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सारण : सच्चिदानंद ने अटका रखी है सांसें

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राजेश पाठक
29 मार्च, 2022

CHHAPRA : बिहार विधान परिषद के सारण (Saran) स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव पर सबकी नजर है. ज्यादा उत्सुकता राजद (RJD) के नये ‘राजनीतिक प्रयोग’ के परिणाम और निवर्तमान विधान पार्षद सच्चिदानंद राय (Sachidanand Ray) की बगावत से भाजपा (BJP) को होने वाले नुकसान को जानने-समझने को लेकर है. राजद ने इस बार अपने सामाजिक आधार (यादव-मुस्लिम) को विस्तार देने के ख्याल से ब्राह्मण उम्मीदवार मैदान में उतारा है. पहले यादव या मुस्लिम समाज से ही उसके उम्मीदवार होते थे. निर्वाचित भी हुआ करते थे. 2015 के चुनाव (Election) में ब्रह्मर्षि समाज के भाजपा समर्थित सच्चिदानंद राय की जीत हुई. विधान परिषद (Vidhan Parishad) के पूर्व उपसभापति सलीम परवेेज (Salim Parvej) तब के महागठबंधन (Mahagathbandhan) के जदयू (JDU) समर्थित उम्मीदवार थे. सच्चिदानंद राय के सामने टिक नहीं पायेे थे. इस बार वह चुनाव से अलग हैं.

लाखों-करोड़ों का अदृश्य खेल
भाजपा में सच्चिदानंद राय (Sachidanand Ray) दावेदार थे. सिटिंग होने के नाते उनकी दावेदारी काफी मजबूत थी. इसके बावजूद दरकिनार कर दिये गये. लेकिन, वह मूकदर्शक की भूमिका में नहीं हैं. ‘बागी उम्मीदवार’ के तौर पर मैदान में ताल ठोंक रहे हैं. यह चुनाव दलीय आधार पर नहीं होता है. सामान्य मतदाताओं की सहभागिता नहीं होती है. इसके लिए एक ‘विशिष्ट मतदाता वर्ग’ है जो दलीय बाध्यताओं-बंधनों से मुक्त मतदान करता है. इस मतदाता वर्ग को अपने पक्ष में करने के लिए लाखों-करोड़ों का अदृश्य खेल होता है. चुनाव पर गहरी नजर रखने वालों की मानें तो इस बार भी वैसा ही कुछ हो रहा है. ऐसे में राजनीतिक दलों के सामाजिक आधार पर चुनाव परिणाम का आकलन कठिन है.

नीतीश कुमार भी नहीं चाहते थे
सारण (Saran) निर्वाचन क्षेत्र में आर्थिक दृष्टिकोण से दमखम वाले पांच उम्मीदवार हैं. संयोग ऐसा कि सभी सवर्ण समाज से है. स्पष्ट है कि इन पांचो में जिस किसी के ‘बटुए’ का मुंह ज्यादा बड़ा खुलेगा जीत उसी ओर सरकती दिखेगी. निवर्तमान विधान पार्षद सच्चिदानंद राय पर भाजपा नेतृत्व की बक्र दृष्टि थी. कथित रूप से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की भी. लेकिन, ऐसी भी नहीं कि उम्मीदवारी से वंचित कर हाशिये पर डाल दिये जायें. इसको जानते-समझते हुए सच्चिदानंद राय ‘इत्मीनान’ में थे. केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) से रिश्तेदारी पर पूरा भरोसा था. बेफिक्र रह चुनाव की पूरी तैयारी भी उन्होंने कर रखी थी.

ताकत का अहसास नहीं था
परन्तु, पार्टी के जो लोग उम्मीदवारी से बेदखल कराने की अदृश्य मुहिम चला रहे थे उनकी ताकत का अहसास शायद उन्हें नहीं था. इस मुहिम को वह बहुत हल्के में ले रहे थे. ऐसी कोई आशंका आमलोगों को भी नहीं थी.चुनाव के वक्त अचानक उनपर बिजलियां गिरा दी गयीं. एक झटके में किनारे लगा दिया गया. राजनीति एकबारगी चौंक गयी. उम्मीदवारी धर्मेन्द्र कुमार सिंह (Dharmendra Kumar Singh) को मिल गयी, जो महाराजगंज (Maharajganj) के भाजपा सांसद जनार्दन सिंह सिग्रिवाल (Janardhan Singh Sigriwal) के करीबी माने जाते हैं. सांसद के करीबी होने की पुष्टि इससे भी होती है कि उम्मीदवारी घोषित होने पर हरिहरनाथ मंदिर एवं अम्बिका स्थान में पूजा-अर्चना कर धर्मेन्द्र कुमार सिंह और कहीं नहीं, ‘मत्था टेकने’ सीधे जनार्दन सिंह सिग्रीवाल के ‘दरबार’ में हाजिर हो गये.

