कोशी में पप्पू यादव की हैसियत: वोटकटवा की भी नहीं रह पायी
तेजस्वी ठाकुर
1 जुलाई, 2021
सहरसा. 2015 के निराशाजनक परिणामों को नजरंदाज कर राजनीति के विश्लेषक जन अधिकार पार्टी (जाप) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की आक्रामक राजनीतिक गतिविधियों के मद्देन जर 2020 के विधानसभा चुनाव के गहरे रूप से प्रभावित होने की संभावना जता रहे थे. राज्य के अन्य हिस्सों की बात अपनी जगह है, पप्पू यादव के कर्म क्षेत्र कोशी अंचल में भारी उलट फेर का उनका अनुमान था. महागठबंधन, खासकर राजद की चुनावी सेहत प्रभावित होने की बात कही जा रही थी. ‘बदलाव की बयार’ से बड़ी उम्मीदें पाल रखे राजद को मायूसी तो मिली, पर उसमें ‘जाप’ की कोई भूमिका नहीं रही. इस पार्टी के लिए परिणाम 2015 की तरह भी नहीं रहा. यूं कहें कि उससे कहीं अधिक सदमादायक रहा. सिमटे-सिकुड़े जनाधार में भी भारी क्षरण दृष्टिगोचर हुआ. सामाजिक कार्यों में पप्पू यादव की सघन सक्रियता का कहीं कोई असर नहीं पड़ा. कोशी अंचल के तीन जिलों – मधेपुरा, सहरसा और सुपौल में13 विधानसभा क्षेत्र हैं. 2015 में ‘जाप’ ने सुपौल को छोड़ 12 निर्वाचन क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे थे. सुपौल में संभवतः ऊर्जा मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव के ‘सम्मान’ में वह चुनावी अखाड़े से अलग रही
थी. इस बार भी वैसा ही हुआ. इस अंचल के 10 विधानसभा क्षेत्रों में ‘जाप’ के उम्मीदवार थे. मुख्य संघर्ष में तो पार्टी कहीं नहीं ही रही उसकी ‘उपलब्धियों’ से सिर्फ एक क्षेत्र का परिणाम प्रभावित हुआ. अन्य में इसकी मौजूदगी का कोई मतलब नहीं रहा. एकाध अपवादों को छोड़ हर क्षेत्र में जीत-हार का फैसला भारी मतों के अंतर से हुआ. ‘जाप’ सुप्रीमो पूर्व सांसद पप्पू यादव जिस मधेपुरा विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार थे, वहां भी राजद का हित अप्रभावित रहा. उलटे उनकी ही मिट्टी पलीद हो गयी. पूर्व की तरह इस बार भी उनके धुर विरोधी चन्द्रशेखर राजद के उम्मीदवार थे. पप्पू यादव खुद तो निर्वाचित नहीं ही हुए, चन्द्रशेखर को भी रोक नहीं पाये. इसके बरक्स 26 हजार 462 मत झटक उन्होंने राजग की राह अवश्य अवरुद्ध कर दी.
सामान्य समझ है कि इस रूप में पप्पू यादव का ‘हस्तक्षेप’ नहीं हुआ होता तो शायद परिणाम कुछ और सामने आता. उनके सर्मथकों का साथ जद(यू) को मिल जाने से चन्द्रशेखर की हार की उनकी चाहत पूरी हो जाती. उनके मैदान में रहने से 15 हजार 72 मतों के अंतर से चन्द्रशेखर की जीत हो गयी. जद(यू) की उम्मीदवारी पूर्व मुख्यमंत्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल (बीपी मंडल) के अधिवक्ता पौत्र निखिल मंडल को मिली थी. चन्द्रशेखर के 79 हजार 839 मतों के मुकाबले उन्हें 64 हजार 767 मत ही मिल पाये. मुख्यतः चन्द्रशेखर को हार का स्वाद चखाने के मकसद से मधेपुरा के अखाड़े में उतरे पप्पू यादव को निश्चय ही इसका मलाल हुआ होगा. जहां तक व्यक्तिगत उपलब्धि की बात है, तो उनके लिए संतोष की बात यह हो सकती है कि 2015 के ‘जाप’ उम्मीदवार अशोक कुमार से उन्हें पांच गुणा अधिक मत मिले. लेकिन, 2019 के संसदीय चुनाव में इस विधानसभा क्षेत्र में मिले 30 हजार 469 मतों से 4 हजार 07 कम मत मिलने से भविष्य की चिंता भी अवश्य सताती होगी. खैर, चुनावी राजनीति में ऐसा होता रहता है. पर, यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि पप्पू यादव के अलावा कोशी अंचल में ‘जाप’ का और कोई उम्मीदवार 10 हजार मतों का आंकड़ा नहीं छू पाया. जबकि 2015 में इसके चार उम्मीदवार 10 हजार से अधिक मत पाये थे.
