कोरोना संक्रमण : आपदा के असुरों से महायुद्ध का काल
कुमार दिनेश
2 जुलाई, 2021
पटना. कोरोना काल में जहां केंद्र सरकार, राज्य सरकार, औद्योगिक घराने और सामाजिक संगठन मिलजुल कर करोड़ों पीड़ितों की मदद करने में लगे रहे, वहीं आपदा में शोषण के मौके तलाशने वाले तत्व भी सक्रिय दिखे. जैविक वायरस के साथ-साथ आपदा के मायावी असुरों से भी निपटने की चुनौती बनी रही. कोरोना काल समाज की सज्जन और दुर्जन प्रवृत्तियों के बीच प्रत्यक्ष महायुद्ध बन गया. यह देवासुर संग्राम ही था. जीवन रक्षक आॅक्सीजन और दवाओं की कालाबाजारी करते काफी लोग पकड़े गये. शर्मनाक यह कि इसमें डाक्टर से लेकर एम्बुलेंस चलाने वाले तक थे.
दिल्ली हाई कोर्ट ने आक्सीजन की कमी पर कड़ा रुख अपनाते हुए अप्रैल में चेतावनी दी कि जमाखोरी करने वालों को फांसी पर लटका देंगे. यदि ऐसे गंभीर मामलों में स्पीडी ट्रायल और फांसी दी गयी होती तो आज हर क्षेत्र में भ्रष्टाचारी फले-फूले न होते. लेकिन, हमारे लचर लोकतंत्र में वह सख्ती संभव नहीं, जो चीन या खाड़ी के देशों में प्रचलित है. हम तो मानवाधिकार, लोकतंत्र और व्यक्तिगत आजादी को बचाने के नाम पर पूरे तंत्र को खोखला कर चुके हैं. असुरों के बचने के कई रास्ते संसद से सुप्रीम कोर्ट तक खुले रखे गये हैं.
एक तरफ लोगों की जान बचाने में जहां केंद्र और राज्य की सरकारें पूरी शक्ति से लगी रहीं, दूसरी तरफ नकारात्मक राजनीति, जमाखोरी,जरूरत से ज्यादा खरीदारी और मुनाफाखोरी भी जारी रही. संकट के समय काम आने के भरोसे के साथ जिन लोगों ने स्वास्थ्य बीमा कराया, उन्हें भी राहत नहीं मिली. कुछ निजी अस्पताल और स्वास्थ्य बीमा कंपनियों ने कोरोना संक्रमितों को कैशलेस इलाज की सुविधा देने में अडं़गेबाजी की. दवा, आक्सीजन, रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी भी खूब हुई.
ऐसी भी शिकायतें मिलीं कि निजी अस्पतालों में एक तो चिकित्सा सेवाओं का शुल्क बहुत ऊंची दर पर चार्ज किया गया और दूसरे नकद भुगतान करने के लिए तीमारदारों पर दबाव बनाया गया. स्वास्थ्य बीमा कंपनियां और निजी अस्पताल हर बीमित मरीज को कैशलेस इलाज की सुविधा प्रदान नहीं कर उनके जीवन को मुसीबत में ही डालते पाये गये. सवाल यह है कि बीमा नियामक अधिकरण को ऐसे मामलों में तुरंत पीड़ितों के हित में सख्त कार्रवाई क्यों नहीं की? इन असुरों की अनदेखी क्यों?
कांग्रेस, राजद और अन्य विपक्षी दलों की नकारात्मक राजनीति पर लाॅकडाउन नहीं लग सका. जिन लोगों ने स्वदेशी वैक्सीन पर सवाल उठाये, ‘भाजपा का टीका’ कह कर अफवाह फैलायी और समाज के एक वर्ग को वैक्सीन न लेने के लिए उकसाया, वही अब टीकाकरण की धीमी रफ्तार और उसकी कीमत जैसे मुद्दे उठाकर देश का मनोबल गिराने में लगे दिखे. पता नहीं कि कांग्रेस ने राजीव गांधी फाउंडेशन से कितने आक्सीजन प्लांट लगवाये, लेकिन राहुल गांधी पीएम केयर फंड पर सवाल अवश्य उठाते रहे.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम केयर फंड से 551 सरकारी अस्पतालों में आक्सीजन प्लांट लगाने की मंजूरी दी. इससे हर जिला केंद्र में एक आक्जीजन प्लांट लगेगा. पिछले साल 162 आक्सीजन प्लांट लगाने के लिए पीएम केयर फंड से 201.58 करोड़ रुपये दिये गये थे. इनमें से 33 पीएसए आक्जीजन प्लांट लग चुके हैं,59 प्लांट 30 अप्रैल तक और 50 अगले महीने तक सक्रिय हो जायेंगे. इससे बिहार को 5 आक्सीजन प्लांट मिले. क्या इन बातों की अनदेखी करना उचित है?
