एक ऐसी झील जिसमें टापू तैरता है!
तापमान लाइव ब्यूरो
18 अप्रैल 2023
PATNA : विधर्मी लोग इसे पाखंड (Pakhand) कहें या ढोंग, अपने देश में ऐसी अनेक जगहें हैं, जहां किसी न किसी रूप में ईश्वरीय शक्तियों का अहसास होता है. इस अहसास के रहस्य को समझ पाना आसान नहीं होता. ऐसा ही एक सिद्धस्थल हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में मंडी से 49 किलोमीटर दूर है. वहां एक झील (Jheel) में टापू (Tapu) है जो हमेशा तैरता रहता है. दिन के पहर के अनुसार दिशा बदलता रहता है. अचरज की बात यह भी कि 9 हजार 100 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस झील में पानी (Water) ठहरता नहीं है. पानी कहां से आता है और कहां चला जाता है यह भी एक बड़ा रहस्य है.
नहीं लग पायी कभी थाह
सनातन धर्म (Sanatan Dharma) की मान्यता के मुताबिक यह झील पराशर ऋषि (Prashar Rishi) को समर्पित है. वहां एक मंदिर (Mandir) है जिसका निर्माण14वीं शताब्दी में मंडी रियासत के राजा बाणसेन ने कराया था. ऐसा कहा जाता है कि जहां मंदिर है वहां पराशर ऋषि ने तपस्या की थी. वह मुनि शक्ति के पुत्र और वशिष्ठ के पौत्र थे. पराशर ऋषि झील की गहराई की थाह आज तक नहीं लग पायी है. बताया जाता है कि इस झील में तैरता हुआ जो टापू है वह कुछ वर्षों पहले तक सुबह के समय पूरब दिशा में और शाम के समय में पश्चिम दिशा में दिखता था. वर्तमान में यह कभी तैरता नजर आता है तो कुछ दिनों के लिए एक जगह ठहर भी जाता है.
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पाप और पुण्य से जुड़ी है मान्यता
ऐसी मान्यता है कि टापू के तैरने और ठहर जाने का संबंध पाप और पुण्य से जुड़ा है. स्थानीय लोग कहते हैं कि इस क्षेत्र में बारिश नहीं होती है तो पराशर ऋषि सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुरूप गणेश जी (ganesh jee) को बुलाते हैं. गणेश जी भटवारी नामक स्थान पर ‘विराजमान’ हैं जो पराशर ऋषि मंदिर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है. गणेश जी को बुलाने की प्रार्थना राजा के समय से ही चली आ रही है. इस झील को लेकर सामान्य धारणा यह भी है कि यहां देवी-देवता स्नान के लिए आते हैं. वहां हर वर्ष आषाढ़ की संक्रांति और भाद्रपद की कृष्ण पक्ष पंचमी के मौके पर मेले का आयोजन होता है. भाद्रपद में लगने वाला मेला पराशर ऋषि के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. पराशर ऋषि स्थल से कुछ किलोमीटर दूर उनका भंडार है.
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