आलमनगर में ‘जाप’ प्रत्याशी सर्वेश्वर प्रसाद सिंह को 8 हजार 466 मत मिले तो निर्मली में विजय कुमार यादव को 8 हजार 886 मत. 2015 में जयप्रकाश सिंह आलमनगर से उम्मीदवार थे. 5 हजार 333 मतों में सिमट गये थे. उनकी तुलना में सर्वेश्वर प्रसाद सिंह को कुछ अधिक मत अवश्य मिले, पर 2019 के संसदीय चुनाव में पप्पू यादव को इस क्षेत्र में प्राप्त 9 हजार 574 मतों से वह पीछे ही रह गये. इस क्षेत्र से निषाद समाज के नवीन कुमार राजद के उम्मीदवार थे. जद(यू) प्रत्याशी पूर्व मंत्री नरेन्द्र नारायण यादव से 28 हजार 680 मतों से पिछड़ गये. नरेन्द्र नारायण यादव को 01 लाख 02 हजार 517 मत मिले तो नवीन कुमार को 73 हजार 837 मत. आंकड़े बताते हैं कि सर्वेश्वर प्रसाद सिंह मैदान में नहीं होते तो हार-जीत के मतों का अंतर कुछ कम या अधिक भले हो जाता, लेकिन राजद उम्मीदवार को सफलता नहीं ही मिलती. इसी तरह निर्मली में राजद प्रत्याशी पूर्व विधायक यदुवंश कुमार यादव की पराजय 43 हजार 922 मतों के विशाल अंतर से हुई. इसमें ‘जाप’ के विजय कुमार यादव को मिले 8 हजार 886 मतों का कोई महत्व नहीं रह जाता है. विजय कुमार यादव 2015 में भी इस पार्टी के उम्मीदवार थे. 10 हजार 01 मत उनके खाते में गये थे. राजग में अनिरूद्ध प्रसाद यादव जद(यू) के उम्मीदवार थे. उनके खाते में 92 हजार 439 मत गये. यदुवंश कुमार यादव 48 हजार 517 मतों में ही अटक गये. लोजपा प्रत्याशी अर्जुन प्रसाद मेहता 12 हजार 725 मत पाने में कामयाब रहे. 2015 में बिहारीगंज में ‘जाप’ की उम्मीदवारी श्वेत कमल को मिली थी. 12 हजार 218 मत बटोरने में सफल रहे थे. 2019 के संसदीय चुनाव में इस क्षेत्र के 13 हजार 479 मतदाताओं का साथ पप्पू यादव को मिला था. विधानसभा के चुनाव में इस बार के उम्मीदवार प्रभास कुमार को 5 हजार 604 मत ही मिल पाये. जद(यू) के निरंजन कुमार मेहता की जीत 18 हजार 711 मतों के अंतर से हुई. जद(यू) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव की पुत्री सुभाषिनी बुंदेला उर्फ सुभाषिनी शरद यादव कांग्रेस की उम्मीदवार थीं. अपने नाम के आगे पिता का नाम जोड़ने के बावजूद चुनाव नहीं जीत पायीं तो इसमें ‘जाप’ के मतों की कोई भूमिका नहीं रही. निरंजन कुमार मेहता के 81 हजार 531 मतों की तुलना में सुभाषिनी बुंदेला को 62 हजार 820 मत ही मिल पाये. पूर्व मंत्री रेणु कुमारी के पति विजय कुमार सिंह लोजपा के उम्मीदवार थे. 8 हजार 764 मतों में सिमट गये. सिंहेश्वर में ‘जाप’ उम्मीदवार अनिल कुमार बंधु थोड़ा और जोर लगाते तो शायद राजद के चन्द्रहास चैपाल को मुंह की खानी पड़ जाती. जद(यू) के पूर्व विधायक रमेश ऋषिदेव पर चन्द्रहास चैपाल की जीत 5 हजार 573 मतों से हुई. अनिल कुमार बंधु 3 हजार 830 मत ही बटार पाये. 2015 में ‘जाप’ की उम्मीदवारी अमित कुमार भारती को मिली थी जिन्होंने 15 हजार 106 मत हासिल कर राजनीति को चैंका दिया था.
