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विभूतिपुरः मुखिया पद की होड़ में बन गये दुखिया!

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विभूतिपुर के पूर्व विधायक रामबालक सिंह से संबंधित खोजपूर्ण आलेख की यह दूसरी कड़ी है:


प्रवीण कुमार सिन्हा
26 अप्रैल, 2023

SAMASTIPUR : पूर्व विधायक रामबालक सिंह सिंघिया बुजुर्ग दक्षिण पंचायत के शिवनाथपुर गांव के हैं तो सुरेन्द्र प्रसाद सिंह (Surendra Prasad Singh) उसी पंचायत के वीरसहिया गांव के थे. रामबालक सिंह के भाई लालबाबू सिंह (Lalbabu Singh) प्राथमिक विद्यालय नवटोल डरिया के प्रधानाध्यापक हैं. पूर्व विधायक की दबंगता में इनका भी नाम जुड़ते रहता है. हत्या के प्रयास और आर्म्स एक्ट के जिस मामले में रामबालक सिंह (Rambalak Singh) को सजा मिली है उसमें यह भी समान रूप से दंडित हुए हैं. बिहार (Bihar) में कैसे-कैसे लोग शिक्षक (Teacher) बन गये हैं उसकी यह एक बानगी है. रामबालक सिंह अपनी तीन पुत्रियों में सबसे छोटी नव्या सिंह (Navya Singh) को मुखिया पद के उपचुनाव में उम्मीदवार बनाना चाहते थे.

पहले थे माकपा में
रामबालक सिंह पहले माकपा नेता पूर्व विधायक स्वर्गीय रामदेव वर्मा (Ramdeo Verma) के करीबी थे. उनके राजनीतिक जीवन की शुरूआत 2001 में इसी सिंघिया बुजुर्ग दक्षिण पंचायत के मुखिया (Mukhiya) पद से हुई थी. 2006 में भी उनकी जीत हुई थी. उसी दौरान विधायक बनने की महत्वाकांक्षा जगी और लोजपा (LJP) से जुड़ गये. फरवरी 2005 में विभूतिपुर (Vibhutipur) विधानसभा क्षेत्र से लोजपा की उम्मीदवारी मिल गयी, जीत नहीं पाये. अक्तूबर 2005 में भी लोजपा ने उन्हीं पर दांव खेला. उसमें भी हार का मुंह देखना पड़ा. उन दोनो चुनावों में माकपा उम्मीदवार रामदेव वर्मा की जीत हुई. लोजपा में रहते जीत की संभावना नहीं देख रामबालक सिंह 2009 में जदयू (JDU) से जुड़ गये. 2010 में उस पार्टी की उम्मीदवारी मिली और विभूतिपुर में वामपंथ के मजबूत खूंटे को उखाड़ विधानसभा में पहुंच गये. रामदेव वर्मा को अप्रत्याशित पराजय का सामना करना पड़ गया. 2015 में इसका दोहराव हुआ.

माकपा की वापसी
क्षेत्र की चुनावी राजनीति की गहन जानकारी रखने वालों की मानें, तो रामदेव वर्मा की हार का मुख्य कारण नया परिसीमन रहा. 2010 के परिसीमन में विभूतिपुर विधानसभा क्षेत्र की उन 16 पंचायतों को काटकर उजियारपुर (Ujiyarpur) विधानसभा क्षेत्र से जोड़ दिया गया जहां रामदेव वर्मा की मजबूत पकड़ थी. 2020 में जदयू की उम्मीदवारी तो रामबालक सिंह को मिली, लेकिन जीत नहीं मिल पायी. रामदेव वर्मा की जगह माकपा प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे अजय कुमार (Ajay Kumar) ने वैसे ही आसानी से उन्हें चित कर दिया जैसे 2010 में उन्होंने (रामबालक सिंह) रामदेव वर्मा को किया था. अजय कुमार की जीत इस मायने में भी महत्व रखती है कि उम्मीदवारी से वंचित कर दिये जाने के खुन्नस में रामदेव वर्मा माकपा से अलग हो भाकपा-माले से जुड़ गये थे.


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तब मधुर संबंध थे
इलाकाई लोग बताते हैं कि मुखिया से लेकर विधानसभा के चुनावों तक में रामबालक सिंह को सुरेन्द्र प्रसाद सिंह का पूरा सहयोग मिला. ऐसा कहा जाता है कि रामबालक सिंह के विधायक बन जाने के बाद पंचायत चुनाव की राजनीति मुख्य रूप से सुरेन्द्र प्रसाद सिंह करने लगे थे. रामबालक सिंह को कोई एतराज नहीं था. फलस्वरूप 2011 में सुरेन्द्र प्रसाद सिंह सिंघिया बुजुर्ग दक्षिण पंचायत का मुखिया बन गये. उस वक्त दोनों में मधुर संबंध थे. लेकिन, 2016 में जब मुखिया का पद महिला के लिए सुरक्षित हो गया तब संबंधों में खटास भर गयी. उस चुनाव में दोनों परिवारों की सहमति से सुरेन्द्र प्रसाद सिंह की पत्नी ममता देवी (Mamta Devi) उम्मीदवार बनीं. लेकिन, रामबालक सिंह ने बगैर सुरेन्द्र प्रसाद सिंह से बातचीत किये अचानक छोटे भाई लालबाबू सिंह की पत्नी मंजू देवी (Manju Devi) को चुनाव मैदान में उतार दिया. असर इस रूप में हुआ कि ममता देवी और मंजू देवी दोनों हार गयीं. पूर्व विधायक रामबालक सिंह के धुर विरोधी शिवनाथपुर निवासी माकपा नेता ललन सिंह (Lalan Singh) की पत्नी रानी देवी (Rani Devi) मुखिया बन गयीं.

इसी मामले में मिली सजा
ललन सिंह वही व्यक्ति हैं जिन पर 04 मई 2000 को रामबालक सिंह और लालबाबू सिंह ने गांव के ही एक शादी समारोह में गोली चला दी थी. संयोगवश गोली हाथ में लगी और वह बच गये. उसी मामले में रामबालक सिंह और लालबाबू सिंह को समस्तीपुर की अदालत से सजा मिली है. 2021 के मुखिया पद के चुनाव में रामबालक सिंह और सुरेन्द्र प्रसाद सिंह खुलकर आमने-सामने आ गये. मुकाबला रामबालक सिंह की पत्नी आशा रानी (Asha Rani) और सुरेन्द्र प्रसाद सिंह की पत्नी ममता देवी के बीच हुआ. 64 मतों के मामूली अंतर से ममता देवी मात खा गयीं. आरोप उछला कि रामबालक सिंह ने प्रशासन पर दबाव बना परिणाम अपने पक्ष में करा लिया.

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