alias Gopal Mandal) यहां तक कह रहे हैं कि निशांत कुमार जदयू में नहीं आये तो पार्टी खत्म हो जायेगी.
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