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बिहार और निशांत कुमार : पार्टी का हित बन जायेगा पलटी का आधार!

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विष्णुकांत मिश्र
24 मार्च 2025

निशांत कुमार (Nishant Kumar) की सियासत में सक्रियता की बड़ा आकार ले रही संभावनाओं के बीच चर्चा राजनीति (Politics) में वंशवाद (Vanshawad) और परिवारवाद (Pariwaravad) की भी हो रही है. इस तथ्य से हर कोई वाकिफ है कि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) राजनीति में वंशवाद व परिवारवाद के कभी हिमायती नहीं रहे हैं. इसके कट्टर आलोचक रहे हैं. पूरे बिहार (Bihar) को अपना परिवार बताते हुए लालू प्रसाद (Lalu Prasad) और कभी-कभी रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) की परिवारवादी राजनीति पर सार्वजनिक मंचों से तीखे कटाक्ष-प्रहार करते रहे हैं. ज्यादा दिनों की बात नहीं है, हाल की कई सभाओं में उन्होंने खुले रूप में कहा कि वह (लालू प्रसाद) सिर्फ अपने परिवार के लिए काम करते हैं. पत्नी, बेटे और बेटियां ही उनके लिए सबकुछ है. वह खुद सत्ता में थे. जेल जाने की नौबत आयी तब पत्नी को सत्ता सौंप दी. फिर अपने बेटों को आगे बढ़ाया और अब बेटियों को भी आगे बढ़ा रहे हैं.

पूरा बिहार है परिवार
नीतीश कुमार ने आगे इसमें यह भी जोड़ा कि वह सबके लिए काम करते हैं. उनके लिए पूरा बिहार ही उनका परिवार है. नीतीश कुमार का स्पष्ट मानना है कि राजनीति में वंशवाद व परिवारवाद को कतई बढ़ावा नहीं देना चाहिये. ऐसा माना जाता है कि इसी ‘आदर्शवादिता’ के तहत उन्होंने अभी तक अपने पुत्र को राजनीति में नहीं आने दिया. सिर्फ पुत्र को ही नहीं, परिवार के दूसरे किसी सदस्य को भी इस ओर फटकने नहीं दिया. उनकी राजनीति में चमक का यह भी एक बड़ा आधार रहा है.

हालात दूध और माछ जैसे
सामान्य समझ है कि इस मामले में वह दिवंगत समाजवादी नेता पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर (karpoori thakur) को अपना आदर्श मानते हैं. कर्पूरी ठाकुर ने अपने जीवनकाल में पुत्र को राजनीति से दूर रखा था. उनकी मृत्यु के बाद ही समाजवादी शागिर्दों के सौजन्य से उनके पुत्र रामनाथ ठाकुर (Ramnath Thakur) को सियासी मुकाम हासिल हुआ. वैसे, प्रधानमंत्री (Prime Minister) नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) ने तीन साल पहले 2022 में परिवारवाद के मामले में राममनोहर लोहिया (Ram Manohar Lohia) और जार्ज फर्नांडिस (George Fernandes) से तुलना करते हुए नीतीश कुमार को खांटी समाजवादी बताया था. उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी वह इस आदर्श से बंधे रहते हैं या पुत्रमोह में फिसल जाते हैं, देखना दिलचस्प होगा. वैसे, हालात उनके समक्ष दूध और माछ जैसे हो गये हैं.

