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सीमांचल भी बिहार में ही है मुख्यमंत्री जी!

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अशोक कुमार
08 जुलाई, 2021

पूर्णिया. बाढ़, कटाव और भीषण जल जमाव की सालाना विभीषिका जितनी उत्तर बिहार, विशेषकर मिथिलांचल और कोशी अंचल को झेलनी पड़ती है,लगभग वैसी ही त्रासदी से सीमांचल को भी दो-चार होना पड़ता है. लेकिन, इसका दुर्भाग्य है कि इस स्थायी दुख-दर्द से इसे निजात दिलाने के प्रति राज्य सरकार कभी गंभीर नहीं दिखती है. आमतौर पर उसका सारा ध्यान और सारी ऊर्जा उत्तर बिहार के अन्य हिस्सों को ही उबारने-बचाने-बसाने में खपती रहती है. सीमांचल में प्रायः हर साल बाढ़ आती है और तबाही मचाकर चली जाती है. सरकार का दायित्व स्थानीय स्तर पर तात्कालिक बचाव और राहत कार्यों में सिमट कर रह जाता है. स्थायी निदान की बात दूर, संकट के वक्त बाढ़ नियंत्रण की जवाबदेही संभालने वाले जल संसाधन विभाग के मंत्री बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का मुआयना और पीड़ितों के प्रति सहानुभूति जताने कभी आये भी हैं, इसका स्मरण किसी को नहीं है. अतीत में भले कभी आये हों, ‘सुशासन काल’ का ऐसा कोई इतिहास नहीं है. किसी-किसी साल आकाश से बदहाली देखने भर की कृपा मुख्यमंत्री अवश्य बरसा देते हैं. वैसे, इस बार अभी तक वैसा भी कुछ नहीं हुआ है. संजय झा जल संसाधन विभाग के मंत्री हैं. उक्त मिथक को तोड़ दें, तो अलग बात होगी.

सीमांचल में चार जिले हैं-पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार और अररिया. संपूर्ण क्षेत्र में 19 नदियों का जाल है. इस बार वर्षा ऋतु की शुरुआत में ही इतनी घनघोर बारिश हुई कि तमाम नदियां समय पूर्व उफना गयीं. महानंदा, कनकई, परमान, डोंक, बकरा, कौल, मैची,पनार आदि नदियों में तेज कटाव का खतरनाक सिलसिला शुरू हो गया है. खेत-खलिहान और गांव-घर के साथ-साथ कब्रिस्तान और मस्जिदें भी उसकी चपेट में हैं. पूर्व की भांति सड़कों पर शरण ले रखी जनता लस्त-पस्त है. लेकिन, सरकार और प्रशासन तंत्र को इसकी कोई चिंता नहीं है. जिम्मेवार लोग कान में तेल डाल रखे हैं. राजनीति भी लगभग बेफिक्र है. उसकी इसी दीर्घ बेफिक्री ने इस अंचल में आल इंडिया मजलिस- ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) को पांव जमाने का आधार दिया है. सीमांचल के पांच विधानसभा क्षेत्रों पर एआईएमआईएम काबिज है. ये सबके सब बाढ़ एवं कटावग्रस्त क्षेत्र हैं. विडंबना यह कि एआईएमआईएम की इस कामयाबी से आमलोगों की परेशानी कम होने की बजाय कुछ बढ़ ही गयी है. इस रूप में कि इन क्षेत्रों की समस्याओं से दूसरे दलों ने मुंह मोड़ लिया है. दूसरी तरफ शासन-प्रशासन के स्तर पर एआईएमआईएम के विधायकों की अपेक्षा के अनुरूप महत्व नहीं मिल रहा है. ऐसा एआईएमआईएम के विधायकों का ही कहना है.

अररिया जिले के जोकीहाट के विधायक हैं शाहनवाज आलम. उनके मुताबिक इस विधानसभा क्षेत्र के बीचोबीच से कनकई, बकरा आदि कुछ नदियां गुजरती हैं जो हर साल बाढ़ और कटाव का दुख बांटती रहती हैं. दीर्घकाल से विनाश का यह क्रम बना हुआ है, पर सरकार इसे नियंत्रित करने की कभी कोई कोशिश नहीं करती है. बहादुरगंज के विधायक अंजार नईमी की मानें तो एआईएमआईएम ने सड़क से लेकर सदन तक मुद्दे को उठाया, राज्य सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया. तब स्वतंत्र भारत के इतिहास में संभवतः पहली बार बाढ़ नियंत्रण से संबंधित जल संसाधन विभाग की टीम कटाव स्थलों का मौका मुआयना करने क्षेत्र में आयी. बायसी विधानसभा क्षेत्र के 26 गांव महानंदा, कनकई और परमान नदियों के बाढ़-कटाव से त्रस्त हैं. पीड़ित लोगों की जिन्दगी सड़कों पर कट रही है. उस क्षेत्र के विधायक रूकनुद्दीन अहमद का कहना है कि इस इलाके में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब कभी आये, हर बार बाढ़ एवं कटाव पर नियंत्रण के कारगर उपाय करने की उनसे गुहार की गयी. लेकिन, कभी कोई पहल नहीं हुई. वह सवाल उठाते हैं कि इस क्षेत्र के अल्पसंख्यक बहुल रहने के कारण तो इसकी ऐसी उपेक्षा नहीं हो रही है? अमौर के विधायक अख्तरुल ईमान सवाल नहीं उठाते हैं, बल्कि सीधे तौर पर आरोप लगाते हैं कि अल्पसंख्यक बहुल रहने के कारण ही राज्य सरकार सीमांचल में बाढ़ एवं कटाव पर काबू पाने का कारगर उपाय नहीं कर रही है. कोचाधामन के विधायक इजहार असफी का भी बहुत कुछ ऐसा ही मानना-कहना है.

