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जगदम्बा स्थान : मंत्रसिक्त जल से उतर जाता है सर्पदंश का विष!

महारानी स्थान के नाम से चर्चित बड़हिया के मां जगदम्बा मंदिर में स्थानीय लोगों की असीम आस्था है. मंदिर में जब से महाविद्याओं की प्राण-प्रतिष्ठा हुई है तब से ही इसकी तमाम आंतरिक व्यवस्था भगत ने संभाल रखी है, जो अतिपिछड़ा समाज की धानुक जाति से हैं. वर्तमान में 24 भगत परिवार की आजीविका मुख्यतः इसी मंदिर पर आश्रित है. मंदिर से उन्हें क्या सब प्राप्त होता है, भूमिका उनकी क्या रहती है, यहां उसी पर दृष्टि डाली जा रही है.

राजकिशोर सिंह
05 अप्रैल 2025

Lakhisarai : सिद्ध पुरुष श्रीधर ओझा के समय में बड़हिया (Badhiya) के पूरब में गंगा (Ganga) और पश्चिम में हरोहर (Harohar) नदियां थीं. छोटे रूप में अब भी प्रवाहित हैं. संपूर्ण इलाका जंगलों-झाड़ियों से पटा था. वहां जहरीले सांपों का बसेरा था. सर्पदंश से लोगों की मृत्यु होती रहती थी. इससे श्रीधर ओझा दुखी थे. किंवदंतियां हैं कि गांव-समाज को त्राण दिलाने के लिए उन्होंने मां बाला त्रिपुर सुन्दरी (Maa Bala Tripura Sundari) से वरदान मांगा . तभी से उनकी कृपा से मंत्र सिक्त जल से सर्पदंशित लोगों का इलाज किया जा रहा है. स्थानीय लोगों की आस्था और विश्वास में यह भी शामिल है कि कोई भी दीघवैत- शांडिल्य जगदम्बा मंदिर (Jagadamba Temple) परिसर स्थित कुएं का जल एक हाथ से निकाल कर ‘हरा हरा हरात दोष-विष निर्विष, दहाय त्रिपुर सुन्दरी के, आज्ञा श्रीधर ओझा के’ मंत्र सिक्त कर सांप काटे व्यक्ति को पिला देता है तो उसके शरीर से विष तत्क्षण उतर जाता है, वह चंगा हो जाता है. हालांकि, उनकी इस धारणा का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. ऐसे में इसे अंधविश्वास ही माना जा सकता है.

‘भगत’ को मिला है यह काम
श्रीधर ओझा के वंशज आज भी बड़हिया में हैं. पूजा-पाठ से अपनी जीविका चला रहे हैं. जगदम्बा मंदिर से उन्हें कुछ भी प्राप्ति नहीं होती है. मंदिर के ब्राह्मण पुजारी ‘भगिनमान’ होते हैं. पहले सीताराम पंडित (Sitaram Pandit) पुजारी थे. वर्तमान में उनका भगिना विनय कुमार झा (Vinay Kumar Jha) इस काम को देख रहे हैं. मंदिर की साफ-सफाई और भगवती पर श्रद्धालुओं के पुष्प-प्रसाद, झांप-छत्र आदि चढ़ाने का दायित्व ‘भगत’ को मिला हुआ है. इस ‘चढ़ावा’ से ब्राह्मण पुजारी को कोई मतलब नहीं रहता. जब से मंदिर में महाविद्याओं की प्राण-प्रतिष्ठा हुई है तब से उक्त जिम्मेवारी ‘भगत’ ही निभा रहे हैं, जो धानुक समाज (Dhanuk Samaj) से आते हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक देवी भक्त श्रीधर ओझा की गंगा में जल समाधि के बाद उनके यहां काम करने वाली महिला ने इस काम को संभाल लिया था. तब से उसी परिवार के लोग पुश्त-दर-पुश्त मां जगदम्बा की ‘सेवा’ में हैं.

