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गन्ना किसान : और निकलने लगे चिमनियों से दुर्दिन के धुआं

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मदनमोहन ठाकुर
25 जनवरी 2024
Sitamarhi: सात-आठ साल पहले तक यह मिल इलाकाई खुशहाली का वाहक थी. बाद के दिनों में उसकी चिमनियों (fireplaces) से दुर्दिन के धुआं (smoke) निकलने लगे, देर-सबेर बंद हो जाने की आशंकाएं गहराने लगीं. राज्य सरकार (state government) बेपरवाह रही. गन्ना किसानों  (sugarcane farmers) एवं कामगारों के बकाये का भुगतान कैसे हो, मिल चालू कैसे रहे, इस बाबत कभी कोई गंभीर पहल नहीं की. अंततः धुक-धुक कर चीनी मिल बंद हो गयी. जानकारों की मानें, तो धानुका समूह (Dhanuka Group) के हाथ उठा देने के बाद सीतामढ़ी  के एक बड़े व्यवसायी ने बंद चीनी मिल (sugar mill) को चालू करने की पेशकश की थी. गन्ना विकास विभाग (Sugarcane Development Department) के समक्ष प्रस्ताव रखा था. विभाग ने संबंधित कागजात के साथ कम से कम सौ करोड़ की संपत्ति का सबूत मांगा था.

निर्विकार रहे जनप्रतिनिधि
इस प्रस्ताव पर विचार हो ही रहा था कि प्रबंधन ने मिल को दिवालिया घोषित कर 28 अगस्त 2023 को इसकी नीलामी करा दी. अब क्या होगा? इस सवाल ने रीगा से लेकर सीतामढ़ी तक के जनप्रतिनिधियों को छोड़ प्रायः हर तबके में गंभीर चिंता पसार रखी है. जनप्रतिनिधि निर्विकार हैं. औरों की बात छोड़ दें, रीगा के भाजपा विधायक मोतीलाल प्रसाद (MLA Motilal Prasad) का भी रुख करीब-करीब ऐसा ही है. इसके मद्देनजर उत्तर बिहार संयुक्त किसान मोर्चा के संयोजक डा. आनंद किशोर (Dr. Anand Kishore) की इन बातों में दम दिखता है कि रीगा चीनी मिल (Riga Sugar Mill) के ‘क्षेत्राधिकार’ में दो सांसद, 11 विधायक और दो विधान पार्षद आते हैं.


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कभी एकजुट प्रयास नहीं
गन्ना उत्पादक किसानों के हित में कुछ की आवाजें उठती हैं. परन्तु, मिल चालू कराने के लिए ये सब कभी एकजुट प्रयास नहीं करते हैं. बहुत पूर्व शिवहर की भाजपा सांसद रमा देवी (Rama Devi) में कुछ गंभीरता नजर आयी थी. देखादेखी अन्य कई जनप्रतिनिधियों के भी मुंह खुले थे. रमा देवी की पहल पर प्रशासन के स्तर पर कई बैठकें हुईं. सीतामढ़ी समाहरणालय में हुई ऐसी ही एक बैठक में एकाध को छोड़ सभी विधायक और सांसद शामिल हुए. लेकिन, उसका कोई फलाफल नहीं निकला. ऐसे में नीलामी  के बाद भी चीनी मिल के फिर से चालू होने की उम्मीद नहीं जगती.

तब भी हैं आशान्वित
वैसे, सीतामढ़ी निवासी बिहार विधान परिषद के सभापित देवेश चन्द्र ठाकुर (Devesh Chandra Thakur) नाउम्मीद नहीं हैं. उनका कहना है कि नये प्रबंधन को मिल को चालू करना ही होगा, अन्यथा राज्य सरकार अनापत्ति पत्र नहीं देगी. जदयू विधायक दिलीप राय (MLA Dilip Rai) का भी ऐसा ही कुछ कहना है. उन्होंने इस आरोप का जबर्दस्त प्रतिकार किया कि चीनी मिल चालू कराने में जनप्रतिनिधियों की रुचि नहीं है. उनके मुताबिक इस मुद्दे को वह सदन में और सदन के बाहर उठाते रहे हैं, चालू कराने का प्रयास करते रहे हैं. मिल के फिर से चालू होने के प्रति वह भी आशान्वित हैं.

मामूली विवाद में बंदी
रीगा चीनी मिल सीतामढ़ी एवं शिवहर जिलों की इकलौती बड़ी औद्योगिक इकाई है. इन दोनों के अलावा पूर्वी चंपारण एवं मुजफ्फरपुर जिलों के सीमावर्त्ती क्षेत्रों के 50 हजार से अधिक किसान परिवारों के जीवन यापन का मूल आधार रही है. एक हजार एक सौ से अधिक स्थायी-अस्थायी कामगार परिवारों का पालनहार भी. तकरीबन तीन वर्षों से यह मिल बंद है. ऐसा कहा जाता है कि 13 कामगारों के छोटे भुगतान के मामूली विवाद को ‘गंभीर श्रमिक समस्या’ बता बगैर किसी पूर्व सूचना के 25 दिसम्बर 2020 को प्रबंधन ने मिल को बंद कर दिया.

बदहाल क्यों हो गयी मिल?
रीगा सुगर कंपनी लि. के तब के अध्यक्ष- सह-प्रबंध निदेशक ओमप्रकाश धानुका के मुताबिक वजह आर्थिक परेशानियों एवं गहराई श्रमिक समस्या रही. प्रबंधन की बातों को ही सही मानें, तो आखिर, श्रमिक समस्या अचानक इतनी गंभीर क्यों और कैसे हो गयी कि मिल को बंद करने की नौबत आ गयी? आर्थिक परेशानियों के संदर्भ में प्रबंधन ने तर्क रखा कि चीनी उत्पादन पर होने वाले प्रति क्विंटल 35 सौ रुपये खर्च की तुलना में चीनी की बिक्री 23 से 24 सौ रुपये प्रति क्विंटल ही हो पाती थी. यानी 11 से 12 सौ करोड़ रुपये प्रति क्विंटल का घाटा उठाना पड़ रहा था. इससे आर्थिक स्थिति चरमरा गयी थी. यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि दीर्घकाल तक खुशहाल रही मिल की ऐसी बदहाली क्यों और कैसे उत्पन्न हो गयी?   (जारी)

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