पिछड़ गये ललन सिंह… खतरा नीलम देवी पर भी!
कृष्णमोहन सिंह
09 जून 2024
Lakhisarai : मोकामा (Mokama) और बाढ़ (Barh) विधानसभा क्षेत्रों को मुंगेर (Munger) संसदीय क्षेत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. पहचान सवर्णों के गढ़ की है. आधार यह कि पार्टी जो रही हो, एकाध अपवादों को छोड़ मोकामा से भूमिहार (Bhumihar) और बाढ़ से राजपूत (Rajput) उम्मीदवार ही निर्वाचित होते रहे हैं. अलग-अलग समय में और अलग-अलग क्षेत्र से मोकामा के तीन सांसद (Sansad) हुए. सूरजभान सिंह (Surajbhan Singh), उनकी पत्नी वीणा देवी (Veena Devi) और भाई चंदन सिंह (Chandan Singh). तीनों पूर्व सांसदों का जुड़ाव पूर्व केन्द्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस (Pashuti Kumar Paras) के नेतृत्व वाली रालोजपा (RLJP) से है. रालोजपा एनडीए (NDA) का हिस्सा है. भाजपा (BJP) के दबंग नेता नलिनी रंजन शर्मा (Nalini Ranjan Sharma) उर्फ ललन सिंह (Lalan Singh) और जदयू (JDU) के विधान पार्षद (Vidhan Parsad) नीरज कुमार सभी मोकामा (Mokama) के हैं.
मोकामा में अप्रभावी रहे
मोकामा की विधायक (Vidhyak) नीलम देवी (Neelam Devi) का जुड़ाव भी एनडीए (NDA) से है. और तो और, जेल में सजा काट रहे मोकामा के पूर्व विधायक अनंत सिंह (Anant Singh) भी चुनाव के दौरान कुछ दिनों के लिए खुली हवा में आये थे. हालांकि, चुनाव से उसका कोई सीधा संबंध नहीं था. तब भी प्रत्यक्ष तौर पर क्षेत्र में थे तो कुछ न कुछ असर तो पड़ना था ही. थोड़ा-बहुत असर उनके गृह विधानसभा क्षेत्र बाढ़ (Barh) में पड़ा. मोकामा में वह भी अप्रभावी रहे. इसे भितरघात कहें या प्रभावहीनता या फिर गुस्से का उबाल, इतने धुरंधरों के रहते जदयू प्रत्याशी राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह मोकामा विधानसभा क्षेत्र में राजद (RJD) उम्मीदवार कुमारी अनिता (Kumari Anita) से पिछड़ गये!
तीन चुनावों की बात
और की बात छोड़ दें, ललन सिंह के इस हश्र को अनंत सिंह के घटते प्रभाव से जोड़ कर देखा और समझा जा रहा है. इस संदर्भ में तीन चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें, तो यह तथ्य स्पष्ट रूप से सामने आ जायेगा कि मोकामा और बाढ़ विधानसभा क्षेत्रों में इस बार अनंत सिंह का प्रभाव पूर्व की तरह नहीं दिखा. इसको इस रूप में समझ सकते हैं. 2014 में अनंत सिंह जदयू में थे. तब जदयू किसी गठबंधन (Gathbandhan) में नहीं था. मुंगेर संसदीय क्षेत्र से स्वतंत्र चुनाव लड़ रहा था. राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह उम्मीदवार थे. एनडीए में यह सीट लोजपा (LJP) के हिस्से में थी. उम्मीदवारी वीणा देवी (Veena Devi) को मिली थी. मोकामा विधानसभा क्षेत्र में दोनों को कुल 93 हजार 703 मत मिले थे.
कुमारी अनिता से पिछड़ गये
राजद प्रत्याशी (RJD Candidate) प्रगति मेहता (Pragati Mehta) 18 हजार 771 मतों में सिमट गये थे. 2019 में अनंत सिंह जदयू से अलग थे. ललन सिंह को शिकस्त देने के मकसद से कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर उनकी पत्नी नीलम देवी (Neelam Devi) मैदान में थीं. 61 हजार 775 मत प्राप्त करने में सफल रही थीं. ललन सिंह को उनसे थोड़ा अधिक 62 हजार 644 मत मिले थे. बढ़त 669 मतों की ही मिल पायी थी. इस बार राजद प्रत्याशी कुमारी अनिता से वह 01 हजार 079 मतों से पिछड़ गये. कुमारी अनिता को प्राप्त 69 हजार 563 मतों के मुकाबले ललन सिंह को 68 हजार 484 मत ही मिल पाये.
बदल जायेगा समीकरण
मतों के इन आंकड़ों से ललन सिंह की तो किरकिरी हुई ही, अनंत सिंह की विधायक पत्नी नीलम देवी के लिए भी खतरा खड़ा होता दिख रहा है. इस रूप में कि कुमारी अनिता को मिले मत मुख्यतः पिछड़ों के हैं. पहली बार दिखी अपनी इस एकजुट ताकत के बल पर पिछड़ा समाज 2025 के विधानसभा चुनाव में मोकामा का राजनीतिक व सामाजिक समीकरण बदल दे तो वह अचरज की कोई बात नहीं होगी. इसलिए कि इस चुनाव में उसे अपनी मजबूती के साथ अनंत सिंह एवं एनडीए की कमजोरी का भी अंदाज लग गया है.
बढ़त मिल गयी थी
बात अब बाढ़ विधानसभा क्षेत्र की. 2014 में वहां जदयू और लोजपा को अलग-अलग कुल 92 हजार 401 मत हासिल हुए थे. लेकिन, 2019 में जदयू 64 हजार 287 मत ही बटोर पाया था. यानी 28 हजार 114 मत कम मिले थे. 2014 में राजद को 23 हजार 913 मत मिले थे. पर, 2019 में उसके सहयोगी कांग्रेस की उम्मीदवार नीलम देवी को 62 हजार 595 मतों की प्राप्ति हो गयी थी. यानी 38 हजार 682 मत अधिक मिल गये थे. इन अधिक मतों को अनंत सिंह के प्रभाव क्षेत्र का माना गया. हालांकि, इतने के बाद भी जदयू को 01 हजार 692 मतों की बढ़त मिल ही गयी.
पिछड़ा मतों की गोलबंदी
विश्लेषकों के मुताबिक इस बार अनंत सिंह और उनके कुनबे के लोगों ने जदयू प्रत्याशी ललन सिंह के लिए खूब जोर लगाया. इसके बाद भी बढ़त 11 हजार 748 मतों की ही मिल पायी. यह क्या दर्शाता है? जदयू को 77 हजार 979 मत मिले तो राजद को 66 हजार 231 मत. मतों के ये आंकड़े बताते हैं कि बाढ़ क्षेत्र में भी अगड़ा पिछड़ा के रूप में मतों की गोलबंदी हुई है. यह गोलबंदी विधानसभा चुनाव तक बनी रही तो वहां भी नया राजनीतिक गुल खिल जा सकता है.
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