मंदिर से जुड़े हैं 24 ‘भगत’ परिवार
वर्तमान में उस परिवार के छह खुट हैं. उन छह में चार-चार उपखुट हैं. इस तरह कुल 24 परिवार इससे जुड़े हैं. पारी-पारी से काम संभालते हैं. मंगलवार और शनिवार को श्रद्धालुओं की भीड़ अधिक रहती है. उन दो दिन सभी छह खुट के लोग सेवा में रहते हैं. इस कार्य के लिए कोई मेहनताना तय नहीं है. मां जगदम्बा पर चढ़ावे के रूप में जो राशि आती है वह सब ‘भगत’ की हो जाती है. दान-पात्र में संग्रहित राशि का दस आना हिस्सा उन्हें मिलता है. महीने में एक बार दान-पात्र खुलता है. बाकी स्रोतों से प्राप्त धन से मंदिर का निर्माण और विकास होता है. एक समय में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह (Giriraj Singh) के पिता रामोतार सिंह (Ramotar Singh) भी जगदम्बा मंदिर की निगरानी करते थे. इन्द टोला में गिरिराज सिंह का घर मंदिर से कुछ ही फासले पर है. मां भगवती के साज-श्रृंगार में रामचरण टोला निवासी प्रखंड स्तरीय अवकाश प्राप्त अधिकारी अरविन्द प्रसाद (Arvind Prasad) की अहम भूमिका रहती है.

मंदिर न्यास समिति
बिहार धार्मिक न्यास पर्षद (Bihar Dharmik Nyas Parshad) से संबद्ध मंदिर की व्यवस्था की देखरेख के लिए मां जगदम्बा मंदिर न्यास समिति (Maa Jagadamba Mandir Nyas Samiti) बनी हुई है. बड़हिया निवासी बृजेश्वर प्रसाद सिंह इसके अध्यक्ष होते थे. अब वह इस धरा पर नहीं हैं. मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोगों के मुताबिक डा. सत्येन्द्र अरुण फिलहाल महत्वपूर्ण जिम्मेवारी संभाल रहे हैं. जयशंकर प्रसाद सचिव हैं. मिथिलेश प्रसाद सिंह (Mithilesh Prasad Singh) कोषाध्यक्ष. आमतौर पर इस तरह की न्यास समिति के अध्यक्ष अनुमंडलाधिकारी होते हैं. इस प्रावधान को लागू करने के लिए यहां भी नयी समिति के गठन की पहल हुई थी. सचिव के पद को लेकर विवाद खड़ा हो जाने के कारण मामला अटक गया है.


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अतुलनीय योगदान
बड़हिया की मां बाला त्रिपुर सुन्दरी पर डाॉ सत्येन्द्र अरुण की पुस्तक प्रकाशित है. अन्य की तुलना में इस पुस्तक को कुछ अधिक प्रामाणिक माना जाता है. मंदिर की भव्यता और दिव्यता में समस्त बड़हियावासियों का अतुलनीय योगदान है. लेकिन, स्वर्गीय बृजेश्वर प्रसाद सिंह, हरि जालान और भादो प्रसाद सिंह की भूमिका उल्लेख करने लायक रही है. हरि जालान कोलकाता (Kolkata) में रहते हैं. मंदिर से कुछ ही कदम दूर भक्त श्रीधर सेवाश्रम (Shreedhar Sevashrama) है. जगदम्बा मंदिर न्यास समिति द्वारा निर्मित इस बहुमंजिली इमारत में उत्तम आवासीय सुविधा तो है ही, शादी-विवाह, उपनयन, मुंडन- संस्कार आदि मांगलिक कार्यों के लिए बेहतरीन व्यवस्था है. धार्मिक आयोजन-प्रवचन के लिए भी. लोहिया चौक से पहले महावीर मंदिर (Mahavir Temple) के समीप धर्मशाला (Dharmashala) का भी निर्माण हो रहा है.

शंकराचार्य ने किया था उद्घाटन
भक्त श्रीधर सेवाश्रम का उद्घाटन जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज (Swami Nishchalanand Saraswati Ji Maharaj) ने 26 मई 2014 को किया था. सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Rajiv Ranjan Singh alias Lallan Singh) ने इसे लिफ्ट की सुविधा उपलब्ध करा रखी है. मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोगों को इस बात का मलाल है कि केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा (Vijay Kumar Sinha) मां जगदम्बा का आशीर्वाद पाने के लिए मंदिर में आते रहते हैं, पर इसके विकास में कोई खास रुचि नहीं लेते हैं. इस मामले में इन दोनों की ऐसी कोई भूमिका नहीं है जिसका उल्लेख किया जा सके. बहरहाल, ये सब बातें अपनी जगह हैं, मां बाला त्रिपुर सुन्दरी का यह मंदिर आस्था के बहुत बड़े केन्द्र के रूप में स्थापित हो चुका है. इसे बड़हिया की शान कहें तो वह कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

(यह आस्था और विश्वास की बात है. मानना और न मानना आप पर निर्भर है.)

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