इजरायल बनाम फिलिस्तीन : येरुशलम के लिए हो रहा धर्मयुद्ध!
महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
13 अक्तूबर 2023
इजरायल और फिलिस्तीन से संबद्ध इतिहास का एक कालखंड क्रूसेड्स का है. क्रूसेड यानी होली वार. ऐसे युद्ध, जो धर्म के आधार पर लड़े गये. ये युद्ध ईसाइयों और मुस्लिमों के बीच हुए. वजह यह कि इस्लाम (Islam) का विस्तार होने लगा तब इस्लामिक साम्राज्य ने ईसाइयों की कई पवित्र जगहों को जीत लिया. येरुशलम भी उनमें एक था. यह ईसाइयों के लिए असहनीय था. ईसाइयों का मानना है कि ईसा मसीह (Jesus Christ) ने इसी शहर के बगल के वेथलेहम शहर में अपना उपदेश दिया. येरुशलम (Jerusalem) की दीवारों के ठीक बाहर गोलगोथा में उन्हें सूली चढ़ायी गयी और वहीं पर वह दोबारा जीवित हो गये. ईसाई (Christian) यह भी मानते हैं कि एक रोज ईसा मसीह वापस दुनिया में लौटेंगे और उसमें येरुशलम की अहम भूमिका होगी. बेथलेहम में चर्च ऑफ नेटिवटी और चर्च ऑफ होली सेप्लचर हैं. बताया जाता है कि वहां जीसस क्राइस्ट का खाली ताबूत भी है.
इस्लामिक ट्रस्ट का गठन
इतिहास (History) में वर्णित है कि यहूदियों पर हमला कर रोमन साम्राज्य ने येरुशलम को अपने नियंत्रण में ले लिया. फिर आये मुसलमान. उन्होंने येरुशलम को अपने अधीन कर लिया. वहां धार्मिक इमारतें बनवायी. कालांतर में ईसाइयों और मुस्लिमों में धर्मयुद्ध हुआ. पहला युद्ध येरुशलम के लिए लड़ा गया. 1099 के इस युद्ध में ईसाइयों ने येरुशलम को जीत लिया. मगर ज्यादा दिनों तक कब्जा बरकरार नहीं रह पाया. 1187 में सलाह-अल-दीन के नेतृत्व में मुस्लिमों ने येरुशलम पर फिर से आधिपत्य जमा लिया. हरम- अल-शरीफ का प्रबंधन देखने के लिए वक्फ, यानी इस्लामिक ट्रस्ट (Islamic Trust) बना दिया. पूरे परिसर का प्रबंधन इसी ट्रस्ट के जिम्मे था. गैर मुस्लिमों को प्रवेश की अनुमति नहीं थी. सदियों तक यही व्यवस्था रही.
1948 में इजरायल बना
1917 के प्रथम विश्व युद्ध (First World War) के बाद ओटोमन साम्राज्य (Ottoman Empire) के पतन हो जाने पर फिलिस्तीन पर ब्रिटेन का नियंत्रण हो गया. 1948 में ब्रिटेन (Britain) का नियंत्रण समाप्त हो जाने के बाद इजरायल का गठन हुआ. उसी जमीन पर जहां फिलिस्तीनियों का देश था. फिलिस्तीन और इजरायल, दोनों के अपने-अपने दावे थे. फिलिस्तीन (Palestine) का तर्क था कि उनके देश में दूसरा देश कैसे बन सकता है? यहूदियों के लिए कहीं और देश बनाया जाये. यहूदी इसके लिए राजी नहीं थे. उनका कहना था कि वे कहीं और क्यों जायेंगे? यह जमीन उनके पुरखों की है. उन्हें सदियों तक इस जमीन से अलग रखा गया. अपनी दावेदारी का आधार उन्होंने ‘हिब्रू बाइबल’ नामक धर्मग्रंथ को बनाया. उसमें जिक्र है कि इस जगह के लिए खुद ईश्वर ने यहूदियों के पूर्वज हजरत अब्राहम को अपनी जुबान दी थी. कहा था, हजरत अब्राहम की संतान यहीं पर एक नया देश बसायेगी.
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यहूदा के वंशज हैं यहूदी
फिलिस्तीनियों ने विरोध किया. यहूदी पीछे नहीं हटे. सशस्त्र संघर्ष हुआ. पड़ोसी अरबों ने भी आक्रमण किया. इजरायली सैनिकों द्वारा उन्हें पीटा गया. परिणामस्वरूप हजारों फिलिस्तीनियों को घर-द्वार छोड़ भागना पड़ गया. इसे अल-नकबा यानी तबाही कहा गया. कालांतर में उनकी पीढ़ियों ने यहूदी देश बसाया जिसका प्राचीन नाम ‘लैंड ऑफ इजरायल’ था. यानी इजरायल (Israel) और उनके वंशजों की भूमि. याकूब उर्फ इजरायल हजरत अब्राहम का पोता था. उसी के नाम पर यह देश है. याकूब उर्फ इजरायल का बेटा यहूदा था. उसी के नाम पर उसके वंशज यहूदी (Jewish) कहलाये. इस धर्म में हजरत अब्राहम के बाद हजरत मूसा का महत्व है. यहूदी परंपराओं को धर्म के रूप में स्थापित करने की वजह से उन्हें यहूदी धर्म का संस्थापक कहा और माना जाता है. (शेष अगली कड़ी में )
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