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इस वजह से नहीं हो पायेगी आनंद मोहन की रिहाई!

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शिवकुमार राय
12 अप्रैल 2023

PATNA : बात ज्यादा पुरानी नहीं है. 23 जनवरी 2023 को पटना के मिलर हाई स्कूल (Miller High School) मैदान में महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की जयंती पर ‘स्वाभिमान दिवस समारोह’ आयोजित था. क्षत्रिय समाज के इस बड़े जुटान में पूर्व सांसद आनंद मोहन (Anand Mohan) की रिहाई की मांग उठी. आवाज क्षत्रिय नेताओं से भरे मंच से नहीं, भीड़ से गूंजी. रंग में भंग न पड़ जाये, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने आश्वासन उड़ेल दिया – ‘सरकार उन्हें रिहा करने के प्रयास में लगी है. आप उनकी पत्नी से पूछ लीजियेगा कि हम क्या कोशिश कर रहे हैं.’ नीतीश कुमार ने तात्कालिक तौर पर शोर शांत करने के लिए ऐसा तो कह दिया, पर उनके स्मरण में शायद यह बात नहीं रही कि कुछ समय पूर्व संबंधित कानून (Law) का हवाला दे उन्हीं की सरकार ने विधानसभा में खुले तौर पर कहा था कि आनंद मोहन की समय पूर्व रिहाई संभव नहीं है.

सहानुभूति समस्त समाज की है
ऐसा उस गृह विभाग की ओर से कहा गया था जो नीतीश कुमार के ही जिम्मे था और अब भी है. जब ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, तो फिर छह माह में ही संबद्ध कानून में क्या बदलाव आ गया कि रिहाई का आश्वासन पिला बैठे? क्या नीतीश कुमार सिर्फ आनंद मोहन के लिए कानून बदल देंगे या मनमाना आदेश जारी कर देंगे? हैरानी इस बात पर भी कि तमाम कानूनी पक्षों, तथ्यों और पेंचों को जानते-समझते हुए भी आनंद मोहन और उनके समर्थक-प्रशंसक नीतीश कुमार के आश्वासन पर भरोसा कर बैठे. इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि क्षत्रिय खून में उबाल की वजह से इस गति को प्राप्त हो गये आनंद मोहन के प्रति समस्त समाज की सहानुभूति है. प्रायः हर कोई उनकी रिहाई चाहता है. पर, बात यहां कानून की है.

आनंद मोहन की पुत्री के शादी समारोह में नीतीश कुमार एवं तेजस्वी प्रसाद यादव.

कानूनी अड़चन या सियासी षड्यंत्र?
आजीवन कारावास की सजा काट रहे पूर्व सांसद आनंद मोहन की समय पूर्व रिहाई बिहार में राजनीति (Politics) का बड़ा मुद्दा बना हुआ है. आनंद मोहन, उनके परिजनों एवं समर्थकों-प्रशंसकों की समझ है कि उम्रकैद की उनकी सजा पूरी हो चुकी है. जेल (Jail) से मुक्ति मिल जानी चाहिये. उनके मुताबिक आजीवन कारावास की अवधि 20 साल की होती है. परिहार के समायोजन से यह 14 साल की हो जाती है. आनंद मोहन 14 साल से अधिक की सजा (Punishment) काट चुके हैं. बंदी के रूप में उनका आचरण संतोषजनक रहा है. ऐसे में उन्हें जेल में रखने का अब कोई औचित्य नहीं है. यह तर्क और रिहाई के प्रावधान की बातें अपनी जगह सही है. इसके बावजूद आनंद मोहन (Anand Mohan) की रिहाई नहीं हो रही है. आखिर, क्यों? क्या कोई कानूनी अड़चन है या सियासी षड्यंत्र के तहत ऐसा हो रहा है या फिर आनंद मोहन और उनके परिजन-समर्थक सब कुछ जानते-समझते हुए सिर्फ सुर्खियों में रहने के लिए शोर मचा रहे हैं?

