बात इतिहास की : हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला में बनी थी आजादी की पहली लड़ाई की योजना
अवध किशोर शर्मा
09 दिसम्बर 2024
लेखकों की कृतियों में ही नहीं, कवियों (poets) एवं शायरों (Shayaron) की रचनाओं में भी हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला (Hariharkshetra Sonpur Fair) समाविष्ट है. इसके अनेक उदाहरण हैं. यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि 1856 में तत्कालीन अंग्रेजी सरकार (English Government) के खिलाफ पहली लड़ाई की योजना हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला में ही बनी थी. इसका वर्णन प्रसिद्ध कवि आरसी प्रसाद सिंह (Aarsi Prasad Singh) के महाकाव्य ‘वीरवर कुंवर सिंह’ ( Veerwar Kunwar Singh) में काफी विस्तार से है. महाकाव्य में वर्णित है कि 1857 के विद्रोह की संपूर्ण रूपरेखा 1856 के सोनपुर मेला में ख्वाजा हसन अली के तम्बू (खीमे) में गुप्त बैठक तय हुई थी. उसी बैठक में रणबांकुरा वीर कुंवर सिंह ने पहली लड़ाई के संचालन की जिम्मेवारी खुद संभाल ली थी.
गुप्त सम्मेलन में निर्णय हुआ
कविवर आरसी प्रसाद सिंह की इस इतिहास दृष्टि जैसी नजर इससे पहले किसी कवि की नहीं गयी थी. अपने महाकाव्य में उन्होंने वीर कुंवर सिंह की संपूर्ण जीवनी के वर्णन के क्रम में उनके मेला प्रवास और क्रांतिकारी गतिविधियों का चित्रण किया है. उन्होंने लिखा है कि मेला में हुए गुप्त सम्मेलन में निर्णय हुआ था –
फिरंगी अब सरकार नहीं यह रखनी है.
बना योजना शस्त्र क्रांति की
यह सरकार उलटनी है.
एक बार जैसे भी हो,
गोरों से खुले निबटनी है.
हिन्दू-मुसलमान दोनों का
विपुल शक्ति संघात हुआ.
प्रथम क्रांति का बिगुल बजा,
संगठन सूत्र सम्पात हुआ.
कुंअर सिंह ने ली
सेना संचालन की जिम्मेवारी.
उमड़ आया मानव सागर
गुप्त बैठक में शामिल राष्ट्रप्रेमी राजे-रजवाड़ों ने वीर कुंवर सिंह के नेतृत्व में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की रणनीति बनायी. हाथी, घोड़े, अस्त्र- शस्त्र का आदान-प्रदान तथा खरीद-बिक्री भी इसी मेले में हुई. उस दिन गंगा-गंडक (Ganga-Gandak) के संगम स्थल पर पूर्णमासी की भीड़ जमी थी. इस भीड़ के बारे में इतिहास के झरोखे से झांकते हुए महाकाव्य प्रणेता कविवर आरसी प्रसाद सिंह ने लिखा है – ‘लगता था कि मानव सागर उमड़ आया है. हाथी, घोड़ा, ऊंट, गाय-बैलों का जमघट पूरा था. नाटक-सर्कस,नाच-तमाशा, तबला-तुक-तम्बूरा था. चूड़ी भी फिरोजाबादी, मिर्जापुरी शिलाएं थी.गुजराती भैंसें थी तुन्दिल, हरियाणे की गायें थी. चंचल अश्व सरैसा के मैदान मारकर लाते थे. छोटे ढुलमुल गज के दर्शन मन बहलाते थे’.
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ऐतिहासिक महत्ता का बखान किया
अपने महाकाव्य में कवि ने आगे लिखा है कि उस साल मेले में जयपुर के जौहरियों ने भी जौहर दिखाया था. तम्बू खीमों और शामियानों में गायन के स्वर गूंज रहे थे. बिक्री के लिए बनारस की जरी वाली साड़ी, कश्मीरी-शाल- दुशाले,लखनऊ का चिकन का काम एवं ढाका के मलमल भी आये थे. मेले की क्रांतिकारी पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए कवि ने कहा है कि मेले में रणनीति तय होने से पूर्व गुलजारबाग पटना ( Patna) में भी प्रमुख क्रांतिकारियों की ख्वाजा हसन अली (Khawaja Hasan Ali) के मार्गदर्शन में एक गुप्त से सम्मेलन हुआ था जिसमें मेले में एकत्रीकरण का निर्णय लिया गया था. मेले में जब एकत्रीकरण हुआ तो अंग्रेजी सरकार के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की योजना बनी और सेना संचालन की जिम्मेवारी बाबू कुंवर सिंह ने ली. अपने महाकाव्य में कविवर आरसी प्रसाद सिंह ने न सिर्फ सोनपुर मेले (Sonpur Fair) की ऐतिहासिक महत्ता का बखान किया है बल्कि मेले के तत्कालीन कला -संस्कृति, राजनीतिक और समाजिक परिवेश एवं व्यावसायिक स्थिति की भी जानकारी दी है.
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