सुपौल : साहेबान, भ्रष्टाचारियों पर हैं मेहरबान…!
प्रवीण गोविन्द
01 अप्रैल, 2022
SUPAUL : सुपौल की धरती पर जब किसी मायने में संपूर्णता के लिए भीतर-बाहर की पड़ताल की जाती है तो हाथ अक्सर तीन नंबर ही लगता है. किया क्या जाये, बुनियाद ही तीन नंबर से रखी जाती है. जिले के इतिहास में ऐसे तीन नंबरियों की कमी नहीं रही. वैसे अनेक लोगों के लाल कोठी की हवा खाने के बाद भी वे अपने झंडाबरदार छोड़ गये हैं जो उनकी इस तीन नंबरी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं. नाला…! तीन नंबर ईंट-तीन नंबर ईंट, लोकल बालू-लोकल बालू, घटिया सीमेंट-घटिया सीमेंट, गिट्टी भी ठीक नहीं-गिट्टी भी ठीक नहीं, यह एक गीत है, जिसे कल तक पब्लिक गा रही थी और आगे…माहौल में बेबसी है. तमाम नकली चेहरों पर पड़े आदर्श के नकाब के बीच सुपौल-सिंहेश्वर पथ के किनारे आधा-अधूरा घटिया नाला निर्माण कार्य संपन्न हो गया. जिम्मेदारों ने न कभी काम का निरीक्षण किया, न रोका, न टोका. आंखों के सामने तीन नंबर का काम होता रहा.
चुप हो जाती है असहाय पब्लिक
सुपौल-सिंहेश्वर पथ के दायें किनारे इस नाले के निर्माण में एक माह से अधिक समय से खुलेआम तीन नंबर ईंट व लोकल बालू का प्रयोग जारी रहने के बाद भी सभी के सभी चुप्पी साधे रहे. कहते हैं कि यहां एक काकस है, इसके आगे किसी की नहीं चलती. इस काकस का नेतृत्व जनाब करते हैं और सभी जानते हैं कि जनाब को किसका आशीर्वाद प्राप्त है. सो, जनाब का बाल भी बांका नहीं होता. बड़े आराम से तीन नंबर का काम संपन्न हो जाता है और पत्ते तक नहीं हिला करते. पब्लिक खीजती है, बाल नोचती है, सिर पटकती है और अंततः असहाय होकर चुप हो जाती है. अधिकारी कार्रवाई की बजाय खामोशी साध लेते हैं.
जुबां पर ताले लग चुके हों, वहां…!
गौरतलब है कि सूबे में सबसे स्वच्छ शहर का तमगा प्राप्त आदर्श नगर परिषद का हाल-बेहाल है. यहां करप्शन रुकने का नाम नहीं ले रहा है. समाज के सुलझे विचार के लोगों का कहना है कि वरीय अधिकारियों को गंभीर होने की जरूरत है. यहां सवाल उठता है कि इतना कुछ होने के बाद भी जहां वरीय अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हों और जुबां पर ताले लग चुके हों, वहां…! जहां डीडीसी, डीआरडीए के डायरेक्टर, अभियंता, थानेदार, चिकित्सक, बैंककर्मी, कर्मचारी, मुखिया, बीडीओ, सीओ, बीईओ तक जेल की हवा खा चुके हों, भ्रष्टाचार में संलिप्त रहे हों वहां… जहां डेग-डेग पर भ्रष्टाचार हो वहां? माफी चाहता हूं, जहां हमाम में सभी नंगे हों, वहां…! हालांकि, सुपौल में मीटिंग-मीटिंग का खेल खूब होता है. यह अलग बात है कि भ्रष्टाचारियों के आगे सब फेल है.
संडास की तरह बजबजा रही है व्यवस्था
भ्रष्टाचार सुपौल के लिए कलंक है और इसको मिटाये बिना यहां की वास्तविक प्रगति संभव नहीं है. लेकिन, जहां दागदार व भ्रष्ट लोगों का बोलबाला हो वहां? सुपौल की धरती पर भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाये जाने की ज़रूरत है. इसके लिए सामाजिक, आर्थिक, कानूनी एवं प्रशासनिक उपाय अपनाये जाने चाहिये. कहने के लिए तो भ्रष्टाचारियों के लिए भारतीय दण्ड संहिता में दण्ड का प्रावधान है तथा समय-समय पर भ्रष्टाचार निवारण के लिए समितियां भी गठित हुई हैं और इस समस्या के निवारण के लिए भ्रष्टाचार निरोधक कानून भी पारित किया जा चुका है, फिर भी अब तक इस पर नियंत्रण स्थापित नहीं किया जा सका है. सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लगातार जीरो टालरेंस की बात कर रही है, लेकिन यहां तो सरेआम भ्रष्टाचार है. कोई देखने-सुननेवाला नहीं है. व्यवस्था संडास की तरह बजबजा रही है.
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भ्रष्टाचार का किला सुपौल जिला
बता दें कि सुपौल जिला भ्रष्टाचार का किला बन गया है. एक से एक फर्जीवाड़ा और घोटाला सामने आने के बाद भी पता नहीं क्यों यह बढ़ता ही जा रहा है. बहरहाल, असहाय होकर पब्लिक चुप हो गयी है. जहां डेग-डेग पर करप्शन हो, वहां कैसी आस, कैसा विश्वास. यहां नियम-कानून कागजों में और अलमारियों में बंद फाइलों की खुशबू के बीच मदहोश होकर अफसर कुर्सियों पर बैठे रहा करते हैं. कुल मिलाकर केशरिया रंग के साथ हरी चादर में लिपटी सुशासन बाबू की सरकार में सुपौल-सिंहेश्वर पथ के किनारे आधे-अधूरे घटिया नाला निर्माण कार्य पूरा हो गया. जिम्मेदार चुप्पी साधे रहे. लोगबाग कह रहे हैं साहेबान, आखिर भ्रष्टाचारियों पर क्यों हो मेहरबान….
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