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लखीसराय : यही हैं ‘अशोक धाम’ के अशोक …

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राजकिशोर सिंह
28 मार्च, 2023

LAKHISARAI : सनातन धर्म में मान्यता है कि बैद्यनाथ धाम (Baidyanath Dham) उस बैजू अहीर (Baiju Ahir) के नाम पर है जिसकी हथेली पर, परिस्थितिवश ही सही, ‘कामना लिंग’ के रूप में भगवान शिव (Lord Shiva) विराजमान हुए थे. त्रेता युग के इस ‘कथा-अंश’ के दुहराव की यहां जरूरत नहीं. इसलिए कि देवभूमि देवघर (Deoghar) में बाबा बैद्यनाथ का आविर्भाव क्यों और कैसे हुआ, यह प्रायः हर सनातनी संज्ञान में है. अशोक धाम (Ashok Dham) में भगवान शिव कैसे ‘प्रकट’ हुए, उसी की यहां चर्चा की जा रही है. हालांकि, दोनों प्रसंगों के कथ्य और तथ्य भिन्न हैं, तब भी बैजू अहीर की तरह अशोक यादव (आम समझ में जिनके नाम पर अशोक धाम है) भी अमर हो जायेंगे. ऐसे में यह जिज्ञासा हर किसी की होगी कि आखिर, अशोक यादव हैं कौन? अशोक धाम से इनका संबंध क्या है? सचमुच इसी अशोक यादव (Ashok Yadav) के नाम पर अशोक धाम है, तो इसमें इनकी भूमिका क्या है? अशोक यादव का वर्तमान में अस्तित्व है, तो किस रूप में है? यह सब जानने-समझने के लिए अतीत की गहराई में नहीं, सिर्फ 46 वर्ष पीछे चलना होगा. बैद्यनाथ धाम सरीखी धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान पा रहा अशोक धाम (Ashok Dham) लखीसराय के समीप चौकी गांव में है. राष्ट्रीय उच्च पथ संख्या 80 के किनारे हरोहर नदी (Harohar River) के बगल में बहुचर्चित बालगुदर गांव बसा है. वहीं से दक्षिण की ओर एक सड़क निकलती है जो आगे जाकर नवनिर्मित लखीसराय बायपास से जुड़ जाती है. उसी सड़क में है चौकी गांव. उसके दक्षिण में कुछ दूरी पर लखीसराय और मनकट्ठा स्टेशन हैं. चौकी गांव पहले ग्राम पंचायत का हिस्सा था. अब लखीसराय नगर परिषद का हिस्सा है-वार्ड संख्या-01 रजौना चौकी. रजौना बगल का गांव है.