सिग्रीवाल की सियासी चाल
इन सबके मद्देनजर सामान्य समझ यही बनी कि सच्चिदानंद राय की भाजपा की उम्मीदवारी से बेदखली के पीछे जनार्दन सिंह सिग्रीवाल की सियासी चाल थी. ऐसी बातें कहने-सुनने वालों के पास यह ठोस तर्क भी है कि 2019 के संसदीय चुनाव में सच्चिदानंद राय महाराजगंज (Maharajganj) सेे जनार्दन सिंह सिग्रीवाल के खिलाफ भाजपा के दावेदार बन गये थे. पटना से लेकर दिल्ली तक उन्होंने न सिर्फ जुगाड़ भिड़ाया था, बल्कि उम्मीदवारी नहीं मिलने की स्थिति में भाजपा के समक्ष मुसीबत पैदा हो जानेे की बात भी कही थी. हालांकि, उनकी ‘धमकी’ का असर नहीं पड़ा, भाजपा की उम्मीदवारी जनार्दन सिंह सिग्रीवाल को ही मिली. वह निर्वाचित भी हुए.

भुगतना पड़ा खामियाजा
सच्चिदानंद राय की बेदखली के संदर्भ में एक चर्चा यह भी है कि इसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की भी भूमिका रही है. निवर्तमान विधान पार्षद लंबे समय से नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ मुखर ही नहीं थे, आक्रामक अंदाज में उनके कार्यकलापों की आलोचना करते रहते थे. नीतीश कुमार की जगह भाजपा से मुख्यमंत्री की मांग उठाते रहते थे. विश्लेषकों की समझ है कि इसका भी उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा. सच्चिदानंद राय की जगह जिस धर्मेन्द्र कुमार सिंह को भाजपा की उम्मीदवारी मिली है उन्हें भी प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझना पड़ रहा है. भाजपा से बगावत कर सच्चिदानंद राय के मैदान में कूद जाने का तो कुछ न कुछ असर हैे ही. पार्टी के विधायकों एवं प्रभावशाली नेताओं के एक बड़े तबके का भी संपूर्ण सहयोग-समर्थन मिलता नहीं दिख रहा है. ये सब न तो नामांकन से पूर्व हुई जनार्दन सिह सिग्रीवाल की प्रेस कांफ्रेंस में नजर आये और न नामांकन के वक्त ही.

दूर-दूर हैं घटक दल
सारण जिले में भाजपा के तीन विधायक हैं. छपरा से डा. चतुर्भुजनाथ गुप्ता (डा. सीएन गुप्ता), तरैया से जनक सिंह (Janak Singh) और अमनौर से कृष्ण कुमार उर्फ मंटू सिंह (Krishna Kumar urf Mantu Singh). ये सब भाजपा उम्मीदवार धर्मेन्द्र कुमार सिंह के पक्ष में अलग-अलग अभियान चला रहे हों, तो वह अलग बात है, पार्टी के आधिकारिक चुनाव अभियान में इनकी कहीं कोेई झलक नहीं दिख रही है. इधर उपमुख्यमंत्री रेणु देवी (Renu Devi) के कार्यक्रम में डा. सीएन गुप्ता (Dr. C. N. Gupta) नजर आये थे. राजग के घटक दलों जदयू और ‘हम’ के स्थानीय नेताओं ने भी प्रायः दूरी ही बना रखी है. प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष पूर्व विधान पार्षद राधामोहन शर्मा (Radhamohan Sharma) चुनाव प्रभारी हैं. प्रबंधन का जिम्मा सोनपुर के पूर्व विधायक एवं प्रदेश भाजपा की अनुशासन समिति के अध्यक्ष विनय कुमार सिंह (Vinay Kumar Singh) को मिला हुआ है. भाजपा के युवा नेता प्रमोद सिग्रीवाल (Pramod Sigriwal) का मानना है कि इन तमाम नेताओं के निर्देशन में चुनाव अभियान चल रहा है. भाजपा समर्थित उम्मीदवार धर्मेन्द्र कुमार सिंह का किसी से कोई मुकाबला नहीं है.

