कहां और किस हाल में हैं बड़हिया के दो ‘सरदार’!
विशेष संवाददाता
25 सितम्बर, 2021
BARAHIYA. टिक्कर सिंह (Tikkar Singh) और खिखर सिंह (Khikhar Singh) अपने जमाने में पाताल लोक (अंडरवर्ल्ड) के दो बड़े नाम थे. दोनों बड़हिया के थे. उस बड़हिया के जिसका नाम सुन कमजोर काया में सिहरन भर जाती थी, धड़कनें बढ़ जाती थी. रसगुल्ले की मिठास बांटने वाले वर्तमान बड़हिया के नहीं, गोली से ज्यादा बोली से भय पैदा करने वाले कालखंड के बड़हिया के.
सुनील सिंह उर्फ टिक्कर सिंह उसी बड़हिया के रामसेन टोला के हैं. अरुण कुमार सिंह उर्फ़ खिखर सिंह चेतन टोला, खुटहा के थे. बड़हिया कई टोलों की बस्ती है. टोलों में अलग-अलग अनेक खूट हैं. आतंक के उस खौफनाक दौर में प्रायः हर टोले और हर खूट में छोटे-बड़े ‘सरदार’ (Sardar) हुआ करते थे.
जुड़ने लगे थे आतंक के नये अध्याय
हुसैना के अधिक यादव, बड़हिया के देवन सिंह, पिपरिया के कैलू यादव आदि क्षेत्रीय दुर्नाम-दुर्दांत सरगनाओं के अकथनीय आतंक के ढलान पर टिक्कर सिंह और खिखर सिंह के वैध-अवैध हथियार लहराने लगे, बेखौफ बारूद उगलने लगे. आतंक के नये अध्याय जुड़ने लगे.
टिक्कर सिंह की खूंख्वारियत सुर्खियों में थी तभी खिखर सिंह के पांव अपराध जगत में पड़ गये. फिर बादशाहत के लिए खूनी भिड़ंत होने लगी. सिलसिला लम्बा चला. टिक्कर सरदार और खिखर सरदार के रूप में दोनों के नाम बड़हिया से निकल अंतर्प्रांतीय अपराध जगत की चर्चाओं में आ गये.
‘जंगल राज’ के बाद क्या हुआ?
इसे संयोग ही कहा जायेगा कि ‘जंगल राज’ (Jangal Raj) के घात-प्रतिघात और हत्या-प्रतिहत्या के भीषणतम दौर में उनकी सांसें चलती रहीं. ‘जंगल राज’ के बाद के दौर में क्या हुआ? दोनों किस हाल में हैं, क्या कर रहे हैं? धरती पर हैं कि परलोक पहुंच गये हैं?
हर किसी को यह जानने-समझने की जिज्ञासा जरूर होगी. खासकर, वैसे लोगों को तो अवश्य ही जिनकी पाताल लोक की गतिविधियां पढ़ने-सुनने में दिलचस्पी रहती है. यह प्रायः हर कोई मानता है कि ‘जंगल राज’ के खात्मे के बाद संगठित अपराध और संगठित गिरोहों के सरगनाओं के दिन लद गये.
ऐसे अधिसंख्य अवांछितों की ताकत निर्माण कार्यों एवं अन्य किस्म की ठेकेदारी में खपने लगी. कुछ के बाहुबल का इस्तेमाल सांसद-विधायक बनने-बनाने या फिर पंचायती राज की सत्ता पर कब्जा जमाने में होने लगा. वैसे, इसकी शुरुआत पूर्ववर्ती लालू-राबड़ी (Lalu- Rabri) शासनकाल में ही हो चुकी थी.
फलीभूत नहीं हो पायी मंशा
अरुण कुमार सिंह उर्फ खिखर सरदार भी उसी राह बढ़ गया था. खुद ठेकेदारी में हाथ आजमाने लगा, तो पत्नी चंदा देवी (Chanda Devi) के जरिये लखीसराय जिला परिषद की राजनीति में अप्रत्यक्ष भागीदारी भी निभाने लगा. एक या दो बार सूर्यगढ़ा (Surajgarha) विधानसभा क्षेत्र में खुद का पर भी तौला. मंशा फलीभूत नहीं हो पायी. पर, पति के बाहुबल के जोर पर चंदा देवी एक बार लखीसराय जिला परिषद की अध्यक्ष अध्यक्ष भी बन गयीं. वह जंगल राज का ही दौर था.
चंदा देवी की इस उपलब्धि में सिर्फ पति खिखर सिंह का ही योगदान नहीं था, उसी क्षेत्र के छुटभैये बाहुबली अवधी सिंह की भी उसमें भूमिका थी. खिखर सिंह और अवधी सिंह (Awadhi Singh) में प्रथम पंचायत चुनाव के समय अंदरुनी तालमेल हुआ.
तब दोनों हाथ मलती रह जातीं
अवधी सिंह की पत्नी पिंकी देवी (Pinky Devi) खुटहा पूर्वी पंचायत की मुखिया और चंदा देवी निर्वाचित क्षेत्र संख्या एक (बड़हिया) से जिला पार्षद निर्वाचित हुईं. विश्लेषकों की समझ है कि तालमेल नहीं हुआ होता तो दोनों हाथ मलती रहतीं. खिखर सरदार अब इस धरती पर नहीं है.
आतंक के इस अध्याय का खात्मा प्रतिद्वंद्वी बाहुबली या उसके कोई शागिर्द ने नहीं किया. न वह पुलिस से मुठभेड़ में मारा गया. 12 सितम्बर 2020 को कोरोना संक्रमण की पहली लहर की चपेट में आ मौत के मुंह में चला गया. पति के असामयिक निधन का चंदा देवी की राजनीति पर साफ असर दिख रहा है.
नहीं मिल रहा मखरू सिंह का साथ
दिवंगत खिखर सरदार का छोटा भाई है मखरु सिंह (Makhru Singh) . कई संगीन अपराधों के आरोपों तले दबे मखरु सिंह की भी स्थानीय स्तर पर छुटभैये बाहुबली की पहचान है. खिखर सिंह के खात्मे के बाद चंदा देवी के समर्थकों को मखरु सिंह से सहयोग की उम्मीद थी. लेकिन, वैसा कुछ दिख नहीं रहा है.
ससुराल बालगुदर में बस गये मखरु सिंह की अपनी अलग दुनिया है. उसी में वह मग्न है. पति के साथ उसकी दबंगता दफन हो जाने से चंदा देवी की सियासी सक्रियता सिमट-सिकुड़ गयी है. जिला परिषद की जगह अब वह संभवतः खुटहा पूर्वी पंचायत से मुखिया का चुनाव लड़ने वाली हैं.
तब मिट जायेंगे आरोप
उन्हीं पिंकी देवी के खिलाफ जिनके पति के कथित सहयोग से वह जिला पार्षद निर्वाचित हुई थीं. मुख्यिा पद के चुनाव में जीत हुई तब पति के बाहुबल की बुनियाद पर राजनीति के आरोप खुद ब खुद मिट जायेंगे.