सहरसा जिले के सोनवर्षा में महागठबंधन में कांग्रेस की उम्मीदवारी तारणी ऋषिदेव को मिली थी. रत्नेश सदा जद(यू) के उम्मीदवार थे. उनकी हार सुनिश्चित करने के मकसद से लोजपा ने सरिता देवी (पासवान) को मैदान में उतारा था. हालांकि, पूर्व के चुनावों में भी वह इस पार्टी की उम्मीदवार होती थीं. इस बार उन्हें 13 हजार 566 मत मिले जो कांग्रेस प्रत्याशी तारणी ऋषिदेव की हार का कारण बन गये. सरिता देवी को मिले मतों से 100 मत कम यानी 13 हजार 466 मतों के अंतर से जद(यू) उम्मीदवार रत्नेश सदा की जीत हो गयी. मनोज पासवान ‘जाप’ के उम्मीदवार थे. 4 हजार 790 मत तो उन्हें मिले, पर उन मतों का हार-जीत में कोई मतलब नहीं रहा. उनके मैदान में नहीं रहने पर भी तारणी ऋषिदेव की हार होती ही. मनोज पासवान 2015 में भी मैदान में थे. तब उन्हें 5 हजार 443 मतदाताओं का समर्थन मिला था. 2019 के संसदीय चुनाव में इस क्षेत्र में ‘जाप’ सुप्रीमो पप्पू यादव को 9 हजार 979 मत प्राप्त हुए थे. सहरसा में ‘जाप’ के रंजन प्रियदर्शी की उपलब्धि 1 हजार 505 मतों में सिमटी रही. वहां भाजपा के आलोक रंजन और राजद की लवली आनंद के बीच सीधा मुकाबला हुआ. लवली आंनद19 हजार 679 मतों से पिछड़ गयीं. अप्रत्याशित ढंग से आलोक रंजन को 01लाख 03 हजार 538 मत मिल गये तो लवली आनंद 83 हजार 859 मतों पर ठहर गयीं. इस हार-जीत में ‘जाप’ के 1 हजार 505 मतों की भूमिका क्या रही होगी यह बताने की शायद जरूरत नहीं. संसदीय चुनाव में पप्पू यादव को इस क्षेत्र में मिले 15 हजार 316 मतों की बात छोड़ दें, 2015 में संजना देवी के 6 हजार 618 मतों के आंकड़े से भी रंजन प्रियदर्शी काफी पीछे रह गये. भाजपा के बागी पूर्व विधायक किशोर कुमार मुन्ना के 12 हजार 592 और राजद के बागी रंजीत कुमार राणा के 9 हजार 994 मतों की भी हार-जीत में कोई भूमिका नहीं रही.
