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वहां आज भी भटकते रहते हैं अश्वत्थामा!

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तापमान लाइव ब्यूरो.
10 जुलाई, 2023

Bhopal : महाभारत (Mahabharata) में अश्वत्थामा (Ashwatthama) एक ऐसे योद्धा थे, जो अकेले दम पर संपूर्ण युद्ध लड़ने की क्षमता रखते थे. ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण (lord shri krishna) के श्राप की वजह से अश्वत्थामा आज भी धरती पर भटक रहे हैं. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के लोगों को इसकी अनुभूति होती रहती है. वैसे, कहां और किस रूप में, यहां जनश्रुतियों पर आधारित जानकारी दी जा रही है. मध्य प्रदेश के बुरहानपुर के समीप सतपुड़ा पहाड़ियों के शिखर पर स्थित है असीरगढ़ किला (Asirgarh Kila) . ऐसा माना जाता है कि इस किले के शिव मंदिर (Shiv Mandir) में अश्वत्थामा हर सुबह सबसे पहले पूजा करने आते हैं और ताजा फूल एवं गुलाल चढ़ा जाते हैं. पूजा से पूर्व वह तालाब में स्नान भी करते हैं. तालाब के बारे में बताया जाता है कि पहाड़ की चोटी पर होने के बावजूद यह तपती गर्मी में भी कभी सूखता नहीं.

मांगते हैं हल्दी और तेल
तालाब से थोड़ा आगे गुप्तेश्वर महादेव (Gupteshwar Mahadev) का मंदिर है. मंदिर के चारों तरफ खाइयां हैं. उन्हीं में से एक में गुप्त रास्ता बना हुआ है, जो खांडव वन से होता हुआ सीधे मंदिर में निकलता है. इसी रास्ते से अश्वत्थामा मंदिर में आते हैं और पूजा करते हैं. ऐसी भी धारणा है कि असीरगढ़ के अलावा मध्यप्रदेश के ही जबलपुर (Jabalpur) शहर के गौरीघाट पर नर्मदा नदी (Narmada River) के किनारे अश्वत्थामा भटकते रहते हैं. स्थानीय निवासियों के मुताबिक, कभी-कभी वे अपने मस्तक के घाव से बहते खून को रोकने के लिए हल्दी और तेल की मांग करते हैं. गांव के बुजुर्गों की मानें तो जो एक बार अश्वत्थामा को देख लेता है, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है.


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प्राप्त है अमरत्व
ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी (Hanuman Ji) सहित धरती पर कुल आठ लोग अमर हैं, उनमें अश्वत्थामा भी हैं. अश्वत्थामा के धरती पर भटकने के पीछे की कहानी यह है कि पिता द्रोणाचार्य (dronacharya) की मृत्यु ने उन्हें विचलित कर दिया था. महाभारत के बाद जब अश्वत्थामा ने पिता की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए पांडव (Pandavas) पुत्रों का वध कर दिया और पांडव वंश के समूल नाश के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु पुत्र परीक्षित (Abhimanyu’s son, Parikshit) को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, तब भगवान श्रीकृष्ण ने परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि ले ली और उन्हें तेजहीन कर दिया. इसके साथ ही उन्होंने अश्वत्थामा को युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप दे दिया.

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