खूब महत्व है दुर्गा पूजा में वेश्याओं के आंगन की मिट्टी का !
शिवकुमार राय
13 अक्तूबर 2023
Patna : शारदीय नवरात्र में शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा (Maa Durga) की सार्वजनिक पूजा – पाठ के लिए देश के विभिन्न स्थानों में गांवों से लेकर शहरों तक पंडाल बनाये और सजाये जाते हैं, देवी की प्रतिमाएं स्थापित की जाती हैं. इस साल 15 अक्बतूर से नवरात्र प्रारंभ होगी. पूजा – पाठ के तो वैदिक विधि -विधान हैं ही, आदिशक्ति मां दुर्गा की प्रतिमा के निर्माण के भी मान्यताओं एवं परम्पराओं पर आधारित कुछ विशेष विधान हैं. वैसे तो और कई बातों पर ध्यान दिया जाता है, पर चार चीजों को बहुत जरूरी माना गया है – गंगा की मिट्टी, गोमूत्र, गोबर और वेश्यालय (Brothel) के आंगन की मिट्टी. मूर्ति निर्माण में इन वस्तुओं के इस्तेमाल की परंपरा (Legacy) सदियों से चली आ रही है.
कथा कुष्ठरोगी की
गंगा की मिट्टी, गोमूत्र और गोबर के महत्व को लोग जानते-समझते हैं. पर, यह बहुत कम ही लोगों को मालूम होगा कि जब सनातन – संस्कृति में वेश्यावृत्ति (Prostitution) को अधार्मिक माना जाता है और देह व्यापार करने वालियों को घृणा की नजर से देखा जाता है, तो फिर इस पवित्र अनुष्ठान में उनके आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल क्यों किया जाता है? इस क्यों से जुड़ी अनेक धारणाएं, मान्यताएं एवं कथाएं हैं. इससे संबंधित एक पौराणिक कथा (Mythology) में वर्णित है कि एक बार कुछ वेश्याएं गंगा स्नान के लिए जा रही थीं. उसी क्रम में घाट पर एक कुष्ठ रोगी (Leper Patient) बैठा दिखा. वह लोगों से गंगा स्नान करवाने के लिए कह रहा था. लेकिन, आते- जाते लोगों में किसी ने भी उसकी गुहार (Petition) नहीं सुनी. तब वेश्याओं ने ही उस कुष्ठ रोगी को गंगा स्नान करवा दिया.
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भगवान शिव का वरदान
वर्णित कथा के मुताबिक वह कुष्ठ रोगी और कोई नहीं बल्कि भगवान शिव (Lord Shiva) थे. शिवजी वेश्याओं की इस मानवीयता से प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा. तब वेश्याओं ने कहा कि दुर्गा पूजा के लिए प्रतिमा का निर्माण उनके आंगन की मिट्टी से ही हो. बिना इस मिट्टी (Soil) के उपयोग के प्रतिमा नहीं बने. भगवान शिव ने उन्हें ऐसा ही वरदान दिया. तब से लेकर यह परंपरा चली आ रही है. एक कथा यह है कि एक वेश्या, देवी दुर्गा की बहुत बड़ी उपासक थी. पर, वेश्या होने के कारण समाज में उसे सम्मान नहीं मिलता था. तरह-तरह की यातनाएं सहनी पड़ती थी. मान्यता है कि अपनी भक्त को इसी तिरस्कार (Disdain) से बचाने के लिए मां दुर्गा ने उसके आंगन की मिट्टी से बनी अपनी मूर्ति स्थापित करवायी. बताया जाता है कि शारदा तिलकम, महामंत्र महार्णव, मंत्रमहोदधि आदि ग्रंथों में इसकी चर्चा है.
कई कथाओं में है वर्णन
इससे संबंधित दूसरी कथा में कहा गया है कि उस कालखंड में मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए मंदिर के पंडित-पुजारी वेश्याओं से उनके आंगन की मिट्टी मांगकर लाते थे और तब मूर्ति बनायी जाती थी. धीरे-धीरे यह एक परिपाटी बन गयी. एक मान्यता यह भी है कि जब कोई व्यक्ति वेश्यालय जाता है तब वह अपने पुण्य कर्म और पवित्रता को उसके द्वार पर ही छोड़कर भीतर जाता है. इसलिए वेश्याओं के आंगन की मिट्टी को पवित्र माना जाता है. इसी समझ के तहत मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए वेश्याओं के आंगन से मिट्टी लायी जाती है. यह सबसे प्रचलित और लोकप्रिय मान्यता है. कुछ लोग इसे समाज सुधार (Social Reforms) के प्रयास के रूप में भी देखते हैं.
(यह आस्था और विश्वास की बात है. मानना और न मानना आप पर निर्भर है.)
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