ललन सिंह को नहीं चाहिये अध्यक्ष का पद!
राजकिशोर सिंह
25 जुलाई, 2021
पटना. जो बातें चर्चाओं में हैं उसको देखते हुए यह थोड़ा अटपटा और अनर्गल लग सकता है. पर, पूरी तरह आधारहीन भी नहीं है. सोलह सदस्यीय जद (यू) संसदीय दल के नेता राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की प्रतिष्ठा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दबाव में इसे भले स्वीकार कर लें, परन्तु उनकी खुद की ऐसी कोई लालसा नहीं है. उनके करीबियों के बीच से जो खबर छन कर आ रही है उसके मुताबिक हो सकता है कि वह इस मामले में नीतीश कुमार के आग्रह को भी ठुकरा दें. उनकी इस अनिच्छा का वाजिब कारण भी है जिसे आसानी से नजरंदाज नहीं किया जा सकता. पहला तो यह कि पहले समता पार्टी और फिर जद(यू) के राष्ट्रीय अध्यक्षों के साथ कथित रूप से नीतीश कुमार का जो ‘सलूक’ हुआ वह ललन सिंह को इस पद को स्वीकार करने से रोक रहा है. इसलिए भी कि वह इस ‘सलूक’ के चश्मदीद ही नहीं, सहयोगी ‘शिल्पकार’ भी रहे हैं. नीतीश कुमार के मिजाज को जितना करीब से वह जानते हैं, शायद और कोई नहीं जानता होगा. पहले जार्ज फर्नांडिस और फिर शरद यादव की जिस ‘अपमानजनक’ तरीके से अध्यक्ष पद से विदाई हुई वह ललन सिंह के जेहन में अच्छी तरह बसा हुआ है.
जार्ज फर्नांडिस और शरद यादव की बात दूर, नीतीश कुमार के अतिविश्वसनीय माने जाने वाले जद(यू) के वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह के साथ जो हो रहा है, इसकी कल्पना किसी ने की होगी? जैसी कि चर्चा है कि 31 जुलाई 2021 को नयी दिल्ली में जद(यू) की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक होगी. उसमें अध्यक्ष पद से आरसीपी सिंह की रुख्सती की औपचारिकता निभायी जायेगी. इस विदाई का आधार उनके केन्द्र में मंत्री बन जाना बताया जा रहा है-‘एक व्यक्ति एक पद.’ यह फार्मूला संभवतः पहली बार आरसीपी सिंह पर ही आजमाया जा रहा है. पूर्व में जार्ज फर्नांडिस और शरद यादव केन्द्र में मंत्री रहते पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर विराजमान रहे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी वैसा ही किया. इस परिप्रेक्ष्य में यह सवाल उठना वाजिब है कि आखिर आरसीपी सिंह के साथ ही ऐसा क्यों होने जा रहा है? कहीं नीतीश कुमार की मर्जी के खिलाफ केन्द्र में मंत्री बन जाना तो कारण नहीं है? ललन सिंह की कथित आनाकानी की एक वजह यह भी बतायी जा रही है कि ‘अर्थ प्रबंधन’ की दृष्टि से वह खुद को पूर्व के अध्यक्षों की तुलना में कमतर आंक रहे हैं.
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि आरसीपी सिंह के विकल्प के तौर पर जद(यू) संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा के नाम की खूब चर्चा हुई थी. हालांकि, उनकी संभावना अब भी बनी हुई है, पर राष्ट्रीय अध्यक्ष की तुलना में प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनकी अधिक उपयोगिता आंकी जा रही है. जद(यू) को मजबूत जनाधार की जरूरत मुख्य रूप से बिहार में ही है. बहरहाल, यह सब महज अनुमान है. आरसीपी सिंह की राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से विदाई होती भी है या नहीं, होती है तो उनकी जगह ताजपोशी किसकी होगी इसके लिए कम से कम 31 जुलाई 2021 तक तो इंतजार करना ही होगा. इस बीच आमलोगों के मनोरंजन के लिए शिगूफे उड़ते रहेंगे.