वक्फ विधेयक : करते क्या नीतीश कुमार…खड़ा था जदयू के वजूद का सवाल !
अविनाश चन्द्र मिश्र
06 अप्रैल 2025
नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की समाजवादी समझ की समावेशी राजनीति में मुसलमानों (Muslims) के प्रति सहिष्णुता, सहानुभूति और सदाशयता समाविष्ट है. यही वजह है कि भाजपा (BJP) के साथ रहने के बाद भी उनकी छवि धर्मनिरपेक्ष मानी जाती है. पर, उनके लिए चिंता की बड़ी बात यह है कि मुस्लिम समुदाय में वैसी स्वीकार्यता नहीं बन पायी है, जैसी जदयू (JDU) चाहता है. नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्षता को अवसर विशेष पर अदब के साथ गोल टोपी जरूर पहनायी जाती है, लेकिन चुनावों में पहनायी जाने वाली टोपी का शक्ल बदल जाता है.उनके उम्मीदवारों को नकार जदयू के चुनावी इरादों को टोपी पहना दी जाती है. थोड़ा-बहुत मुस्लिम मत आमतौर पर जदयू के वैसे दो-चार उम्मीदवारों को ही मिल पाते हैं जो उसी समुदाय के होते हैं.
न भूतो न भविष्यति
उनकी यही समझ जदयू के रणनीतिकारों को मुसलमानों से एकतरफा मोहब्बत का अहसास करा देती है. गाल बजाने के अभ्यस्त जनों की बात छोड़ दें, प्रायः हर कोई इस बात को स्वीकार करता है कि नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री (Chief Minister) के रूप में मुसलमानों के हित में जितने काम किये और कराये हैं, वे इतिहास में ‘न भूतो न भविष्यति’ के रूप में दर्ज हो रहे हैं. मदरसों (Madarason) का उद्धार, शिक्षकों की बदहाल जिन्दगी में बहार, पसमांदा (Pasmanda) मुसलमानों के लिए आरक्षण, कब्रिस्तानों (Kabristanon) की घेराबंदी, भागलपुर (Bhagalpur) के दंगा पीड़ितों को न्याय के साथ पुनर्वास, सुरक्षा की भावना की पुनर्स्थापना, सत्ता और सियासत में समुचित भागीदारी आदि ऐसे अनेक कार्य हैं जिनसे इस समुदाय के हालात काफी कुछ बदल गये हैं.
तब इतनी हाय- तौबा क्यों ?
सैद्धांतिक तौर पर इन कार्यों को मुख्यमंत्री के शासनिक और नैतिक दायित्वों में समेटा जा सकता है. पर, क्या नीतीश कुमार के प्रति ऐसी ही कुछ नैतिकता लाभान्वित तबके की नहीं बनती है ? बनती है तो एक-दो अपवादों को छोड़ चुनाव-दर-चुनाव जदयू को टोपी ही क्यों पहनायी जाती रही है? अगर नहीं बनती है तो फिर वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक (Wakf Board Amendment Bill) के मामले में जदयू के रूख पर इतनी हाय-तौबा क्यों मचायी जा रही है? वक्फ संशोधन विधेयक से किसका नुकसान और किसको फायदा होगा, बहस इस पर नहीं.
मुस्लिम समुदाय जिम्मेदार नहीं?
जदयू के निर्णय को कोसने वालों को पहले इस पर मंथन करना चाहिये कि आखिर नीतीश कुमार को कथित तौर पर अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि पर ‘दाग’ लगाने के लिए क्यों बाध्य होना पड़ा? तथाकथित धर्मनिरपेक्षियों की नजर में मुस्लिम मानस को आहत करने वाले भाजपा (BJP) सरकार के विवादित फैसलों मसलन सीएए (CAA), तीन तलाक (Triple Talaq), धारा 370 (Section 370), वक्फ (Waqf) आदि मामलों में भाजपा के साथ उन्हें क्यों खड़ा होना पड़ा ? क्या इसके लिए मुस्लिम समुदाय जिम्मेदार नहीं है?
की जा रहीं हास्यास्पद बातें
विडम्बना देखिये, इन सवालों पर गौर फरमाने के बजाय एक तबका नीतीश कुमार और जदयू पर मुसलमानों के साथ धोखा करने का आरोप मढ़ रहा है. इस तबके में जदयू के कुछ तथाकथित मुस्लिम नेता भी हैं. ऐसे नेताओं का राजनीति में वजूद क्या है, उन्हें खुद नहीं मालूम और वे जदयू का वजूद मिटा देने का दम भर रहे हैं. दूसरी तरफ कतिपय मुस्लिम संगठनों द्वारा 2025 के विधानसभा चुनाव में जदयू को सबक सिखाने जैसी हास्यास्पद बातें की जा रही हैं. हास्यास्पद इस मायने में कि मुस्लिम समुदाय के जीत दिलाऊ वोट जदयू को मिलते कहां हैं जो ऐसी धमकी से पार्टी में हाहाकार मच जाये? मिलते रहते तो बात कुछ और होती, धमकी का रंग दिखता.
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मुसलमानों की परवाह नहीं
दूसरे नेताओं की बात छोड़ दें, जदयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Rajiv Ranjan Singh alias Lallan Singh) और राष्ट्रीय महासचिव गुलाम रसूल बलियावी (Ghulam Rasool Baliavi) जैसे बड़े नेता खुले मंच से उलाहना देते रहे हैं कि मुस्लिम समुदाय के उत्थान के लिए नीतीश कुमार ने जितना कुछ किया है उसके अनुपात में उनके मत जदयू को नहीं मिलते हैं. इन बयानों के आलोक में इसे आसानी से समझा जा सकता है कि वक्फ बोर्ड विधेयक के पक्ष में खड़ा हो जदयू ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि उसे मुसलमानों के समर्थन की परवाह नहीं है. वैसे, उसका कहना है कि वक्फ का नया कानून मुसलमानों, विशेष कर पसमांदा मुसलमानों के व्यापक हित में है इसलिए उसने इसका समर्थन किया है.
पार्टी बिखर जाती
धर्मनिरपेक्ष छवि में आयी विकृति मिटाने के लिए तर्क जो रखे जायें, हकीकत यह भी है कि जदयू विरोध में खड़ा होता तब वक्फ विधेयक का जो हश्र होता सो होता ही, नीतीश कुमार की पार्टी न सिर्फ टूट जाती, बल्कि उसके वजूद पर भी बड़ा खतरा उत्पन्न हो जाता. लोकसभा (Lok Sabha) में वक्फ विधेयक पर बहस में जदयू संसदीय दल के नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की भाव-भंगिमा ऐसा ही कुछ संकेत दे रही थी. बहरहाल, नीतीश कुमार के इस निर्णय से उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि पर आंच आयी हो या नहीं, मुस्लिम संगठनों की आक्रामकता के प्रतिक्रिया स्वरूप जदयू के जनाधार में मजबूती तो आ ही गयी है. कितनी, यह 2025 का चुनाव परिणाम बतायेगा.
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