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सितार का उभरता सितारा – राज घोसवारे सागोनाखा

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राजेश पाठक
02 नवम्बर, 2022

CHHAPRA : लम्बे नाम के राज घोसवारे सागोनाखा (Raj Ghosware Sagonakha) किसी दूसरे प्रांत या देश के नहीं हैं, बिहार (Bihar) के छपरा के हैं. नाम इनका पूरा याद रखना थोड़ा कठिन है इसलिए इन्हें हम सिर्फ राज कहेंगे. राज का एक और परिचय है कि यह बिहार की सुप्रसिद्ध लोक गायिका (Lok Gayika) देवी के छोटे भाई हैं. देवी जहां लोक गायकी के लिए सुविख्यात है, वहीं राज शास्त्रीय संगीत और सितार के उभरते सितारे हैं. इनके सितार गुरु भारत के शीर्षस्थ सितारवादकों में से एक नीलाद्रि कुमार (Niladri Kumar) हैं.

राज बहुआयामी प्रतिभा के धनी हैं. देवी की चर्चित फिल्म ‘जलसा घर की देवी’ (Jalsa Ghar Ki Devi) का निर्देशन इन्होंने ही किया था. साथ ही वह अकेले इस पूरी फिल्म (Film) के टेक्निकल एक्सपर्ट भी थे. एडिटिंग, कलर करेक्शन, बैकग्राउंड म्यूजिक से लेकर रिकार्डिंग और सिनेमेटोग्राफर भी वह स्वयं ही थे. देवी के अनेक वीडियो (Video) के अलबम का निर्माण भी वह स्वयं करते हैं.

विदेशों में भी होते हैं कार्यक्रम
म्यूजिक (Music) में उनका प्रवेश गायकी और तबला वादन से हुआ. किन्तु, शीघ्र ही उनका रूझान सितार और सुर बहार की तरफ हो गया और देखते ही देखते कुछ ही वर्षों में वह देश-विदेश के चर्चित सितारवादक बन गये. भारत सरकार (Govt of India) की प्रमुख संस्था संगीत नाटक अकादमी (Sangeet Natak Akademi) के द्वारा भी राज के सितारवादन का कार्यक्रम हो चुका है. देश और विदेश दोनों जगहों से उनके कार्यक्रम के आमंत्रण और प्रदर्शन होते हैं.

देवी म्यूजिक आश्रम (Devi Music Ashram), ऋषिकेश (Rishikesh) में भी हर सप्ताह तीन दिन उनका मंचीय कार्यक्रम होता है, जिसमें उनके देशी-विदेशी प्रशंसक आते हैं और उनके संगीत का आनंद लेते हैं. राज बताते हैं -‘संगीत की प्रतिभा जन्मजात होती है पर रियाज से यह निखरती है. मुझे किसी ने संगीत के लिए प्रेरित नहीं किया. यह खुद ब खुद स्वयं मेरे भीतर से उत्पन्न हो गया.’

फिल्म सूटिंग के दौरान सिने स्टार विनय पाठक के साथ राज घोसवारे सागोनाखा.

हर संगीत महान है
राज की बहन देवी लोक गायकी में रुचि रखती हैं. किन्तु राज के सितार (Sitar) में रुचि क्यों है, यह पूछने पर राज कहते हैं -‘मुझे लोक संगीत (Sangeet) भी प्रिय है, पर मुझे शास्त्रीय संगीत भी उतना ही पसंद है. सितार पर भी मैं पारम्परिक लोक धुनों को बजाता हूं. फिल्मों में भी लोक धुनों को बड़ी मात्रा में लिया गया है. हर संगीत महान है.’

आजकल शास्त्रीय संगीत (Shastriya Sangeet) के प्रति रुझान कम होने के सवाल पर राज का उत्तर बेबाक है. वह मानते हैं – ‘जैसे शहद का महत्व कभी खत्म नहीं हो सकता है, वैसे ही शास्त्रीय संगीत का महत्व भी शास्वत है. रुचि का घटना और बढ़ना चलता रहता है. अब तो मैं देखता हूं कि विदेशों में भारतीय शास्त्रीय संगीत की बहुत डिमांड (Demand) है. मैं सुर बहार (Sur Bahar) और सितार (Sitar) दोनों पर ही भारतीय शास्त्रीय रागों को बजाता हूं और विदेशी श्रोता सबसे न्यारा पसंद करते हैं. पंडित रविशंकर (Pandit Ravishankar) की लोकप्रियता विदेशों में और भी ज्यादा थी. मेरे गुरु नीलाद्रि कुमार (Niladri Kumar) भी पंडित रविशंकर की परम्परा से है.’

गुरु-शिष्य परम्परा से बनती है बात
लोग ऐसा मानते हैं कि शास्त्रीय संगीत में गुरु-शिष्य परम्परा से ही बात बनती है. बिना गुरु के कोई संगीत की बारीकियों को नहीं समझ सकता. राज का भी यही विचार है. किन्तु वह मानते हैं कि यदि कोई लगनशील विद्यार्थी (Student) है और उसे संगीत का बोध है, तो वह स्वयं भी मेहनत करके सफल संगीतज्ञ हो सकता है. किन्तु गुरु अपने शिष्य के मार्ग को आसान जरूर बनाता है.

राज ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के इस बात की बहुत सराहना की कि पूरे विश्व में भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसार के लिए काम करना चाहिये. राज भी ऋषिकेश (Rishikesh) में अपने सितार की झंकार की मिठास को पूरे विश्व (World) में फैलाने हेतु प्रयासरत हैं. हम उम्मीद करते हैं कि रविशंकर की तरह राज भी शास्त्रीय संगीत की बेहतर सेवा विश्व को देंगे.

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