‘सतघरवा’ की ‘घुच्ची’ से प्रकट हुए ‘इन्द्रदमनेश्वर महादेव’
जिन्हें मुकम्मल जानकारी नहीं है, वे यह अवश्य जानना चाहेंगे कि अशोक धाम की बैद्यनाथ धाम (Baidyanath Dham) सरीखी धार्मिक व सांस्कृतिक पहचान क्यों और कैसे निखर रही है. इस क्यों और कैसे का वृत्तांत कुछ यूं है. तारीख थी 07 अप्रैल 1977 की. चौकी गांव के अशोक यादव (Ashok Yadav) और गजानन साव (Gajanan Saw) चरागाह बने बगल के एक पुराने टीले पर रोज की तरह गाय-भैंस चरा रहे थे. उसी दौरान ‘सतघरवा’ खेलने के लिए ‘घुच्ची’ खोदने लगे. यह जानकर आश्चर्य होगा कि उसी ’घुच्ची’ से ‘इन्द्रदमनेश्वर महादेव’ प्रकट हुए! इतने आदिकालीन विशाल शिवलिंग के रूप में कि इसका कोई पूर्वोदाहरण नहीं है. शिवलिंग (Shivling) का दर्शन हुआ, तो अशोक यादव, गजानन साव एवं अन्य कुछ बच्चों ने उसे निकालने की अथक कोशिश की. हिम्मत जवाब दे गयी, दिमाग काम नहीं किया. रहस्य को गांव वालों के बीच ले गये. ग्रामीणों ने अपने दम पर शिवलिंग को बाहर निकाल लिया. थोड़ा-बहुत सहयोग प्रशासन का भी मिला. फिर मंदिर (Mandir) निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई. तात्कालिक तौर पर फूस की झोपड़ी में शिवलिंग प्रतिष्ठापित कर पूजा-अर्चना शुरू कर दी गयी. विविध व्यवधानों के चलते वक्त लंबा अवश्य खींच गया, पर मंदिर का भव्य निर्माण हुआ. वर्तमान में 111 कट्ठा के विस्तृत भूभाग में मंदिर परिसर (Mandir Campus) पूरी तरह जाग्रत है. अध्यात्मिक सौन्दर्य-स्वरूप आनंद की अनुभूति देता है. इसके लिए इन्द्रदमनेश्वर महादेव (Indradamneshwar Mahadeo) मंदिर ट्रस्ट कमेटी के पदधारियों की जितनी भी सराहना की जाये वह कम ही होगी. लोजपा (रामविलास) के लोकप्रिय नेता रविशंकर प्रसाद सिंह अशोक (Ravishankar Prasad Singh Ashok) की मानें, तो प्रशंसनीय योगदान सभी का रहा, पर ट्रस्ट कमेटी के सचिव डा. श्याम सुंदर प्रसाद सिंह (Dr. Shyam Sundar Prasad Singh) और कोषाध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद सिंघानिया (Rajendra Singhaniya) की सेवा व समर्पण आधारित भूमिका अतुलनीय है. इस रूप में इन दोनों का जुड़ाव नहीं रहता तो मंदिर परिसर का ऐसा स्वरूप शायद ही निखर पाता.

मंदिर के एक कोना में सिमटा है ‘समर्पण व सरोकार’
यह तो रहा इन्द्रदमनेश्वर महादेव मंदिर और ट्रस्ट कमेटी का चमकदार पक्ष. लेकिन, इसका एक दूसरा पक्ष भी है, जो पूरी तरह से नैतिकता व मानवीयता पर आधारित है. वह पक्ष टीले पर इन्द्रदमनेश्वर महादेव का प्रथम दर्शन करने वाले अशोक यादव (Ashok Yadav) और गजानन साव (Gajanan Saw) से जुड़ा हुआ है. ‘मेहरबानी’ जिस किसी की रही हो, अशोक यादव का नाम ‘धाम’ से जुड़ गया, मंदिर परिसर में घूमने-फिरने की पूरी आजादी भी है. पर, गजानन साव को कुछ भी नसीब नहीं हुआ. ऐसा क्यों? यह सवाल कोई नहीं उठाता है. अशोक यादव की इन्द्रदमनेश्वर महादेव मंदिर ट्रस्ट कमेटी से कुछ अपेक्षाएं हैं जो पूरी नहीं हो पा रही हैं. जिस समय शिवलिंग प्रकट हुआ था उस वक्त अशोक यादव मात्र 12 साल के थे. तब से खुद को उन्होंने इसी इन्द्रदमनेश्वर महादेव की सेवा में समर्पित कर रखा है. गेरुआ वस्त्र धारण कर 46 वर्षों से एकनिष्ठ भक्ति में लीन हैं. चौकी गांव में उनका छोटा-सा मकान है. दो पुत्रों और दो पुत्रियों का परिवार है. बड़ी बेटी की शादी हो गयी है. एक बेटा संभवतः बीए की पढ़ाई कर रहा है. पत्नी इस धरा पर नहीं हैं. अशोक धाम परिसर में उनका कुछ ‘अपना’ है तो वह शिव मंदिर (Shiv Mandir) का एक छोटा-सा कोना. दिनभर मंदिर परिसर में घूमते-टहलते हैं. श्रद्धालुओं को कोई परेशानी नहीं हो, इसका ख्याल रखते हैं. थक जाते हैं तब उसी अपने ‘कोना’ में बिछी छोटी सी आसनी पर बैठ सुस्ता लेते हैं. इसे ‘कृतघ्नता’ नहीं तो और क्या कहा जायेगा कि मंदिर ट्रस्ट कमेटी ने शिवलिंग के प्रति उनके ‘समर्पण व सरोकार’ को एक कोना में समेट दिया है! अशोक यादव को इसका काफी मलाल है.

