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सहरसा : यह सौगात ही है शहरवासियों के लिए

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तेजस्वी ठाकुर
26 मार्च, 2022

SAHARSA : यह है सहरसा जिला परिषद (Saharsa Zila Parishad) का डीबी रोड (DB Road) स्थित डाकबंगला. आसपास के लोगों के मुताबिक सात-आठ साल पहले इसका स्वरूप भूतबंगला सरीखा था. शहर के हृदयस्थल में रहने के बावजूद लोग झाड़-झंखाड़ भरे गहरे सन्नाटों में घिरे इस लंबे-चौड़े परिसर में घुसने से डरते थे. 1953 में निर्मित इस डाकबंगला (Dakbanglow) में भूत का वास था, ऐसी बात भी नहीं. लेकिन, भूत जैसा भय पैदा करने वाले दबंग लोग काबिज जरूर थे. इस कारण आमलोग जाने-आने से परहेज करते थे.

इसे संयोग ही कहा जायेगा कि 2014 में इसका रूप-रंग पूरी तरह से बदल गया. ऐसा कि आज की तारीख में यह एक रिसोर्ट के रूप में शहर के लोगों के आकर्षण का बहुत बड़ा केन्द्र बन गया है. लोग इसे सौगात मान रहे हैं. ऐसे विस्तृत भूभाग वाले डाकबंगला रहने का सौभाग्य हासिल कर रखे अन्य जिला परिषदों के लिए आमदनी बढ़ा कंगाली दूर करने की दृष्टि से एक आदर्श भी है. इसका रूप परिवर्तन कैसे हुआ इसकी कहानी कुछ यूं है.

नीरज कुमार गुप्ता और परिसर का परिवर्तित स्वरुप.

पहल नीरज कुमार गुप्ता की
डाकबंगला परिसर के पड़ोस में रहते हैं सहरसा जिला भाजपा (BJP) के पूर्व अध्यक्ष नीरज कुमार गुप्ता (Neeraj Kumar Gupta). डाकबंगला पर अनधिकृत कब्जा, अवांछित तत्वों का जमावड़ा और परिसर की दीर्घ बदहाली ने उन्हें इसकी स्थिति सुधारने के लिए प्रेरित किया. हालांकि, इससे उनका व्यावसायिक हित भी जुड़ा था.

उस वक्त सुरेन्द्र यादव (Surendra Yadav) सहरसा जिला परिषद के अध्यक्ष थे. उपविकास आयुक्त के पद पर योगेन्द्र राम (Yogendra Ram) थे. नीरज कुमार गुप्ता ने इस परिसर के सदुपयोग का सुझाव सुरेन्द्र यादव के समक्ष रखा. प्रस्ताव आधुनिकतम सामुदायिक भवन (आजकल की प्रचलित भाषा में रिसोर्ट) का रूप देने का था. यह सिर्फ सुरेन्द्र यादव को ही नहीं, उपविकास आयुक्त योगेन्द्र राम को भी जंच गया.

नहीं होती थी कोई आय
उस कालखंड में जिस रूप में डाकबंगला परिसर था उससे जिला परिषद (Zila Parishad) को आमदनी न के बराबर थी. जो थी भी उससे रख-रखाव का खर्च भी पूरा नहीं हो पाता था. इसके मद्देनजर संपूर्ण परिसर को पांच साल की लीज पर नीरज कुमार गुप्ता को दे दिया गया – 2014 से 2019 तक के लिए. हालांकि, ऐसा मनमाने ढंग से नहीं हुआ. लीज के लिए तमाम बिहित प्रक्रियाएं अपनायी गयीं. टेंडर निकला. चूंकि ऐसी पहली पहल थी इसलिए बोली लगाने वाले ज्यादा नहीं पहुंचे.

नीरज कुमार गुप्ता का टेंडर ही फाइनल हो गया. डाक साढ़े चार लाख की हुई. हर साल 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी की शर्त पर. नीरज कुमार गुप्ता ने पर्याप्त धन राशि खर्च कर डाकबंगला परिसर का स्वरूप निखार दिया. हालांकि, उस वक्त विविध आयोजनों के लिए इस परिसर की बुकिंग 30 से 40 हजार रुपये में ही होती थी. धीरे-धीरे लोगों में इसके प्रति आकर्षण पैदा हुआ और बुकिंग की संख्या भी बढ़ने लगी.

अब ऐसा दिखता है सहरसा जिला परिषद का डाकबंगला.

मनोज चौधरी ने भी लगाया धन
2019 में दूसरा डाक हुआ तो कई लोग उसे हासिल करने के लिए सक्रिय हो गये. परिणामतः बोली की रकम काफी बढ़ गयी. बड़ी बोली को देख-सुन नीरज कुमार गुप्ता इससे अलग हो गये. इस मामले में मनोज चौधरी (Manoj Chaudhary) भाग्यशाली रहे. जानकारों के मुताबिक मान्य प्रक्रिया के तहत 35 लाख में डाक उन्हीं को हस्तगत हो गया. कहते हैं कि मनोज चौधरी ने भी इसकी सूरत संवारने में काफी धन खर्च किया है.

लोग बताते हैं कि संपूर्ण परिसर की बुकिंग अब चार लाख रुपये में होती है. सालभर में 30 से 40 बुकिंग तो हो ही जाती है. बहरहाल, आयोजन के लिए बुकिंग (Booking) की बात तो अपनी जगह है, घूमने-टहलने के ख्याल से भी यह एक बेहतरीन स्थल है. अन्य वैसे जिला परिषदों, जिनके पास इतना बड़ा भूभाग है, वे इस रूप में अपनी आय बढ़ा सकते हैं, शहरवासियों को अनुपम सौगात दे सकते हैं.

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