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कहानी कुर्मिस्तान की : छोटी-छोटी संख्या में उलझा भविष्य

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अरुण कुमार मयंक
30 दिसम्बर 2023

Biharsharif : भाजपा नेता पूर्व केन्द्रीय मंत्री आरसीपी सिंह कुर्मी समाज की समसंवार उपजाति से हैं. एक समय था कि जदयू में उनकी अघोषित हैसियत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के बाद की थी. सत्ताजनित अहंकार में नीतीश कुमार ने हालात ऐसे बना दिये कि उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल और राज्यसभा की सदस्यता से मुक्त हो जाना पड़ा. संख्या भले कम हो, पर इस प्रकरण से समसंवार कुर्मी नीतीश कुमार से खासे नाराज बताये जाते हैं. उनकी समझ है कि जदयू नेतृत्व ने जान बूझकर आरसीपी सिंह (RCP Singh) को नीचा दिखाया है. इसका असर 2024 के संसदीय चुनाव में जदयू की सेहत पर पड़ सकता है. हालांकि, परंपरागत (Traditional) रूप से ज्यादातर समसंवार कुर्मी जदयू नेता पूर्व विधायक ईं. सुनील के साथ माने जाते हैं. इधर के दिनों में कुछ जातीय कार्यक्रम भी हुए हैं. उन कार्यक्रमों में कुर्मी समाज का उपजातीय धु्रवीकरण (Polarization) साफ-साफ दिखा.

एकजुटता की मुहिम
कोचैसा कुर्मियों ने ‘महतो बाबा’ एवं के के परिषद द्वारा अंदरूनी तौर पर पूरी उपजाति को एकजुट करने की मुहिम छेड़ रखी है. के के परिषद के अध्यक्ष बृजनंदन प्रसाद हैं. उनकी बातों पर विश्वास करें, तो 2009 के लोकसभा चुनाव के पहले कोचैसा कुर्मी का एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिला था. नीतीश कुमार ने उनकी बातें गंभीरता से सुनी. लेकिन, तब तक कौशलेन्द्र कुमार का नाम लोकसभा चुनाव के उम्मीदवार के रूप में तय हो चुका था. नीतीश कुमार ने मजबूरी बतायी. अगले चुनाव में कोचैसा कुर्मी को प्रतिनिधित्व देने का भरोसा दिलाया. बृजनंदन प्रसाद कहते हैं कि नीतीश कुमार का आश्वासन 2014 एवं 2019 के संसदीय चुनावों (Parliamentary Elections) में भी कोरा रह गया तब उस समाज का दिल टूट गया.

सक्षम-समर्थ नेता
नांलदा जिले में इन दिनों कोचैसा कुर्मी के तीन नेता खासे चर्चा में रहते हैं. उनकी जनसरोकारी राजनीतिक सक्रियता की बात भी लोग करते हैं- ईं. प्रणव प्रकाश, पूर्व विधायक अनिल सिंह एवं कौशलेन्द्र कुमार उर्फ छोटे मुखिया की. वैसे, ईं. प्रणव प्रकाश की छवि जातीय राजनीति से अलग है. पर, कोचैसा समाज के ज्यादातर लोग इन्हें ही सक्षम-समर्थ नेता मानते हैं. विश्लेषकों का आकलन है कि स्थानीय स्तर पर संभावित उम्मीदवार (Potential Candidates) के तौर पर अभी जो चेहरे चहक रहे हैं, उनमें किसी में कोई खास दमखम नहीं है. ईं. प्रणव प्रकाश ही यहां जदयू को चुनौती देने का सामर्थ्य रखते हैं. अनिल सिंह पूर्व शिक्षा मंत्री स्वर्गीय डाॉ रामराज सिंह के पुत्र हैं. डा. रामराज सिंह कोचैसा कुर्मी समाज के दिग्गज नेता थे. अपने समाज में अनिल सिंह की भी स्वीकार्यता है. वह 2025 में हरनौत विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार हो सकते हैं. कौशलेन्द्र कुमार उर्फ छोटे मुखिया की नालंदा विधानसभा क्षेत्र (Nalanda Assembly Constituency) से दावेदारी तो अपनी जगह है ही.


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गैर कुर्मी मतदाता
नालंदा (Nalanda) जिले में गैर कुर्मी जातियों के मतदाताओं की संख्या क्या है, यह जान लेना भी जरूरी है. उन मतदाताओं का अनुमानित आंकड़ा इस प्रकार है: यादव- 02 लाख 75 हजार, मुस्लिम- 01 लाख 45 हजार, वैश्य-बनिया- 01 लाख 60 हजार, पासवान- 01 लाख 20 हजार, कुशवाहा-01 लाख, बिंद-बेलदार 95 हजार, राजपूत-55 हजार, भूमिहार- 01 लाख 10 हजार, ब्राह्मण एवं अन्य सवर्ण-50 हजार, चौधरी- 95 हजार, कहार- 75 हजार, मांझी- 65 हजार, रविदास- 01 लाख 20 हजार, माहुरी- 25 हजार. इन सबमें अधिक कोचैसा कुर्मी हैं. नालंदा के तीन विधानसभा क्षेत्रों- हरनौत, हिलसा और नालंदा में कोचैर्सा उपजाति की बड़ी संख्या है. वहां से इसी समाज के लोग जीतते हैं.

नहीं उठायेंगे जोखिम
अस्थावां और इस्लामपुर में घमैला कुर्मी का वर्चस्व है. बिहारशरीफ में सभी उपजातियों की मिश्रित संख्या है. राजगीर (Rajgir) में कुर्मियों की संख्या कम है. कुर्मी समाज में नये सिरे से उठे उपजातियों के बबंडर से 2024 के संसदीय चुनाव को लेकर जदयू में बेचैनी देखी जा रही है. कहीं ऐसा न हो कि 2004 में बाढ़ लोकसभा क्षेत्र में जो हुआ, 2024 में उसकी पुनरावृत्ति नालंदा संसदीय क्षेत्र में हो जाये. इस खतरे के मद्देनजर नीतीश कुमार चुनाव मैदान में उतरने का जोखिम उठायेंगे? आज की राजनीति (Politics) के लिए यह यक्ष प्रश्न है.

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