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जानिये, अफसरों के इस सुल्ताना को!

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विशेष प्रतिनिधि
02 अक्तूबर 2024

Patna : पता नहीं, इस नाम का कोई डाकू था भी या नहीं. मगर, आज से बहुत साल पहले गांवों में एक नाटक दिखाया जाता था-सुल्ताना डाकू. उसका जैसा चरित्र चित्रण (Characterization) किया गया था, वैसा डाकू आजकल लालटेन लेकर खोजने पर भी नहीं मिल सकता है. वह अमीरों को पूरी मुस्तैदी से लूटता था. अपने खाने-पीने और गिरोह के स्थापना व्यय को रख कर बाकी रकम गरीबों में बांट देता था. उन दिनों गरीबों के खर्च भी कम थे. बच्चों को पढ़ाई के लिए डोनेशन नहीं देना पड़ता था. महंगे इलाज के लिए अधिक धन खर्च नहीं करना पड़ता था. क्योंकि इलाज जड़ी-बूटियों से हो जाता था. कुछ-कुछ गंडा ताबीज का भी उपयोग होता था. ले देकर रुपये की जरूरत बेटी ब्याहने के समय पड़ती थी. उसका बंदोबस्त (Settlement) सुल्ताना डाकू कर देता था.


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पढ़-लिख कर आईएएस अफसर बन गया
नाटक वाला सुल्ताना बंदूक लेकर डाका डालता था. वह गोलियां चलाता था और माल देने में आनाकानी करने पर गोली भी मार देता था. लेकिन, अपना वाला एक आधुनिक सुल्ताना अलग किस्म का है. वह सुल्ताना की तरह अनपढ़ नहीं है. खूब पढ़ा लिखा है. इतना पढ़ा-लिखा कि आईएएस अफसर बन गया. उसने भी बचपन में सुल्ताना डाकू (Sultana Daku) वाला नाटक देख कर ही लूटपाट की प्रेरणा ली होगी. फर्क यह रखा कि सुल्ताना की तरह गोली चलाने से परहेज किया. बंदूक नहीं चलाया. उसका लाइसेंस ही बेच दिया. वह भी एक दो नहीं, पूरे पांच सौ. आधुनिक सुल्ताना की पोस्टिंग उत्तर बिहार (North Bihar) के एक जिले में कलेक्टर के पद पर हुई थी. जाते ही उसने बैठक बुलायी. कहा कि लूटपाट का रक्तहीन पैटर्न बताओ. आर्म्स मजिस्ट्रेट उछल कर सामने आया. बोला-वह पैटर्न हमारे पास है.

फिलहाल पड़ा है उपेक्षित विभागों में
हथियारों के सौ से अधिक आवेदन पेंडिंग पड़े हैं. एक आवेदन खिसकने पर कम से कम पांच लाख गिरेगा. सुल्ताना को यह तरकीब अच्छी लगी. उसने अंग्रेजी में ओके कह दिया. उधर मजिस्ट्रेट ने आवेदन बढ़ाना शुरू किया. सौ आवेदन तो सप्ताह भर में ठिकाने लग गये. तेज गति से आवेदन खिसकने लगे तो उसकी संख्या पांच सौ पर पहुंच गयी. हिसाब जोड़ा गया. पूरे पच्चीस करोड़ आ गये थे. सुल्ताना ने सुस्ताने का निर्णय किया. दूसरी तरफ पटना में बैठे सुल्ताना बिरादरी के उस्तादों ने कान लगा दिया. बात सुशासन (Good Governance) बाबू तक पहुंची. एक दिन जब सुल्ताना अपने जिला वाले आफिस में दनादन फाइल पर हाथ साफ कर रहा था, पटना से मुख्यालय में पोस्टिंग का परवाना पहुंच गया. चार साल से सुल्ताना पटना सचिवालय (Patna Secretariat) के उपेक्षित विभागों में पड़ा हुआ है. अफसरों के बीच चर्चा है कि सुशासन बाबू के रहते सुल्ताना को शायद ही कभी मलाईदार पोस्टिंग मिल पाये.

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