सिमरी बख्तियारपुर में राजद के युसूफ सलाहउद्दीन और राजग के वीआईपी प्रत्याशी मुकेश सहनी के बीच कांटे की टक्कर हुई. युसूफ सलाहउद्दीन 01 हजार 759 मतों से निर्वाचित हुए. राजद के बागी पूर्व विधायक जफर आलम ‘जाप’ के उम्मीदवार थे. 4 हजार 12 मत ही बटोर पाये. विश्लेषकों की समझ है कि उन्हें जो मत मिले वे महागठबंधन समर्थकों के ही रहे होंगे. इस दृष्टि से उन मतों की भी हार-जीत में कोई निर्णायक भूमिका नहीं रही. ‘जाप’ सुप्रीमो पप्पू यादव को इससे सुकून जरूर मिला होगा कि 2015 के उम्मीदवार धर्मवीर यादव के 01 हजार 825 मतों के आंकड़े को पूर्व विधायक जफर आलम ने 4 हजार 12 तक पहुंचा दिया. युवा नेता संजय कुमार सिंह लोजपा के उम्मीदवार थे. 6 हजार 962 मतों में अटक गये. सीधे मुकाबले में राजद प्रत्याशी युसूफ सलाहउद्दीन को 75 हजार 684 मत मिले तो वीआईपी प्रत्याशी मुकेश सहनी को 73 हजार 925 मत. हार-जीत अपनी जगह है, यादव और मुसलमानों के इस गढ़ में मुकेश सहनी द्वारा इतनी बड़ी संख्या में मत बटोर लेना कोई साधारण बात नहीं है.
महिषी, सुपौल और त्रिवेणीगंज में ‘जाप’ के उम्मीदवार नहीं थे. लेकिन, महिषी में लोजपा के अब्दुर रज्जाक ने 22 हजार 110 मत प्राप्त कर राजद की राह रोक दी. अब्दुर रज्जाक राजद के बड़े नेता रहे दिवंगत पूर्व मंत्री अब्दुल गफूर के पुत्र हैं. उनकी दावेदारी को नजरंदाज कर राजद नेतृत्व ने 2015 में ‘जाप’ के उम्मीदवार रहे गौतम कृष्ण को मैदान में उतार दिया. 01 हजार 630 मतों से वह मात खा गये. 2015 में ‘जाप’ प्रत्याशी के तौर पर गौतम कृष्ण 19 हजार 958 मत पाये थे. संभवतः वही मत इस बार राजद की उम्मीदवारी के आधार बन गये. ‘जाप’ ने इस बार शायद गौतम कृष्ण के हित में ही खुद को महिषी के मैदान से अलग रखा. जीत जद(यू) के गुंजेश्वर साह की हुई. उन्हें मिले 66 हजार 316 मतों के मुकाबले गौतम कृष्ण को 64 हजार 686 मत ही मिल पाये. शिवेन्द्र कुमार जीशू रालोसपा के उम्मीदवार थे. रालोसपा का असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से गठबंधन था. मुस्लिम मतों की बहुतायत रहने के बावजूद स्थानीय स्तर पर ठोस जनाधार का लंबा-चैड़ा दावा करने वाले शिवेन्द्र कुमार जीशू 3 हजार 731 मतों में ही सिमट गये. जद(यू) के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव के करीबी माने जाने वाले योगेन्द्र मुखिया निर्दलीय उम्मीदवार थे. उन्हें 4 हजार 743 मतदाताओं का साथ मिला. सुपौल में जद(यू) प्रत्याशी ऊर्जा मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव के समक्ष महागठबंधन के कांग्रेस उम्मीदवार मिन्तुल्लाह रहमानी टिक नहीं पाये. 28 हजार 99 मतों से परास्त हो गये. वैसे भी अंगद के पांव की तरह 30 वर्षों से सुपौल में जमे बिजेन्द्र प्रसाद यादव के पांव को उखाड़ना आसान नहीं था. महागठबंधन में कांग्रेस ने इस जमीनी सच को नजरंदाज कर ऐसे उम्मीदवार पर दांव खेला जो स्थानीय होने के बावजूद मतदाताओं के लिए अपरिचित-अनजान थे. वैसे तो तीन वर्षों से अधिक समय से वह बिहार प्रदेश कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष हैं, पर क्षेत्र में चुनाव जीतने लायक कभी कोई सक्रियता नहीं दिखी थी. ऐसा कहा जाता है कि उनका जुड़ाव कांग्रेस के अनेक प्रभावशाली राष्ट्रीय नेताओं से है.