वैक्सीन की उपलब्धता बढे़
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का बिहार सहित पूरे देश में 18 पार के लोगों का केन्द्र सरकार की ओर से मुफ्त कोरोना टीकाकरण एक अच्छा फैसला रहा. केंद्र सरकार ने रूस में बनी स्पुतनिक सहित पांच विदेशी वैक्सीन के आयात की अनुमति देकर टीके की कमी दूर करने का रास्ता पहले ही साफ कर दिया है. कोरोना संक्रमण के पहले दौर में जब प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने दुनिया के 100 से ज्यादा देशों को हाइड्रोक्लोरोफिन देकर और 80 से ज्यादा देशों को कोरोना टीके की 6.4 करोड़ वाइल देकर मदद की थी, तब कांग्रेस, राजद सहित कई दल घरेलू जरूरतों की उपेक्षा का आरोप लगा रहे थे.
भारत की यह उदारता आज संकट मोचक बन रही है. मार्च-अप्रैल में कोरोना की दूसरी लहर के समय यूरोप, अमेरिका और खाड़ी के मुस्लिम देश सहित पूरी दुनिया भारत की मदद में एकजुट हो गयी. ब्रिटेन से 495 आॅक्सीजन कंसंट्रेटर्स, सिंगापुर-आस्ट्रेलिया-अरब देशों से क्रायोजेनिक आक्सीजन सिलेंडर, पीपीई-किट और तरलीकृत आॅक्सीजन की बड़ी खेप आयी. अमेरिका कोविशील्ड उत्पादन के लिए तुरंत कच्चा माल देने लगा और रूस आॅक्सीजन जेनरेटर देने के साथ रेमडेसिविर इंजेक्शन की कमी पूरी करने को तैयार हो गया. प्रधानमंत्री की विदेश नीति वैश्विक हित के साथ-साथ भारतीय हितों की रक्षा करने में भी सफल रही.
सरकारी कर्मचारियों को कोरोना कवर
बिहार सरकार ने भी संक्रमण से निपटने के लिए कई फैसले लिये. बिहार पहला राज्य है, जिसने 2020 में कोरोना संक्रमण के समय स्वास्थ्यकर्मियों को एक माह का अतिरिक्त वेतन दिया और सेवा के दौरान कोरोना संक्रमण से मृत्यु होने पर पारिवारिक पेंशन देने की घोषणा की थी. अब कोरोना से मृत्यु पर सभी सरकारी कर्मचारियों को पारिवारिक पेंशन और एक आश्रित को नौकरी देने का फैसला कर सरकार ने लाखों कर्मचारियों को बड़ा मानसिक संबल प्रदान किया. इसके साथ ही राज्य के 8 करोड़ 70 लाख गरीबों को सरकार ने पांच किलो अनाज मुफ्त देने के लिए 8.70 लाख टन अनाज का आवंटन किया. इससे गरीबों को मई और जून माह में 2 किलो गेहूं और 3 किलो चावल मुफ्त मिलेगा. यह हर माह मिलने वाले अनाज के अतिरिक्त होगा.
क्यों न कुछ लोग चुकायें वैक्सीन के दाम
बिहार के पूर्व वित्त मंत्री और भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने सुझाव दिया कि 18 पार के लोगों के मुफ्त टीकाकरण से सरकार के संसाधनों पर दबाव काफी बढे़गा. इसे देखते हुए कोरोना की दोनों वैक्सीन का कोई न्यूनतम मूल्य तय किया जाना चाहिये और लाभुक को यह विकल्प दिया जाना चाहिये कि जो लोग वैक्सीन की कीमत चुका सकते हैं, वे अवश्य भुगतान करें. यह बाध्यकारी नहीं, स्वैच्छिक होना चाहिये. सुशील कुमार मोदी का तर्क है कि यदि केंद्र सरकार ने वैक्सीन के मूल्य चुकाने का विकल्प दिया, तो गरीबों के मुफ्त टीकाकरण और इलाज के लिए सरकार के पास ज्यादा संसाधन होंगे. उन्हें लगता है कि प्रधानमंत्री की अपील पर जैसे समाज के समर्थ लोग गैस सिलिंडर की सब्सिडी छोड़ चुके हैं, वैसे ही वे इस कठिन दौर में कोरोना वैक्सीन की कीमत चुकाने में भी पीछे नहीं रहेंगे. पहली नजर में यह सुझाव अच्छा है, लेकिन जब हर चीज सबको मुफ्त देने की राजनीतिक होड़ मची हो, तब पूर्व वित्त मंत्री का सुझाव स्वीकार कर कौन मुख्यमंत्री विपक्षी दलों के निशाने पर आना चाहेगा? सुशील कुमार मोदी का तर्क भले ही राजस्व पर बोझ कम करने वाला हो, लेकिन यह ‘पोलिटिकली करेक्ट’ नहीं, इसलिए पक्ष-विपक्ष के किसी बड़े नेता ने उस पर नोटिस नहीं लिया.