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राजद की राजनीति : तो इस कारण कट गया मेहताजी का पत्ता!


एक नजर में

  • अध्यक्षविहीन अवस्था में है राजद

  • ‘कोपभवन’ में जगदानंद सिंह!

  • राजद नेतृत्व ने गंभीरता से नहीं लिया

  • खानदानी समाजवादी परिवार से हैं मेहता जी

  • नहीं बदले हैं कभी दल

तापमान लाइव ब्यूरो
08 अप्रैल 2025

Patna : वैसे कुछ लोगों को आप जरूर जानते होंगे, जो यह कह कर शेखी बघारने से नहीं अघाते कि किसी अनजान नम्बर से आने वाले फोन काल की वे नोटिस नहीं लेते. आप यह जानकार हैरत में पड़ जायेंगे कि इसी तरह की शेखी बघारने के कारण एक संभावनाशील राजद (RJD) नेता की पार्टी के मामले में मिट्टी पलीद हो गयी है. राजनीति में रूचि रखने वालों को मालूम ही होगा कि बिहार प्रदेश राजद इन दिनों अध्यक्षविहीन अवस्था में है. कारण कि लम्बे समय से अध्यक्ष पद पर जमे जगदानंद सिंह महीनों से घर धरे हुए हैं. आफिस नहीं आ रहे हैं. जरूरी काम घर से चला रहे हैं. यह कहें कि ‘कोपभवन’ में चले गये हैं, तो वह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

गंभीरता से नहीं लिया
हालांकि,उनके ‘कोपभवन’ में जाने का यह कोई पहला वाकया नहीं है. पूर्व में भी वह ऐसा करते रहे हैं. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) मान मनौवल कर कार्यालय लौटा लाते रहे हैं. इस बार लालू प्रसाद ने उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया या जगदानंद सिंह ने उनके अनुनय विनय को ठुकरा दिया, यह नहीं कहा जा सकता. राजद के अघोषित सुप्रीमो तेजस्वी प्रसाद यादव का रूख क्या रहा यह भी नहीं. जगदानंद सिंह (Jagdanand Singh) राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के वफादार माने जाते हैं. राजद के संविधान के अनुसार उनका अध्यक्ष वाला कार्यकाल बहुत जल्द पूरा होने वाला है. संभवतः इस वजह से भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने उनके मुंह फुला लेने को गंभीरता से नहीं लिया. ‘कोपभवन’ में छोड़ विकल्प तलाशने लगा.

केन्द्रीय एजेंसी का छापा
राजद के नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच जो चर्चाएं होती हैं उसके मुताबिक विकल्प की तलाश के क्रम में सबसे ऊपर आलोक कुमार मेहता का नाम आया. आलोक कुमार मेहता (Alok Kumar Mehta) खानदानी समाजवादी परिवार से हैं. राजनीति में लाख उठापटक के बावजूद जगदानंद सिंह की तरह वह भी कभी दल नहीं बदले हैं. लालू प्रसाद के निष्ठावान हैं. कुशवाहा समाज (Kushwaha Community) से हैं, जिन पर अभी सभी दलों का जोर है. अपराधी और दबंग की जगह विनम्र और लोकलाज की समझ रखने वाले नेता की उनकी छवि है. यह अलग बात है कि हाल में उनके घर और ठिकानों पर को-ऑपरेटिव बैंक में कथित तौर पर धांधली कर जुटाये गये धन की पकड़ के लिए केंद्रीय एजेंसी ने छापा डाला था.


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मेहता जी फोन नहीं उठाते
उनके घर से क्या मिला, नहीं मिला, इस पर बहस नहीं हो रही है. क्योंकि राजद ने पहले ही केंद्रीय एजेंसियों को नरेंद्र मोदी का पिट्ठू करार दिया है. राजद के लोग जब इतने छापे पड़ने पर भी लालू प्रसाद और उनके परिवार के लोगों को दोषी नहीं मानते हैं तो एक अदद छापे के लिए आलोक कुमार मेहता को कैसे दोषी मान लें! सो, केंद्रीय एजेंसियों के छापे को भी प्रदेश अध्यक्ष की दावेदारी के रास्ते में अवरोध नहीं माना गया. सिर्फ एक शिकायत दर्ज की गयी- मेहताजी फोन नहीं उठाते हैं. यह बात निकली तो राजद के कई नेताओं ने हामी भरी कि ऐसा उनके साथ भी हुआ है. नेताओं ने उन दिनों को याद किया, जब आलोक कुमार मेहता राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के मंत्री हुआ करते थे. हद तो यह हो गयी कि एक बार उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर दावा किया कि आज से वह खास लोगों की बात क्या, आम लोगों का भी फोन उठायेंगे.

यही होगा नहीं बनने का कारण
इस घोषणा के अगले दिन कई आम और खास लोगों ने उन्हें फोन किया. नहीं उठना था, नहीं उठा. उस समय के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव के एक करीबी मित्र की जब आलोक कुमार मेहता से फोन पर बात नहीं हुई तो वह उनके सरकारी आवास पर गये. शिकायत की कि आप फोन नहीं उठाते हैं. मेहताजी ने मुंह बनाकर जवाब दिया-क्या उठायें. मेरा फोन भी तो कोई नहीं उठाता है. ऐसा कहते हुए उन्होंने नवादा जिले के एक सीओ को फोन मिलाया. घंटी बजती रही, सीओ साहब ने जवाब नहीं दिया. कहा-देखिये…यही हाल है. खैर, इस बार अगर आलोक कुमार मेहता राजद का प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनते हैं तो न बनने का यही कारण होगा – फोन नहीं उठाना. मतलब किसी की चिंता नहीं करना. इस तरह का अध्यक्ष किसी और दल में भले चल जाये, राजद में तो नहीं चलेगा.

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