कर लेंगे खुदकुशी कुलसचिव से प्रताड़ित प्रोफेसर!
विजयशंकर पांडेय
10 जुलाई, 2021
दरभंगा. मामला ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा का है. डा. अताउर रहमान लगभग 36 वर्षों से इस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं. इन वर्षों के दौरान इन्हें विश्वविद्यालय से कभी कोई शिकवा-शिकायत नहीं हुई. लेकिन, अब विश्वविद्यालय प्रशासन के कथित अमानवीय व्यवहार और कथित रूप से कुलसचिव द्वारा दी जा रही मानसिक प्रताड़ना से बुरी तरह त्रस्त हैं. उनके मुताबिक स्थानंतरण वापसी और रोक दिये गये वेतन का भुगतान नहीं हुआ तो उसे कुलपति डाॉ (प्रो.) सुरेन्द्र प्रताप सिंह और कुलसचिव डा. मुश्ताक अहमद द्वारा उन्हें आत्महत्या के लिए बाध्य करना माना जायेगा. ऐसे में उनके परिवार में कोई अप्रिय घटना होती है तो उसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन जिम्मेवार होगा. हालांकि, डा. अताउर रहमान के कुलपति के नाम संबंधित पत्र में विषय के रूप में ‘आत्महत्या की स्वीकृति देने’ का जिक्र है. कुलपति डा. एस पी सिंह ने इस पर मौन धारण कर रखा है. सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर डा. अताउर रहमान के समक्ष ऐसी बाध्यता क्यों उत्पन्न की जा रही है? कुलसचिव डा. मुश्ताक अहमद उन्हें किस रूप में प्रताड़ित कर रहे हैं?
जानकारों के मुताबिक कुलसचिव की कथित मानसिक प्रताड़ना की कुछ खास वजह है. दरअसल, डा. अताउर रहमान मिल्लत कालेज, दरभंगा में फारसी विभाग के सहायक प्राध्यापक थे. कालेज के पूर्व प्रधानाचार्य और वर्तमान में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. मुश्ताक अहमद के खिलाफ गबन एवं भ्रष्ट आचरण के आरोप को लेकर जब लहेरियासराय थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी, उस वक्त वह (डा. अताउर रहमान) बर्सर का दायित्व संभाल रहे थे. संभवतः डा. मुश्ताक अहमद की ऐसी धारणा है कि उस कालखंड में उनके खिलाफ जो अभियान चला था उसमें डा. अताउर रहमान की भी भूमिका थी. सच क्या है, यह नहीं कहा जा सकता. पर, डा. अताउर रहमान और उनकी बेगम हुस्ने आरा का मानना है कि उसी समझ के तहत उन्हें तबादले के रूप में मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया जा रहा है, सात माह से वेतन का भुगतान भी रोक रखा गया है. डा. अताउर रहमान और उनकी बेगम हुस्ने आरा के इस आरोप को इससे भी बल मिलता है कि सिर्फ उनका (डा. अताउर रहमान) ही नहीं, मिल्लत कालेज के प्राथमिकी दर्ज कराने वाले तब के प्रधानाचार्य डा. मो. रहमतुल्लाह एवं अन्य कुछ प्राध्यापकों पर भी तबादले की गाज गिरी है. डा. मो. रहमतुल्लाह कुंवर सिंह कालेज, लहेरियासराय (दरभंगा) में प्रधानाचार्य थे. वहां से उन्हें सीएमजे कालेज, दोनवारी हाट, खुटौना, मधुबनी भेज दिया गया है. यहां गौर करने वाली बात है कि निलंबन अवधि में डा. मुश्ताक अहमद का मुख्यालय इसी कालेज को बनाया गया था. कुलसचिव के रूप में डा. मुश्ताक अहमद की 24 सितम्बर 2020 को पदस्थापना के लगभग ढाई माह बाद ही 11 दिसम्बर 2020 को डा. अताउर रहमान का मिल्लत कालेज, दरभंगा से जेएमडीपीएल महिला कालेज, मधुबनी तबादला कर दिया गया. कथित रूप से प्रतिशोध की भावना के तहत हुए इस तबादले से उन्हें कोई खास दुख नहीं पहुंचता. लेकिन, तबादले के साथ वेतन का भुगतान भी रोक दिया गया. तर्क यह कि सेवा सामंजन में खोट है.
वेतन का भुगतान नहीं होने और उसी दौरान पूरे परिवार के कोरोना से संक्रमित हो जाने से बदहाल-तंगहाल डा. अताउर रहमान ने 15 जून 2021 को कुलपति डा. एस पी सिंह को पत्र लिखकर ‘आत्महत्या करने की इजाजत’ मांगी थी. पत्र में कहा था कि भूख और कर्ज उन्हें ऐसा करने को बाध्य कर दे सकता है. ऐसे में उनके परिवार में कोई अप्रिय घटना होती है तो उसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन जिम्मेवार होगा. डा. अताउर रहमान की पत्नी हुस्ने आरा ने भी 26 जून 2021 को कुलपति को ऐसा पत्र भेजा था. 01 जुलाई 2021 को कुलसचिव का जवाब मिला. उसमें समस्या के समाधान की बाबत कोई चर्चा नहीं थी. वेतन भुगतान नहीं होने का कारण एस बी सिन्हा आयोग के समक्ष दावा निष्पादित नहीं कराया जाना बताया गया. आत्महत्या की बाबत कहा गया कि यह संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है और दंडनीय है. इस बाबत उन्होंने कानूनी कार्रवाई करने की बात भी कही. हुस्ने आरा ने 03 जुलाई 2021 को कुलसचिव को प्रत्युत्तर दिया. कहा कि आत्महत्या के लिए बाध्य करना या उकसाना भी संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है. डा. अताउर रहमान का सेवा सामंजन अग्रवाल कमीशन से संपुष्ट है. ऐसे में एस बी सिन्हा आयोग के समक्ष दावा पेश करने की कोई जरूरत नहीं है. एस बी सिन्हा आयोग 2013 में अस्तित्व में आया था. इन सात वर्षों के दौरान उनकी सेवा पर कभी कोई सवाल नहीं उठा, नियमित वेतन भुगतान हुआ. फिर इतने वर्षों के बाद इस मुद्दे को उठा वेतन भुगतान रोक देने का किसी भी रूप में कोई आधार नहीं बनता है.