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सीमांचल और जदयू : सहमी-सहमी सी है सियासत

एक नजर में

  • नहीं मानते मुसलमानों के खिलाफ

  • वोट नहीं देते मुसलमान

  • स्थिति ‘घर के न घाट के’ जैसी

  • लड़ सकते हैं निर्दलीय चुनाव

  • जदयू को लग जायेगा बड़ा झटका

अशोक कुमार
08 अप्रैल 2025

Purnea : वक्फ कानून (Waqf law) को लेकर मुस्लिम समुदाय में उफनाये गुस्से के आशंकित परिणाम से जदयू (JDU) और लोजपा रामविलास (LJP RamVilas) के रणनीतिकार बेफिक्र हैं. पर, दुर्गति की दुश्चिंताओं में घिरे इन पार्टियों के मुस्लिम नेताओं के हाथ-पांव फूल गये हैं. उन्हें उनकी राजनीति में घना अंधेरा छा जाने जैसा अहसास हो रहा है. ऐसे अधिसंख्य नेता उजाले की तलाश में इन दलों का पगहा तोड़ दूसरे दलों के खूंटे से बंधने को व्याकुल हैं. बेचैनी ऐसी कि दूसरे दलों में शरण मिले या नहीं, चुनाव निर्दलीय (Independent) लड़ लेने की समझ लिये जदयू और लोजपा- रामविलास के कथित अभिशप्त साये से तुरंत दूर हो जाना चाहते हैं.

गुस्से की परवाह तनिक भी नहीं
सिर्फ इन्हीं दो दलों के नहीं, संसद (Parliament) में वक्फ बोर्ड विधेयक का समर्थन करने वाले एनडीए (NDA) के तीसरे घटक दल ‘हम’ से जुड़े मुस्लिम नेताओं में भी कमोबेश ऐसी ही व्याकुलता है. लेकिन, इन दलों के नेतृत्व को मुस्लिम समुदाय के गुस्से की तनिक भी परवाह नहीं है. इसलिए कि नये वक्फ कानून को वे किसी भी रूप में मुस्लिम हित के खिलाफ नहीं मानते हैं. बल्कि उसमें उन्हें मुस्लिम समुदाय का व्यापक कल्याण सन्निहित दिखता है. पर, विश्लेषकों की नजर में यह सैद्धांतिक बात है. बेफिक्री की बड़ी वजह चुनावों में मुस्लिम मतों का साथ नहीं मिलना है. जब वोट मिलता ही नहीं है तो वे मुस्कुरायें या मुंह फूलायें, उनकी सियासी सेहत पर क्या फर्क पड़ता है?


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नहीं मिल पाते मुकम्मल मत
लेकिन, क्षेत्रीय मुस्लिम नेताओं पर असर पड़ता है. एनडीए में रहने के कारण आमतौर पर उनकी स्थिति ‘घर के न घाट के’ जैसी हो जाती है. न मुसलमानों के मुकम्मल मत मिल पाते हैं और न हिन्दुओं के. सिकटा (Sikta) के पूर्व जदयू विधायक खुर्शीद उर्फ फिरोज अहमद (Khurshid alias Firoz Ahmed) के साथ ऐसा ही कुछ होता रहा है. ऐसा किसी और का नहीं, उनका खुद का कहना है. कुछ माह पूर्व इस दर्द को सार्वजनिक करते हुए उन्होंने 2025 का चुनाव निर्दलीय लड़ने का ऐलान कर रखा है. जदयू के ही हैं पूर्व विधायक मास्टर मोजाहिद आलम (Master Mujahid Alam) और नौशाद आलम (Naushad Alam) . मुस्लिम बहुल किशनगंज (Kishanganj) जिले से विधायक निर्वाचित होते रहे हैं. मास्टर मोजाहिद आलम कोचाधामन (Kochadhaman) से और नौशाद आलम ठाकुरगंज (Thakurganj) से.

निर्दलीय लड़ने का अनुमान
इन क्षेत्रों में हिन्दू मतों की संख्या अपेक्षाकृत कम है, पर इन दोनों का अनुभव भी करीब-करीब खुर्शीद उर्फ फिरोज अहमद जैसा ही है. यह अलग बात है कि खुर्शीद उर्फ फिरोज अहमद की तरह सार्वजनिक इजहार करने की साहस इनमें नहीं है. यहां गौर करने वाली बात यह कि खुर्शीद उर्फ फिरोज अहमद का निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान नया वक्फ कानून बनने से पहले का है. वक्फ कानून के अस्तित्व में आने के बाद मुस्लिम सियासत (muslim politics) में जो आक्रामक बदलाव दिख रहे हैं उसमें मास्टर मोजाहिद आलम और नौशाद आलम भी ऐसी ही कुछ बात कहते हुए जदयू से अलग हो निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दें, तो वह चौंकने-चौंकाने वाली कोई बात नहीं होगी.

हिल जायेगी तब बुनियाद
इसलिए भी नहीं कि वक्फ विधेयक को जदयू का समर्थन मिलने के बाद से उनके हाव – भाव ऐसा ही कुछ संकेत दे रहे हैं. यहां यह जानने-समझने की जरूरत है कि नौशाद आलम का साथ छूटता है तो वह जदयू के लिए ज्यादा सदमादायक नहीं होगा. मास्टर मोजाहिद आलम का अलग होना बहुत बड़ा झटका माना जायेगा. कारण कि मास्टर मोजाहिद आलम किशनगंज जिला जदयू के अध्यक्ष ही नहीं हैं, सीमांचल (Seemanchal) में उसकी राजनीति के सूत्रधार भी हैं. विश्लेषकों की समझ में उनका विलगाव जदयू की मुस्लिम राजनीति की बुनियाद हिला दे सकता है.

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