पैरोल-दर-पैरोल का मतलब क्या
यहां गौर करने वाली बात है कि 14 वर्षों के जेल प्रवास के दौरान पूर्व में आनंद मोहन को कभी पैरोल (Parole) या फरलो नहीं मिला था. नीतीश कुमार की उक्त बोल के बाद इधर पुत्री सुरभि आनंद (Surabhi Anand) की शादी के सिलसिले में 15-15 दिनों के दो पैरोल मिले. अब पुत्र चेतन आनंद (Chetan Anand) के उपनयन एवं सगाई के लिए उतने ही दिनों के लिए पैरोल मिला है. शादी के समय में भी मिलेगा. सिर्फ पैरोल मिलने और रिहाई की बाबत कोई ठोस पहल नहीं होने से ऐसा नहीं लगता कि जेल से उनकी समय पूर्व मुक्ति कठिन है? मुख्यमंत्री (Chief Minister) नीतीश कुमार ने खुलकर तो नहीं, मुक्ति के संकेत दिये हैं. लेकिन, क्या ऐसा संभव है? ये ऐसे सवाल हैं जो राजनीति की समझ रखने वाले हर दिमाग को मथ रहे हैं. यहां इन और इन जैसे अन्य सवालों के जवाब तलाशे गये हैं.


बिहार कारा हस्तक के उक्त प्रावधान का जिक्र करते हुए बिजेन्द्र प्रसाद यादव ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि आनंद मोहन काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या से संबद्ध अपराध में सजायाफ्ता हैं इसलिए समय पूर्व रिहाई संभव नहीं है. इस पर चेतन आनंद का कहना रहा कि बिहार सरकार का यह कानून 2012 का है. आनंद मोहन को सजा 2007 में मिली थी. ऐसे में यह कानून उन पर लागू नहीं होता. सरकार ने शायद इस पर गौर नहीं फरमाया.


आनंद मोहन का जुर्म क्या है?
आनंद मोहन को आजीवन कारावास की सजा गोपालगंज (Gopalganj) के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया (G. Krishnaiah) की हत्या के मामले में मिली है. जी कृष्णैया की हत्या 05 दिसम्बर 1994 को मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) में हुई. आनंद मोहन को निचली अदालत से 03 अक्तूबर 2007 को फांसी की सजा मिली थी. 10 दिसम्बर 2008 को पटना उच्च न्यायालय (Patna High Court) ने फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया. उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने भी इसे बरकरार रखा. 03 अक्तूबर 2007 से आनंद मोहन जेल में हैं. उनकी अपनी गणना के मुताबिक परिहार के समायोजन से 14 साल पूरा होते ही उम्रकैद की सजा पूरी हो गयी. आनंद मोहन के परिजन रिहाई का मुख्य आधार तो इसे बताते ही हैं, अपने पक्ष को मजबूत बनाने के लिए और कई तर्क रखते हैं.

क्या होता है आजीवन कारावास?
आजीवन कारावास क्या होता है? 14 साल… 20 साल… 30 साल… या जीवन भर जेल? सर्वोच्च अदालत द्वारा बार-बार व्याख्या किये जाने के बाद भी यह सवाल अक्सर उठ जाया करता है. आजीवन कारावास का मतलब होता है ताउम्र जेल में सजा काटना. सांसें ठहर जाने तक वहीं रहना. आम धारणा में यह सजा 14 या 20 वर्ष की मानी जाने लगी है. इसका आधार भी है. अक्सर ऐसा देखा जाता है कि उम्रकैद की सजा पाये लोगों को 14 या 20 वर्ष के बाद जेल से मुक्ति मिल जाती है. दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 432 एवं 433 ए के तहत प्राप्त अधिकार का निर्धारित मापदंड के आधार पर उपयोग कर राज्य सरकार समय पूर्व जेल से रिहा करा देती है. भारतीय दंड संहिता की धारा 55 एवं 57 में भी राज्य सरकार (Government) को ऐसा अधिकार दिया गया है. आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद (Lovely Anand) और विधायक पुत्र चेतन आनंद (Chetan Anand) इन्हीं धाराओं के तहत समय पूर्व रिहाई के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं. लेकिन, बिहार कारा हस्तक (बिहार जेल मैनुअल) ने उसके भी हाथ बांध रखे हैं.

कहां फंसा है पेंच?
बिहार सरकार (Bihar Government) ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे कैदियों की समय पूर्व रिहाई के लिए जो मापदंड निर्धारित कर रखा है उसमें ‘अच्छे आचरण’ वाली कसौटी पर आनंद मोहन खरा उतरते हैं. आधार यह कि सजा काटने के दौरान वह जिस-जिस जेल में रहे हैं वहां के अधीक्षकों ने बंदी के रूप में उनके आचरण को बेहद संतोषप्रद बताया है. कारा में शांति-व्यवस्था, रचनात्मक कार्य, सकारात्मक गतिविधियों, सौन्दर्यीकरण एवं पर्यावरण सुधार में इनकी भूमिका को अहम माना है. पर, रिहाई का पेंच बिहार कारा हस्तक (बिहार जेल मैनुअल) में फंसा हुआ है. उसमें बंदियों की समय पूर्व मुक्ति के संदर्भ में कहा गया है कि काम पर तैनात सरकारी सेवक (लोक सेवक) की हत्या जैसे जघन्य मामले में मिली आजीवन कारावास की सजा में छूट नहीं मिल सकती है. जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या कर्त्तव्य निर्वहन के क्रम में हुई थी.