सत्ता की गोद में रहते हुए भी…
उधर, कथित तौर पर अध्यात्म में रमे निशांत कुमार की भी राजनीति में पांव रखने की कभी कोई इच्छा नहीं जगी. दूसरे नेता पुत्रों की तरह सत्तालोलुपता नहीं दिखी. वंशवादी विद्रूपता भरी राजनीति के वर्तमान दौर में इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है कि पिता के बीस वर्षीय मुख्यमंत्री कार्यकाल में ‘सत्ता की गोद’ में रहते हुए भी उन्होंने सरकार और संगठन से स्वयं को अलग-थलग रखा. जायज-नाजायज कभी कोई फायदा नहीं उठाया. खुद के मार्फत दूसरों को भी नहीं उठाने दिया. उनके आचरण में कभी अकड़ व अहंकार नहीं दिखा. वरिष्ठ नेताओं के प्रति हमेशा सम्मान का भाव ही नजर आया. महत्वपूर्ण बात यह भी कि उनको लेकर सत्ता और सियासत में न कभी कोई विवाद खड़ा हुआ और न किसी को अंगुली उठाने का अवसर मिला.


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सामान्य होने पर शक
यह अलग बात है कि आचरण में कोई खोट नहीं दिखने पर उनकी सरलता और निस्पृहता को लेकर उनके सामान्य होने पर शक किया जाने लगा. इस शक को मजबूती देने जैसी एक झलक इस होली में भी दिखी. एक साथ जदयू (JDU) के दो बड़े नेताओं- विजय कुमार चौधरी (Vijay Kumar Chaudhary) और संजय झा (Sanjay Jha) के कंधों पर निशांत कुमार के हाथ के रूप में . इन सबके बावजूद यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि निशांत कुमार की सत्ता की छांव तले ‘वीतरागी भूमिका’ लोकतांत्रिक व्यवस्था में दूसरे मुख्यमंत्री पुत्रों एवं परिवार परस्त नेताओं के लिए नसीहत है.

सवाल तब उठेंगे
यहां गौर करने वाली बड़ी बात यह है कि निशांत कुमार का अभी किसी भी रूप में जदयू से कोई जुड़ाव नहीं है. जुड़ने की बाबत न नीतीश कुमार कुछ बोल रहे हैं और न अन्य कोई बड़ा नेता. तब भी निशांत कुमार सक्रिय राजनीति में उतरते हैं और उन्हें जदयू का नेतृत्व सौंपने की पहल होती है तब नीतीश कुमार इस मुद्दे को लेकर भी विरोधियों और आलोचकों के निशाने पर आ जा सकते हैं. कथनी और करनी में फर्क को लेकर सवालों में घिर जा सकते हैं. उस स्थिति में विपक्ष के जो नेता निशांत कुमार के राजनीति में उतरने का स्वागत कर रहे हैं वे ही तंज कसेंगे कि कथनी परिवारवाद के विरुद्ध और करनी ठीक उसके उलट! ऐसे में इस मुद्दे पर वह नैतिक आधार खो बैठेंगे.

भूमिका क्या होगी?
हालांकि, अपने इस तथाकथित वसूलों के विपरीत नीतीश कुमार पुत्र निशांत कुमार को राजनीतिक विरासत सौंपते हैं, तो वह उनके लिए सार्वजनिक लज्जा जैसी कोई बात नहीं होगी. कारण कि राजनीतिक मामलों में कहना कुछ और करना कुछ, उनकी फितरत रही है. यह हर कोई जानता और समझता है. सत्ता की राजनीति में ‘बिहार के हित’ में पलटी मारते थे, परिवारवाद के मुद्दे पर पलटने का आधार ‘पार्टी का हित’ बन जाये तो वह अचरज की कोई बात नहीं होगी. वैसे, सवाल यहां यह भी है कि निशांत कुमार राजनीति में उतरते हैं तो उनकी भूमिका क्या होगी? जदयू का नेतृत्व संभालेंगे या फिर सांसद-विधायक बनकर रह जायेंगे? मंत्री या उपमुख्यमंत्री बना दिये जायेंगे? इन सवालों का जवाब वक्त देगा. फिलहाल तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejashwi Prasad Yadav) और चिराग पासवान (Chirag Paswan) के बाद निशांत कुमार भी नये नेता पुत्र के रूप में धीरे-धीरे बिहार की राजनीति में जगह बनाने तो लग ही गये हैं.

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