कला : शिल्पी चटर्जी की कला परिकल्पना
अवधेश अमन
01 दिसंबर 2024
जयपुर (Jaipur) की 44 वर्षीया चित्रकार शिल्पी चटर्जी (Painter Shilpi Chatterjee) की कला-परिकल्पना हम इनकी कृतियों में देखते हैं जो संभवतः एक युवा परिकल्पना ही है. इनकी कृतियों के विन्यास में एक दृष्टिसुखद यथार्थपरकता है स्पष्ट प्रभाव वाले रंगों के साथ. शिल्पी चटर्जी ने कैनवास (Canvas) पर एक्रिलिक रंगों से स्त्रियों का विन्यास किया है उनकी चुहल या भाव-भंगिमाओं के साथ. जल रंगों से हाथ-कागज पर व्यक्ति चित्रों की रचना की है बड़ी संख्या में. और इधर के दिनों में वह कला (Art) में अमूर्तन के प्रभाव को भी ग्रहण कर चुकी हैं. मगर शिल्पी चटर्जी का यह अमूर्तन विगत दो दशक के भारतीय अमूर्तन की भीड़ में खो गया लगता है. अंततः हम शिल्पी चटर्जी की कला के यथार्थ रूप-रंगों के प्रभाव को ही ठीक से देख पाते हैं.
प्रिंट मेकिंग में स्नातकोत्तर
शिल्पी चटर्जी का जन्म बिहार के दरभंगा (Darbhanga) में हुआ है. पिता रमेन्द्रनाथ चटर्जी वहां भारतीय स्टेट बैंक के अधिकारी थे. कुछ समय बाद जब उनका स्थानांतरण बेगूसराय (Begusarai) हुआ तब उनसे मेरा परिचय हुआ और उन्होंने अपनी बेटी शिल्पी चटर्जी को कला के अध्ययन के लिए मेरे नेतृत्व में रखा. कालांतर में शिल्पी चटर्जी का प्रवेश बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के चाक्षुष कला संकाय में हुआ, जहां से उन्होंने स्नातक स्तर की ललित कला की शिक्षा 2003 में पूरी की. पुनः उसी संकाय से प्रिंट मेकिंग की स्नातकोत्तर स्तर की शिक्षा 2005 में पूरी की. इसके बाद शिल्पी चटर्जी की निरंतर कला-साधना और सृजन का दौर दिल्ली आकर शुरू हुआ. कलाकार शिविर, समूह प्रदर्शनियां और अन्य कला आयोजनों में क्रियाशीलता बढ़ी.
जयपुर में बना रखी हैं चित्रशाला
शिल्पी चटर्जी के पति ने इनके रचनात्मक क्रियाकलापों के लिए साथ दिया. परंतु आगे आकर दो बेटियों की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण हो गयी. पति जयपुर (Jaipur) आ गये और वहीं अपना आवास भी ले लिया. अतः अब शिल्पी चटर्जी जयपुर में ही अपने आवास में अपनी चित्रशाला बनाकर कैनवास पर एक्रिलिक रंगों से कला का एक खूबसूरत तथा प्रभावी संसार रच रही हैं. शिल्पी चटर्जी की मां और पिता भी कलाप्रेमी हैं. पिता अवकाश ग्रहण के बाद से अपने शांति निकेतन स्थित आवास में ही रहते हैं और अक्सर शिल्पी चटर्जी से मिलने जयपुर जाया करते हैं.
रूचि कला-इतिहास में भी
कम बोलने वाली शिल्पी चटर्जी की आंखों में कला की खूबसूरत परिकल्पना होती है. दृश्यों का एक सैलाब होता है और वह प्रभावशाली रूपों में सामने आता है. कभी एक्रिलिक से और कभी जल रंगों से भी. तैल रंगों का इस्तेमाल शिल्पी चटर्जी ने अपने अध्ययन के लिए किया है. रंगों की संगति और रंगों का मिश्रण एवं इनका वर्ण-विन्यास शिल्पी चटर्जी बेहतर जानती हैं. मेरे सान्निध्य में होने के कारण उनकी रुचि कला-इतिहास में भी रही है.
कम बोलती हैं और काम ज्यादा करती हैं
वाराणसी के चाक्षुष कला संकाय तथा शांति निकेतन (Shanti Niketan) के कला-भवन (Kala Bhawan) के सृजनव्यापी वातावरण से भी शिल्पी चटर्जी की निकटता है. इन्हें अब तक कोई बड़ा पुरस्कार नहीं मिला है, मगर कुछ अच्छे संग्राहकों ने इनकी कृतियां अपने संग्रह के लिए खरीदी है. कुछ कृतियां देश से बाहर भी कलाप्रेमी ले गये हैं. सबसे महत्वपूर्ण है शिल्पी चटर्जी कम बोलती हैं और ज्यादा अच्छा काम करती हैं. इसलिए उनकी सृजन की संभावनाएं अच्छी हैं. जयपुर कलाप्रेमी पर्यटकों का एक बड़ा स्थल है. राजकीय संस्थाएं भी सृजन के प्रोत्साहन का मार्ग प्रशस्त करती हैं.
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