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रामेश्वर सिंह ‘नटवर’ : नहीं हो सका नाट्य-लेखन का बहुत मूल्यांकन

बिहार के जिन प्रतिष्ठित साहित्यकारों की सिद्धि और प्रसिद्धि को लोग भूल गये हैं उन्हें पुनर्प्रतिष्ठित करने का यह एक प्रयास है. विशेषकर उन साहित्यकारों, जिनके अवदान पर उपेक्षा की परतें जम गयी हैं. चिंता न सरकार को है, न समाज को और न उनके वंशजों को. इस बार नाटकों से नाट्य साहित्य को गौरवान्वित करने वाले रामेश्वर सिंह ‘नटवर’ की स्मृति के साथ समाज और सरकार के स्तर से जो व्यवहार हो रहा है, उस पर दृष्टि डाली जा रही है. आलेख की यह चौथी कड़ी है.

अश्विनी कुमार आलोक
13 अप्रैल 2025

खिजरसराय (Khijarsarai) में कृष्णकांत दांगी (Krishnakant Dangi) की फोटो फ्रेमिंग की एक छोटी सी दुकान है. उसी से वह अपने परिवार की जीविका चलातेे हैं. लेकिन, मेरे आने की प्रतीक्षा में उन्होंने अपनी दुकान बंद रखी थी. वह चिरैली के एक छोटे से घर में अपने पिता की शब्द-स्मृतियों को लेकर बैठे हुए थे. चिरैली (Chirally) की मुख्य सड़क के किनारे करीब आठ घरों के बाद है कृष्णकांत दांगी का घर, करीब सौ मीटर की दूरी पर. उनसे यह मेरी दूसरी मुलाकात थी. पहली भेंट तो बिल्कुल अप्रत्याशित थी. लेकिन, एक पुत्र ने अपने लेखक पिता की साहित्य धरोहरों को संचित करने और उन्हें उनका प्राप्य साहित्य महत्व देने का जो बीड़ा उठाया था, उस पवित्र भावना ने उनके प्रति मेरा आदर जगा दिया था.इस बीच फोन पर अनेक बार बातें हो चुकी थी.


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अपेक्षा के अनुरूप नहीं

मैंने अपने द्वारा संपादित पुस्तक ‘बिहार के भूले-बिसरे साहित्यकार’ में रामेश्वर सिंह ‘नटवर’ (Rameshwar Singh ‘Natwar’) पर आलेख समाहित करने का निर्णय लिया था. गया (Gaya) के युवा लेखक मुकेश कुमार सिन्हा (Mukesh Kumar Sinha) ने मेरे अनुरोध पर रामेश्वर सिंह ‘नटवर’ पर एक आलेख (Article) मुझे भेजा भी था. लेकिन, अभी वह पुस्तक किसी कारणवश प्रकाशित नहीं हो पायी है. रामेश्वर, सिंह ‘नटवर’ का बहुत मूल्यांकन नहीं हो सका. वैसे भी, हिन्दी में नाटक को साहित्य की श्रेणी में रखनेवाले समालोचकों की संख्या न्यून है. रामेश्वर सिंह ‘नटवर’ के नाट्य-लेखन एवं साहित्यिक व्यक्तित्व के विश्लेषण से संबंधित लेखकीय प्रयास अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो सके. उनके लेखन का महत्व सिद्ध करने के लिए जिन लोगों ने कलम उठायी, उनमें हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) , शिवपूजन सहाय (shiv pujan sahay) , हंस कुमार तिवारी (Hans Kumar Tiwari) , मोहनलाल महतो ‘वियोगी’ (Mohanlal Mahto ‘Viyogi’) भी थे.

सामाजिक प्रतिष्ठा

रामेश्वर सिंह नटवर’ के भरे-पूरे परिवार में कोई साहित्यिक नहीं है. कृष्णकांत दांगी उनके सबसे छोटे पुत्र हैं. नटवर जी के बड़े पुत्र साठ वर्ष से ऊपर की उम्र के हैं. एक पुत्र की बहुत पहले किसी ने गोली मार कर हत्या कर दी थी. सभी पुत्रों के अपने-अपने परिवार हैं. चिरौली ही में उनके अलग- अलग घर हैं. सबसे छोटे पुत्र कृष्णकांत दांगी के घर में मैं अतिथि के रूप में रामेश्वर सिंह ‘नटवर’ के साहित्य, जीवन और सामाजिक प्रतिष्ठा का अध्ययन करने के लिए पहुंचा था. कृष्णकांत दांगी का यह घर गांव की सड़क के किनारे है, लेकिन उनके घर तक सड़क की सदाशयता नहीं पहुंचती, गली की संकीर्णता का ही आसरा है. यह स्वाभाविक ही था कि रामेश्वर सिंह ‘नटवर’ के संबंध में जानने-समझने की इच्छा से कोई उनके घर पहुंचा हो, तो उनके सभी वंशजों से मिलने और बातें करने का प्रयास करेगा. किंतु, किसी असाहित्यिक व्यक्ति को साहित्यिक बातें निष्प्रयोजन और अनावश्यक लगती हैं.

पिता की स्मृति श्रद्धा

कृष्णकांत दांगी को छोड़कर उनके किसी और भाई-भतीजे को इससे कोई लेना-देना नहीं कि उनके पूर्वज रामेश्वर सिंह नटवर कभी बड़े नाटककार के रूप में सुख्यात थे. कृष्णकांत दांगी महज आठ साल के थे. जब उनके पिता रामेश्वर सिंह ‘नटवर’ का देहांत हुआ था. न तो उन्हें साहित्य (Sahitya) की समझ उस समय थी और न ही वह अब साहित्य लिख-पढ़ पाते हैं. परंतु, पिता की स्मृति श्रद्धा ने उन्हें उनकी साहित्य धरोहरों को समेटने -सहेजने को उद्वेलित कर रखा है. वह निरंतर ऐसे प्रयास कर रहे हैं.

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