दोबारा नहीं होता निर्वाचित
भाजपा से बेदखली के बाद सच्चिदानंद राय का शुरुआती तेवर टकराव वाला नहीं दिखा. पार्टी के प्रति समर्पित रहने की बात भी उन्होंने कही. इसके बावजूद लोगों को उन पर भरोसा नहीं जमा. हुआ भी वैसा ही. पहले सच्चिदानंद राय के पुत्र सत्यकी के मैदान में उतरने की चर्चा पसरी. बाद में वह खुद ताल ठोंकने लगे. अब तक का इतिहास है कि इस क्षेत्र से कोई दोबारा विधान पार्षद नहीं निर्वाचित हुआ है. इस मिथक को तोड़ने के लिए सच्चिदानंद राय पूरा जोर लगाये हुए हैं. जो दृश्य-परिदृश्य उभरे हुए हैं उसमें मिथक टूटने की झलक दिखती जरूर है, पर अंतिम परिणााम वैसा ही निकलेगा , दावे के साथ नहीं कहा जा सकता. आम धारणा यह बनी है कि आखिर उनकी बेदखली का राजनीति से अलग कोई न कोई ठोस कारण रहा ही होगा.

हिसाब बराबर करने केे मूड में
कुछ लोगों का कहना रहा कि सच्चिदानंद राय ने पिछले चुनाव में खूब ख्वाब दिखाये थे. प्रायः वे सबके सब खंडित रह गये. इस चुनाव के मतदाता हिसाब बराबर करने केे मूड में नजर आ रहे हैं. राजद समर्थित उम्मीदवार सुधांशु रंजन के चुनाव अभियान से उनके समर्थकों को भी सच्चिदानंद राय के अभियान जैसा ही ‘सुखद अहसास’ होता है. ऐसा स्वाभाविक भी है. सच्चिदानंद राय अपने दम पर ‘खुशनुमा चुनावी माहौल’ बनाये हुए हैं तो सुधांशु रंजन (Sudhanshu Ranjan) के पीछे राजद की संपूर्ण ताकत लगी हुई है. सारण जिले में राजद के छह और माकपा के एक विधायक हैं. इन तमाम विधायकों का उन्हें साथ मिला हुआ है. लोग कहते हैं कि 2024 के संसदीय चुनाव में छपरा से राजद की उम्मीदवारी की उम्मीद बांध रखे मढ़ौरा के विधायक जितेन्द्र कुमार राय (Jitendra Kumar Ray) ने ब्राह्मण समाज के सुधांशु रंजन के लिए जोर लगाया था.

ठंडा पड़ गया शुरुआती जोश
हालांकि, राजद के अघोषित सुप्रीमो तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) से सुधांशु रंजन का खुद का सीधा संपर्क है. राजद में बिहार मुखिया संघ के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मिथिलेश कुमार राय (Mithilesh Kumar Ray) , मकेर के प्रखंड प्रमुख के पिता वीरेन्द्र कुमार राय (Birendra Kumar Ray) आदि भी दावेदार थे. ये तमाम लोग सुधांशु रंजन के लिए अभियान चला रहे हैं तो वह उनके राजद सुप्रीमो से संबंधों का ही असर है. इस बीच एक चर्चा यह भी हो रही है कि सुंधाशु रंजन को लेकर विधायक जितेन्द्र कुमार राय (Jitendra Kumar Ray) में जो प्रारंभिक जोश दिख रहा था, वह अब करीब-करीब ठंडा-सा पड़ गया है. यह स्थिति चुनाव तक बनी रह गयी तब परिणाम का रुख क्या हो जा सकता है, यह बताने की शायद जरूरत नहीं.

तारकेश्वर सिंह की प्रतिष्ठा
कांग्रेस के सुशांत कुमार सिंह (Sushant Kumar Singh) और निर्दलीय संजय सिंह (Sanjay Singh) भी मुख्य मुकाबले में आने के लिए प्रयासरत हैं. संजय सिंह पूर्व विधायक तारकेश्वर सिंह (Tarkeshwar Singh) के चचेरे भाई हैं. ऐसा माना जाता है कि उम्मीदवार भले संजय सिंह हों, चुनाव में प्रतिष्ठा तारकेश्वर सिंह की ही दांव पर है. जिले की राजनीति में भाजपा सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल और तारकेश्वर सिंह के रिश्तों में छत्तीस का आंकड़ा है.

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