रहने-सहने और खाने की व्यवस्था तो होनी ही चाहिये
अशोक धाम परिसर में हाल में तापमान लाइव डॉट कॉम की अशोक यादव (Ashok Yadav) से मुलाकात हुई. साथ में चन्द्रमौलेश्वर पांडेय (Chandramauleshwar Pandey) भी थे, जो बालगुदर (Balgudar) गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने खुद को इस मंदिर का पुजारी-पुरोहित बताया. उनके मुताबिक रजौना, चौकी आदि गांव उनके ‘यजमनका’ में हैं इसलिए अशोक धाम में पुरोहित की भूमिका निभाते हैं. पुरोहिती से अच्छी खासी कमाई हो जाती है. पवित्र सावन माह और महाशिवरात्रि के दिन श्रद्धालुओं की अपार भीड़ तो जुटती ही है, सामान्य दिनों में भी शादी-विवाह और मुंडन संस्कार (Mundan Sanskar) होते रहते हैं. इन सबसे उनकी धन की जरूरत करीब-करीब पूरी हो जाती है. लेकिन, अशोक यादव (Ashok Yadav) का हाथ हमेशा खाली ही रहता है. ‘अशोक धाम’ के रूप में अपने नाम को ‘अमरत्व’ मिलने से वह संतुष्ट हैं, पर साथ में यह सवाल भी जोड़ते हैं कि ट्रस्ट कमेटी की आमदनी में उनका थोड़ा भी हक नहीं है? मंदिर परिसर में तकरीबन 15 सेवाकर्मी हैं. सबको वेतन मिलता है. उनके (अशोक यादव) लिए भी तो मंदिर परिसर में रहने-सहने और खाने की व्यवस्था होनी चाहिये? पुजारी चन्द्रमौलेश्वर पांडेय उनकी इस अपेक्षा का समर्थन करते हैं.


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बड़ा सवाल है कि कहां और किस हाल में हैं गजानन साव?
अशोक यादव की मानें, तो इस संदर्भ में उन्होंने ट्रस्ट कमेटी के पदेन अध्यक्ष लखीसराय (Lakhisarai) के जिलाधिकारी से कई बार अनुरोध किया. कोई सुनवाई नहीं हुई. क्षेत्रीय भाजपा विधायक विजय कुमार सिन्हा (Vijay Kumar Sinha) के समक्ष दुखड़ा रोया तो जवाब इस रूप में मिला-‘आपको भी लोभ हो गया है.’ महत्वपूर्ण बात यहां यह भी है कि अशोक यादव (Ashok Yadav) को इन्द्रदमनेश्वर महादेव मंदिर ट्रस्ट कमेटी कोई आर्थिक सहयोग तो नहीं ही करती है, अशोक धाम के नाम पर भ्रम भी पैदा करती है. वह ‘अशोक’ को सांसारिक शोक-संतापों से मुक्ति देने वाले भोले शंकर के रूप में परिभाषित कर इस अशोक यादव के महत्व को कमतर बना दे रही है. ट्रस्ट कमेटी का तर्क जो हो, आम धारणा में यही अशोक यादव हैं. स्थानीय लोग महसूस करते हैं कि मंदिर परिसर में अशोक यादव के लिए एक कुटिया होनी चाहिये. ताकि लोग उन्हें देखें, जानें व समझें कि ‘इन्द्रदमनेश्वर महादेव’ का प्रथम दर्शन इन्हीं को हुआ था. दुर्भाग्यजनक बात यह भी कि गजानन साव (Gajanan Saw) कहां और किस स्थिति में हैं, यह जानने-समझने की चिंता किसी को नहीं है.

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