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बंगाल में चल रहा मुखेर कानून

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अनिल विभाकर
10 अगस्त, 2021

श्चिम बंगाल में चुनाव बाद व्यापक पैमाने पर हत्या, बलात्कार, आगजनी और लूटपाट की घटनाओं की जांच की रिपोर्ट राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कलकत्ता हाईकोर्ट को सौंप दी. आयोग ने हाईकोर्ट के आदेश पर इन घटनाओं की जांच की. यह रिपोर्ट दिल दहलाने वाली है. ताज्जुब है रिपोर्ट पर आंदोलनजीवियों का दिल तनिक भी नहीं दहल रहा और इनका समर्थक मीडिया एकदम से मौन है. आयोग ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में कानून का राज नहीं बल्कि मुख्यमंत्री का राज चल रहा है. विधान सभा चुनाव के परिणाम आते ही विपक्ष के लोगों और ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी का समर्थन न करने वालों को सरकार समर्थित गुंडों ने खुलकर निशाना बनाया. विरोधियों की हत्याएं, महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार, घरों-दुकानों में आगजनी और लूटपाट की. बंगाल की पुलिस आंखें मूंदे रही. पुलिस की भूमिका इसी से समझी जा सकती है कि लोगों में जितना आतंक गुंडों का है, पुलिस से भी वह उतने ही आतंकित हैं. हिंसा की घटनाओं के कारण राज्य से हजारों लोग पलायन करने पर मजबूर हुए. जिन लोगों ने पुलिस से इन घटनाओं की लिखित शिकायतें कीं, हमलावरों और हत्यारों के नाम बताये, उन पर भी न के बराबर ध्यान दिया गया. मानवाधिकार आयोग ने रिपोर्ट में ममता बनर्जी के इस खेला होबे की जांच सीबीआई से कराने की जरूरत बतायी है.

मानवाधिकार, साम्प्रदायिकता, लोकतंत्र  और संविधान की हत्या के नाम पर बात-बात पर हंगामा करने वाला यहां का मीडिया इस रिपोर्ट पर मौन है. मीडिया का यह रवैया शर्मनाक है. अगर ऐसी घटनाएं किसी भाजपा शासित राज्य में होतीं तो यहां के अधिकतर अखबार इन खबरों से अब तक रंगे रहते. इलेक्ट्रानिक मीडिया पर तो उनके एंकर, विपक्षी दलों के नेता और आंदोलनजीवी इतना शोर-शराबा करते जैसे पूरे देश पर कोई अभूतपूर्व खतरा मंडरा रहा हो. विपक्षी नेताओं के बयानों से अखबार भरे रहते. लोग ट्वीट पर ट्वीट करते और पूरे देश में कोहराम मचा रहता. ‘क्रांतिधर्मी’ पत्रकार रवीश कुमार, बरखा दत्त, शेखर गुप्ता और इनकी पूरी मंडली दूसरों को गोदी मीडिया कहती है, मगर आयोग की इस रिपोर्ट पर वे सभी मौन हैं. कोरोना के समय, ऐसे ही पत्रकारों ने आक्सीजन और दवाओं की कथित कमी पर जिस तरह सनसनीखेज रिपोर्ट पेश की, उसका भी टूलकिट सामने आ गया. ऐसी खबरें विश्व में भारत और यहां की केंद्र सरकार की छवि खराब करने के लिए प्रकाशित-प्रसारित की गयीं, यह हकीकत पूरी दुनिया के सामने उजागर हो गयी. देश के लोगों को यह भी पता चल गया कि आंदोलनजीवी अरविंद केजरीवाल  किस तरह बढ़ा-चढ़ाकर जरूरत से कई गुना अधिक आक्सीजन की मांग कर रहे थे. उनके एक नेता ने अपने यहां आक्सीजन सिलेंडर और दवाओं की कैसे जमाखोरी की. अस्पतालों में किस तरह फर्जी तरीके से बेड भरे गये और मीडिया का एक वर्ग गंगा में लाशें दिखा कर दवा, आक्सीजन और अस्पतालों में बेड की कमी की सनसनीखेज खबरें परोसता रहा.

