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धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री : कौन भुगतेगा इस विरोध का खामियाजा?

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अविनाश चन्द्र मिश्र
11 मई 2023

PATNA : इसे क्या कहेंगे! सुनियोजित साजिश, सियासी नादानी या फिर दुर्भावना भरी बयानबाजी? सहमति-असहमति और समर्थन-विरोध का लोकतांत्रिक तरीका होता है. बगैर सोचे-समझे ‘सीधे लाठी कपार पर!’ इसे वैचारिक दरिद्रता कहा जाता है. बात देश-विदेश में सुर्खियां पा रहे बागेश्वर बालाजी धाम (Bageshwar Balaji Dham) के आचार्य पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के खिलाफ मुहिम की है. विरोध का भी कोई न कोई लक्ष्य होता है, सिद्धि होती है. हर संबद्ध शख्स को गंभीरता से सोचना चाहिए कि पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री (Pandit Dhirendra Krishna Shastri) को लेकर अनाप-शनाप टिप्पणी करने से उन्हें हासिल क्या होगा?

क्या हासिल होगा शाप के सिवा?
विवाद की अनावश्यक शुरुआत करने वाले वन एवं पर्यावरण मंत्री तेजप्रताप यादव (Tejpratap Yadav), विस्तार देने वाले प्रदेश राजद अध्यक्ष जगदानंद सिंह (Jagdanand Singh) और उनके फटे सुर से सुर मिलाने वाले राजद (RJD) के अन्य नेताओं को बहुसंख्यक सनातनियों के शाप के सिवा कुछ हासिल होगा क्या? कुछ नहीं हासिल होगा. सनातनी आस्था से खिलवाड़ से जो कुछ मिलता वह तो पहले से उन्हें प्राप्त है! धर्मनिरपेक्षता भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था का मूल तत्व है. इसे ढाल बना राजनीतिक (Political) उदंडता दिखाने वालों को इतनी समझ तो होनी ही चाहिए कि धार्मिक स्वतंत्रता भी लोकतांत्रिक व्यवस्था का अहम हिस्सा है.

जगदानंद सिंह और तेजप्रताप यादव.

हित प्रभावित होगा तेजस्वी का
अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब दूसरे की भावना को ठेस पहुंचाना नहीं होता. राजद के नेताओं के आपत्तिजनक बयानों से नुकसान पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री का नहीं हुआ है और न होगा. इससे सनातनियों की उनके प्रति आस्था, श्रद्धा और विश्वास मजबूत हुआ है, बढ़ा है. नफा-नुकसान का आकलन-विश्लेषण किये बिना ‘आक्रमण’ से राजनीतिक हित तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) का प्रभावित होगा. पार्टी का सर्ववर्गीय-सर्वजातीय स्वरूप निखारने व चरित्र बदलने के प्रयास को झटका के रूप में. चूंकि नीतीश कुमार (Nitish Kumar) साथ हैं तो मुद्दे पर मौन रहने के बावजूद प्रभावित उनकी भी राजनीति (Politics) होगी. हालांकि, तेजस्वी प्रसाद यादव के उक्त प्रयास में कोई गंभीरता है, ऐसी बात नहीं. इसमें वास्तविकता से कहीं ज्यादा छलावा है.

‘जंगल राज’ की परछाई
जो भी है, राजनीतिक दृष्टिकोण से पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री विरोधी मुहिम से राजद को जो नुकसान पहुंच रहा है उसका अनुमान शायद तेजस्वी प्रसाद यादव को नहीं है. वैसे, इस मुहिम से हैरानी उन्हें भी हुई होगी. लेकिन, बोलें भी तो क्या और किस पर! चुनावों में समर्थन की बात अलग है, ‘जंगल राज’ और ‘माय’ से भिन्न इनकी जो छवि उभर-निखर रही थी, वह इस प्रकरण से मलिन हो रही है. गौर करने वाली बात यह भी कि इस मुहिम में एक जाति विशेष के नेताओं के अलावा अन्य किसी जाति का कोई बड़ा चेहरा नहीं है. ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि यह राजद के विरोध में गैर यादव जातियों की अंदरूनी गोलबंदी का संकेत तो नहीं है? यदि वैसा है तो राजद और तेजस्वी प्रसाद यादव का भविष्य क्या होगा इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है. खतरा इस बात से भी है कि इस मुहिम में ‘जंगल राज’ की परछाई दिख रही है.


सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के बिहार आगमन का इतना विरोध क्यों हो रहा है? एयरपोर्ट से निकलने नहीं देंगे… जेल भेज देंगे… जैसी उत्तेजक बातें क्यों की जाने लगी है? बागेश्वर धाम बालाजी महाराज ने ऐसा क्या गुनाह कर दिया कि जाति विशेष का एक तबका इतना आक्रामक हो उठा है?


अनर्गल प्रलाप
बैसाखी पर राजनीति करने वाले जगदानंद सिंह, शिवानंद तिवारी (Shivanand Tiwari), उदयनारायण चौधरी (Udainarayan Chaudhary) आदि वर्तमान दौर में अप्रासंगिक हो गये हैं. उदयनारायण चौधरी का राजनीतिक और सामाजिक चरित्र जगजाहिर है. जाप सुप्रीमो राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (Rajesh Ranjan urf Pappu Yadav) के बयानों का कोई महत्व है ही नहीं, अनर्गल प्रलाप के तौर पर स्थापित है. पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री पर कटाक्ष करने वाले शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव (Chandrashekhar Yadav) और सहकारिता मंत्री डा. सुरेंद्र प्रसाद यादव (Dr. Surendra Prasad Yadav) की विद्वता बताने की जरूरत नहीं. और की बात अपनी जगह, विधायक रीतलाल यादव (Ritlal Yadav) का भी बयान आया.

बर्दाश्त तो करना ही होगा
यह सब तो है, यहां सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के बिहार (Bihar) आगमन का इतना विरोध क्यों हो रहा है? एयरपोर्ट (Airport) से निकलने नहीं देंगे… जेल भेज देंगे… जैसी उत्तेजक बातें क्यों की जाने लगी है? बागेश्वर धाम बालाजी महाराज ने ऐसा क्या गुनाह कर दिया कि जाति विशेष का एक तबका इतना आक्रामक हो उठा है? सामान्य कार्यकर्ता नहीं, नीतीश कुमार की सरकार (Government) में शामिल राजद के कई मंत्री (Minister) भी संवैधानिक सीमा का उल्लंघन कर कटू वचनों से बहुसंख्यकों की भावना को चोट पहुंचा रहे हैं, भड़का रहे हैं. ऐसे में अपनी आस्था पर आघात महसूस करने वालों का प्रत्युत्तर ‘बिहार किसी के बाप का नहीं है’ के रूप में आता है, तो उसको उन्हें बर्दाश्त करना होगा ही.

इस तरह फाड़े गये पटना में पोस्टर.

तब क्या करेंगे?
पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री का विरोध यह कह किया जा रहा है कि ‘हिन्दू-मुस्लिम’ की बात कर वह धार्मिक उन्माद फैलाते हैं. हिन्दू राष्ट्र बनाने की बात करते हैं. यह भी कि उनके वचनों-प्रवचनों से भाजपा (BJP) को लाभ मिल जाता है. बिहार में वैसा नहीं होने दिया जायेगा. कोई भी संवेदनशील व विवेकशील व्यक्ति धार्मिक उन्माद का समर्थन नहीं करेगा. पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के विरोध के नाम पर फैलायी जा रही जातीय वैमनस्यता का भी नहीं. जहां तक पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की बात है, तो वह राजनितिज्ञ नहीं, सनातनी संत हैं. संविधान प्रदत्त अधिकार के तहत अपने धर्म का प्रचार-प्रसार नहीं करेंगे, बात नहीं करेंगे, तो क्या करेंगे? सिर्फ घंटी बजायेंगे और माला जपेंगे?

संयम बरतने की जरूरत
धर्म की चर्चा होगी, तो स्वाभाविक रूप से कुछ इधर-उधर की बातें निकल ही जायेंगी. जैसे नब्बे के दशक की सामाजिक न्याय की राजनीति में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के मुंह से ‘भूरा बाल साफ करो’ निकल गया था. दरअसल, जो लोग विरोध कर रहे हैं, उनकी चिंता धार्मिक उन्माद की नहीं, बौखलाहट सनातन समुदाय की संभावित एकजुटता को लेकर है, जो उनकी समझ में राजद के जनाधार की नींव हिला दे सकती है. पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने भी विरोध का कारण राजनीतिक बताया है. इन तमाम बातों के बीच पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री को भी अपनी वाणी और भाषा पर नियंत्रण रखने की जरूरत है, ताकि आपसी सद्भाव व सौहार्द्र में कोई खलल नहीं पड़े.

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