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बेगूसराय : उस दिन नहीं होता अशोक सम्राट का खात्मा तब…?

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तापमान लाइव ब्यूरो
23 अप्रैल, 2023

BEGUSARAI : उस वक्त राज्य में और कहीं नहीं, बेगूसराय में एके 47 (AK 47) राइफल होने को गुप्तेश्वर पांडेय ने अपनी मूंछ से जोड़ लिया. अपराध की कुछ बड़ी घटनाएं हुईं, अशोक सम्राट (Ashok Samrat) का नाम जुड़ा और असली-नकली कई मुठभेड़ों से दहशत पसार रखी बेगूसराय की पुलिस उसके पीछे पड़ गयी. मध्यस्थता हुई तब बेगूसराय जिला छोड़ देने और एके 47 राइफल पुलिस को समर्पित कर देने पर जान बख्श देने पर बात बन गयी. वर्तमान में दोनों इसे स्वीकार नहीं करेंगे, पर उस खूनी दौर की गहन जानकारी रखने वालों के मुताबिक रतन सिंह (Ratan Singh) और नरेंद्र सिंह उर्फ बोगो सिंह (Narendra Singh urf Bogo Singh) उसी गठजोड़ में थे. बाद में नरेंद्र सिंह उर्फ बोगो सिंह ने अपनी अलग राह बना ली. रतन सिंह का गहरा जुड़ाव अशोक सम्राट से था. टाटा मैक्सी की छत पर रखी एके 47 राइफल बेगूसराय के पुलिस अधीक्षक आवास के समीप मिली. गुप्तेश्वर पांडेय (Gupteshwar Pandey) ने उस समय बताया था कि रतन सिंह से जुड़े लोगों ने ऐसा किया. जो हो, बिहार में एके 47 राइफल की बरामदगी का संभवतः वह पहला मामला था.

मुठभेड़ पुलिस से या पब्लिक से?
एके 47 की बरामदगी के कुछ साल बाद 5 मई 1995 को हाजीपुर (Hajipur) के लक्ष्मणमठ के समीप अशोक सम्राट मुठभेड़ में मारा गया. मुठभेड़ पुलिस (Police) से हुई या पब्लिक से, इसका मुकम्मल खुलासा अभी तक नहीं हो पाया है. वैसे, खदेड़ा-खदेड़ी दोनों की ओर से हो रही थी. शशिभूषण शर्मा (Shashibhushan Sharma) हाजीपुर के इंस्पेक्टर थे. एक कुख्यात सरगना के खात्मे का श्रेय उन्हें ही मिला. इस ‘बहादुरी’ के एवज में पुलिस उपाधीक्षक के रूप में प्रोन्नति भी. कहा जाता है कि मुठभेड़ का स्वरूप जो रहा हो, वह वैशाली (Vaishali) जिले के एक पूर्व बाहुबली सांसद द्वारा रची गयी साजिश थी. अशोक सम्राट की मौत के कुछ साल बाद शशिभूषण शर्मा पर पटना (Patna) में प्राणलेवा हमला हुआ. बमुश्किल जान बच पायी. उस हमले को कुछ लोग अशोक सम्राट की मौत के मामले से भी जोड़कर देख रहे थे.

ठेकेदारी में रंगदारी
अशोक सम्राट से रतन सिंह का जुड़ाव और फिर कथित अलगाव की कहानी भी रोचक है. रतन सिंह के पांव कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही अपराध जगत की ओर बहक गये थे. पढ़ाई-लिखाई के बाद बरौनी रिफाइनरी (Barauni Refinery) के बहुचर्चित 10 नम्बर गेट पर उन्होंने पेट्रोलियम का अपना कारोबार जमा रखा था. इस 10 नम्बर गेट के बारे में आम धारणा थी कि वहां पेट्रोल (Petrol) के गोरखधंधा तो होते ही हैं, अपराधी भी पैदा किये जाते हैं. करीब से जानने वालों के मुताबिक मनबढ़ू रतन सिंह की दबंगता को वहीं मजबूती मिली. बरौनी के अशोक सम्राट का तब अंतर्राज्यीय आतंक था. शोकहारा (बरौनी) में उसकी अजीज दोस्त से जानी दुश्मन बने रामविलास चौधरी उर्फ मुखिया के साथ खूनी जंग छिड़ी थी.1986 में तेघड़ा प्रखंड के दुलारपुर (Dularpur) गांव में रतन सिंह की एक बारात में अशोक सम्राट से मुलाकात हुई. रतन सिंह के मुताबिक रामविलास चौधरी उर्फ मुखिया से लड़ाई में उसने उनसे मदद मांगी और वह उसके साथ हो गये. अशोक सम्राट के साथ मिनी नरेश भी था. दोनों ने मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) में तो कोहराम मचा ही रखा था, 1988 में गोरखपुर (Gorakhpur) में रेलवे की ठेकेदारी पर गणेश शंकर पांडेय (Ganesh Shankar Tiwari) और हरिशंकर तिवारी (Harishankar Tiwari) के वर्चस्व को भी तोड़ दिया था. एक तरह से रेलवे पर गोरखपुर की रंगदारी खत्म कर बिहार की रंगदारी कायम कर दी थी. उसी समय से ठेकेदारी में 10 प्रतिशत की रंगदारी की परंपरा शुरू हो गयी.


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रतन सिंह ने बताया…
लगभग 21 साल पूर्व रतन सिंह (Ratan Singh) ने बिहार की एक बहुचर्चित व बहुप्रतिष्ठित पत्रिका से बातचीत में कहा था कि रंगदारी की वह परंपरा उन्हें रास नहीं आयी और वह अशोक सम्राट के गलत कार्यों का विरोध करने लगे. उससे दूर होने लगे. स्वाभाविक रूप से अशोक सम्राट उनका विरोधी हो गया था. 5 मई 1995 को सोनपुर (Sonpur) में रेलवे की ठेकेदारी के लिए टेंडर (Tender) गिराने के दिन उनकी (रतन सिंह) हत्या की साजिश रच दी गयी थी. संयोगवश वह बच गये. लेकिन, उसी दिन हाजीपुर के समीप अशोक सम्राट मारा गया. रतन सिंह का कहना रहा कि अशोक सम्राट ने उनके साथ जो अवांछित वर्ताव किया उससे उन्हें अपराध और अपराधियों से पूरी तरह घृणा हो गयी और वह राजनीति की ओर मुखातिब हो गये. ठेकेदारी (Contracting) के अपने धंधे को विस्तार देने लगे. पहले ठेकेदारी के धंधे में भी रामलखन सिंह से टकराव होता था. रामलखन सिंह का रीता कंस्ट्रक्शन (Rita Construction) और रतन सिंह का कमला कंस्ट्रक्शन (Kamla Construction) था. अब टकराव की कहीं कोई बात नहीं है. अपराध जगत से भी शायद नाता नहीं रह गया है. (समाप्त)

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