पश्चिम बंगाल की स्थिति के बारे में मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में  कितनी बड़ी और गंभीर बात कही है.आयोग ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में कानून का शासन नहीं, बल्कि मुख्यमंत्री का शासन चल रहा है. जाहिर है आयोग का कहना है कि वहां मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का मुखेर कानून चल रहा है. तो ममता बनर्जी के इस मुखेर कानून में खेला हो रहा है. याद रहे कि विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण में प्रचार के दौरान ही ममता बनर्जी ने वहां के मतदाताओं को चुनाव बाद देख लेने की खुली धमकी दी थी. सरकार बनने के बाद उनका खूनी खेला चालू हो गया. सूचनाओं के अनुसार वहां ममता सरकार का इतना आतंक है कि आम आदमी की बात छोड़ दें, जज तक आतंकित हैं. हाईकोर्ट के जज पर भी आरोप मढ़ने से ममता बनर्जी बाज नहीं आ रहीं. नंदीग्राम सीट के चुनाव परिणाम को हाईकोर्ट में उन्होंने चुनौती दी है. दुस्साहस तो देखिये, उन्होंने इसकी सुनवाई करने वाले जज पर ही भाजपाई होने का आरोप मढ़ दिया. इसके बाद उस जज ने ममता बनर्जी पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए मामले से खुद को अलग कर लिया. ममता बनर्जी का व्यवहार ऐसा है जिससे लगता है कि वह पश्चिम बंगाल को न तो भारत का हिस्सा मानती हैं और न भारत सरकार को. उन्होंने वहां की पुलिस का राजनीतिकरण कर दिया है. वह सीबीआई को वहां काम करने देना नहीं चाहतीं. वहां की पुलिस सीबीआई के अधिकारियों को बंदी तक बना लेती है. हाल में सीबीआई ने एक पुराने मामले में वहां के दो मंत्रियों को गिरफ्तार किया तो ममता बनर्जी ने खुद सीबीआई आफिस पहुंच कर छह घंटे तक वहां धरना दे दिया. इस मामले में गिरफ्तार दोनों मंत्रियों की जमानत की अर्जी पर सुनवाई के दौरान ममता बनर्जी के कानून मंत्री और उनके कार्यकर्ताओं ने अदालत के बाहर प्रदर्शन और नारेबाजी की. और तो और, पश्चिम बंगाल में जारी हिंसा पर केंद्र सरकार ने वहां के मुख्य सचिव से जब रिपोर्ट तलब की तो मुख्यमंत्री के निर्देश पर मुख्य सचिव ने केंद्र को रिपोर्ट तक नहीं भेजी. बार-बार रिपोर्ट मांगने पर भी रिपोर्ट नहीं भेजी गयी तो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने वहां के मुख्य सचिव को बंगाल से वापस बुलाने का आदेश जारी कर दिया.ताज्जुब है इस आदेश के बाद भी उस आईएएस अधिकारी को ममता बनर्जी ने दिल्ली नहीं जाने दिया और उस अधिकारी ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली. ममता बनर्जी केंद्र से अक्सर इस तरह का टकराव करती रहती हैं. मानवाधिकार आयोग का यह कहना सही है कि बंगाल में कानून का शासन नहीं है. वहां ममता बनर्जी का राज चल रहा है. कानून का शासन होता तो भाजपा विधायक मुकुल राय की विधानसभा की सदस्यता टीएमसी में शामिल होने के बाद अब तक समाप्त हो गयी होती. मगर मुकुल राय की विधानसभा सदस्यता अब तक न सिर्फ बरकार है बल्कि उन्हें पीएसी का अध्यक्ष बना दिया गया है. ममता बनर्जी की ये ऐसी हरकतें हैं जिन्हें संविधान सम्मत नहीं कहा जा सकता. वहां के हालात अत्यंत ही चिंजानक हैं मगर इसे दुर्भाग्य ही कहें कि विपक्षी दलों के नेता और आंदोलनजीवी पत्रकार ममता सरकार के समर्थन में चुप्पियां साधे बैठे हैं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

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