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सरकार ने कहा, संभव नहीं
स्मरण होगा कि कुछ माह पूर्व यह मामला बिहार विधानसभा (Vidhan Sabha) में उठा था. आनंद मोहन के विधायक पुत्र चेतन आनंद एवं अन्य कुछ विधायकों द्वारा ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के जरिये उठाये गये इस मुद्दे को तब के नेता, प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) का भी साथ मिला था. चेतन आनंद का कहना रहा कि सिर्फ आनंद मोहन ही नहीं, ऐसे काफी संख्या में कैदी हैं जो 14 साल से अधिक सजा काट लेने के बाद भी जेल में बंद हैं. ध्यानाकर्षण प्रस्ताव का जवाब सदन में उस समय गृह विभाग के प्रश्नों के उत्तर के लिए अधिकृत ऊर्जा मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव (Bijendra Prasad Yadav) ने दिया था. बिहार कारा हस्तक के उक्त प्रावधान का जिक्र करते हुए उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था कि आनंद मोहन काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या से संबद्ध अपराध में सजायाफ्ता हैं इसलिए समय पूर्व रिहाई संभव नहीं है. इस पर चेतन आनंद का कहना रहा कि बिहार सरकार का यह कानून 2012 का है. आनंद मोहन को सजा 2007 में मिली थी. ऐसे में यह कानून उन पर लागू नहीं होता. सरकार ने शायद इस पर गौर नहीं फरमाया.

बिहार कारा हस्तक ने रोक रखी है राह
कानून 2012 में बना है या पहले से अस्तित्व में है, यह एक अलग मुद्दा है. बिहार कारा हस्तक में समय-समय पर संशोधन होते रहता है. 2002, 2012 और 2016 में भी संशोधन हुए थे. 10 दिसम्बर 2002 को जब संशोधन हुआ था तब राज्य में राबड़ी देवी (Rabri Devi) के नेतृत्व में राजद-कांग्रेस (RJD-Congress) की मिलीजुली सरकार थी. बिहार कारा हस्तक में संबंधित प्रावधान इस रूप में वर्णित है – वैसे सिद्धदोष बंदी, जो तस्करी कार्य में अंतर्लिप्त रहते हुए हत्या करता हो अथवा कर्त्तव्य पर रहने वाले लोक सेवकों की हत्या का दोषी हो – समय पूर्व रिहाई के अयोग्य होंगे. 2012 और 2016 के संशोधनों में इस प्रावधान को यथावत रखा गया. इन बातों से निष्कर्ष यही निकलता है कि आनंद मोहन की समय पूर्व रिहाई की संभावना क्षीण है. विधानसभा में ऊर्जा मंत्री के उक्त बयान के साथ ही राज्य सरकार के हाथ से भी यह निकल गया है.

अदालत ही निकाल सकती है राह
वैसे, नीतीश कुमार की सरकार बिहार कारा हस्तक में संशोधन कर लाभ पहुंचा दे तो वह दूसरी बात होगी. लेकिन, न्यायिक समीक्षा में वह पहल शायद ही टिक पायेगी. सरकार की किरकिरी होगी सो अलग. उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय ‘हत्या और हत्या के लिए उकसाने’ को परिभाषित कर कोई राह बना दे, तो वह अलग बात होगी. चेतन आनंद का कहना है कि हत्या और हत्या के लिए उकसाना अलग-अलग मामला है. बिहार कारा हस्तक का उक्त प्रावधान हत्या से संबंधित है. आनंद मोहन पर हत्या का आरोप सिद्ध नहीं हुआ है. आजीवन कारावास का आधार भड़काऊ भाषण है. उनके इस तर्क में दम है. इस आधार पर वह इसे अदालत में ले जाने की बात तो करते हैं, पर ऐसी कोई पहल होती दिख नहीं रही है. इससे एक सवाल यह भी निकल रहा है कि कहीं आनंद मोहन ही तो जेल बाहर नहीं आना चाह रहे हैं?

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