उम्मीदवारी पार्टी के दिवंगत महासचिव अहमद पटेल की पहल पर मिली थी. इसको लेकर सुपौल जिला कांग्रेस में अंदरुनी असंतोष उत्पन्न हो गया था. पूर्व विधायक प्रमोद कुमार सिंह के अलावा सुपौल जिला कांग्रेस के अध्यक्ष विमल यादव और पूर्व जिला पार्षद अनोखा देवी दावेदार थे. उन सब की उपेक्षा ने आम कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं में निराशा भर दी. चुनाव पर इसका गहरा असर पड़ा. मिन्तुल्लाह रहमानी को 58 हजार 075 मत ही मिल पाये. 86 हजार 176 मत पाकर बिजेन्द्र प्रसाद यादव ने बड़ी जीत दर्ज की. त्रिवेणीगंज में जद(यू) की वीणा भारती की जीत हुई. उन्होंने राजद के संतोष कुमार को 3 हजार 121 मतों से शिकस्त दी. वीणा भारती को 79 हजार 548 मत मिले तो संतोष कुमार को 76 हजार 427 मत. रेणुलता भारती लोजपा की उम्मीदवार थीं. 5 हजार 194 मत ही ला सकीं. पिपरा में महेन्द्र साह ‘जाप’ के उम्मीदवार थे. जद(यू) के रामविलास कामत और राजद के विश्वमोहन कुमार के 19 हजार 245 मतों के अंतर की जीत-हार में उन्हें मिले 3 हजार 770 मतों की कोई प्रासंगिकता नहीं दिखती. रामविलास कामत को 82 हजार 388 मत मिले तो भाजपा से राजद में आये पूर्व सांसद विश्वमोहन कुमार को 63 हजार 143 मत.
इसी तरह छातापुर में भाजपा के नीरज कुमार सिंह बबलू की धमाकेदार जीत हुई. उन्होंने राजद के डाॉ विपिन कुमार सिंह को 20 हजार 635 मतों से परास्त किया. ‘जाप’ उम्मीदवार संजीव मिश्र को 3 हजार 659 मत मिले. स्पष्ट है कि हार-जीत में इन मतों का किसी भी रूप में कोई योगदान नहीं रहा. पूर्व में इस क्षेत्र से राजद के उम्मीदवार मुस्लिम समाज से हुआ करते थे. इस बार अतिपिछड़ा समाज से उम्मीदवार उतारकर उसने समीकरण बदलने का प्रयास किया, जो सफल नहीं हो पाया. डाॉ विपिन कुमार सिंह नरपतगंज में डाक्टरी करते हैं. उनके पिता उपेन्द्र प्रसाद सिंह छातापुर प्रखंड जद(यू) के अध्यक्ष रह चुके हैं. 2015 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उन्होंने छातापुर विधानसभा क्षेत्र में किस्मत भी आजमायी थी. 6 हजार 244 मत प्राप्त हुए थे. पूर्णिया के बहुचर्चित पनोरमा समूह के निदेशक संजीव मिश्र का ‘जाप’ का उम्मीदवार बनना और 3 हजार 659 मतों में सिमट जाना छातापुर क्षेत्र की सबसे दिलचस्प बात रही. युवा राजद के राष्ट्रीय महासचिव रहे संजीव मिश्र ने खुद या अपनी पत्नी कविता मिश्रा की उम्मीदवारी के लिए राजद में खूब हाथ-पांव मारे. डाॉ विपिन कुमार सिंह से पिछड़ गये तब ‘जाप’ का उम्मीदवार बन अपनी किरकिरी करा ली. विश्लेषकों का मानना है कि ‘जाप’ उम्मीदवार के तौर पर मैदान में नहीं उतरते तो समाजसेवा आधारित जनाधार के भ्रम की बदौलत भविष्य में उनकी अच्छी दावेदारी हो सकती थी.