वर्तमान में बहादुरगंज विधानसभा क्षेत्र में लौचा- महेशबथना मार्ग के समानांतर बहती है कौल नदी. इस मार्ग से जुड़े गांवों को अमूमन हर साल कटाव की वजह से विस्थापन का दंश झेलना पड़ता है. इस बार भी वैसा ही होगा. इसलिए कि यह उनकी नियति बन गयी है. महेशबथना में पुल के नीचे बसे गांव भीषण कटाव से जूझ रहे हैं. कौल नदी की धार जिस ओर मुड़ती है, कयामत उधर ही आ जाती है. यह नदी कब और किधर की भूमि निगल जायेगी और कहां मकानों को उदरस्थ कर लेगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है. लौचा और डोरिया टोली में बर्बादी दस्तक देती दिख रही है. लौचा बस्ती और डोरिया टोली के बीच सतमेढ़ी गांव है. कौल नदी ने उस गांव में पिछले साल भारी तबाही मचा दी थी. इस बार भी वैसी ही कुछ आशंका है. इन्हीं से जुड़े गांव खारी बस्ती, युनूस टोला आदि की भी यही कहानी है. इन गांवों को बाढ़ एवं कटाव से बचाने के नाम पर कुछ जगहों पर बोल्डर बैग एवं सैंड बैग रखकर खानापूत्र्ति कर ली जाती है. लेकिन, कभी इसका कोई मुकम्मल उपाय नहीं किया जाता है. लौचा पुल के नीचे के गांवों के लोग पुश्त-दर-पुश्त इस समस्या से जूझ रहे हैं. पर, उनकी यह व्यथा सत्ता के गलियारे तक सही ढंग से पहुंच नहीं पा रही है या फिर उसकी उच्च स्तरीय अनदेखी हो रही है. बहादुरगंज के कांग्रेस नेता इमरान आलम इस बात को लेकर चिंतित हैं कि उनके इलाके के मूसलडांगा, दुर्गापुर, देवरी महादलित टोला, लवटोली, खाड़ीटोला एवं केकाहाट बस्ती, महेश बथना आदि बर्बाद होने के मुहाने पर हैं. कनकई और रतवा नदियों की जीभें उन्हें निगलने को लपलपा रही हैं. राज्य सरकार की तंद्रा नहीं टूटी तो इन गांवों का अस्तित्व मिट जा सकता है. जल संसाधन विभाग की लापरवाही की वजह से पिछले साल के बाढ़-कटाव में सैकड़ों परिवार गृहविहीन हो गये थे. उनमें अधिकतर अब भी विस्थापन की जिन्दगी जीने के मजबूर हैं. स्थानीय स्तर पर ग्रामीणों ने किशनगंज के जिलाधिकारी को त्राहिमाम संदेश भेजकर सुरक्षा प्रदान करने की गुहार लगायी है. व्यवस्था का जो रंग-ढंग है उसमें इस बार भी उसके अनसुना रह जाने की ही संभावना है.

सीमांचल में 2017 में आयी विनाशकारी बाढ़ ने पूर्व केन्द्रीय राज्यमंत्री तसलीम उद्दीन की संवेदनाओं को झकझोर दिया था. पूरी ताकत झोंककर उन्होंने सीमांचल को इससे स्थायी त्राण दिलाने के लिए महानंदा बेसिन योजना स्वीकृत करायी थी. उनके पुत्र विधायक शाहनवाज आलम का कहना है कि उस योजना का कार्यान्वयन हुआ होता तो शायद क्षेत्र की ऐसी दुर्दशा नहीं होती. शाहनवाज आलम के मुताबिक एआईएमआईएम के प्रमुख सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस मुद्दे को संसद में उठाने का आश्वासन दिया है. इस बीच कोचाधामन के पूर्व जद(यू) विधायक मास्टर मुजाहिद आलम का दावा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मरहूम तसलीम उद्दीन के सपनों को साकार करने के लिए महानंदा बेसिन योजना पर काम शुरू करा दिया है. प्रथम चरण का काम कटिहार जिले में संपन्न कराया गया है. द्वितीय चरण में 194 किलोमीटर लंबे तटबंध का निर्माण शुरू ही होने वाला है. तृतीय चरण में नदी जोड़ो योजना पर काम होगा. जद(यू) के दूसरे पूर्व विधायक नौशाद आलम की मानें तो बाढ़ के दौरान खेत-खलिहान या जमीन के कटने-धंसने को सरकारी भाषा में कटाव नहीं माना जाता है. जब पूरा गांव नदी के गर्भ में समा जाता है तब उसे कटाव समझा जाता है. कटिहार जिले के कदवा विधानसभा क्षेत्र की 10 पंचायतों में महानंदा नदी का कटाव विकराल रूप धारण किये हुए है. वहां के कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान को चिंता इस बात की है कि सरकार के स्तर से सिर्फ दो पंचायतों में ही कटाव निरोधक कार्रवाई हो रही है. उनके मुताबिक महानंदा नदी से सटे बांध के अंदर जितने भी गांव हंै उन पर कटाव का खतरा मंडरा रहा है. ये गांव कदवा और डंडखोरा प्रखंडों में हैं. बरसिया, तेतलिया, तैयबपुर, धनगामा, जाजा, सिकौना आदि गांवों पर जिस ढंग का खतरा मंडरा रहा है उसको देखते हुए वहां कटाव नियंत्रण की कार्रवाई शीघ्र शुरू करने की जरूरत है.

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