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परंपरा : ‘बिदेसिया’ की ढलान पर ‘सतभैया’ की धूम!

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अश्विनी कुमार आलोक
05 मई, 2023

 PATNA : संस्कृति (Sanskriti) वस्तुतः संस्कारों (Sanskar) का समुच्चय है, सोपानों की सतत यात्रा है और सभ्यता की अधुनातन व्याख्याओं का प्रस्थान बिंदु भी. यह पीढ़ियों का संयोग है. कला इस संस्कृति को अभिन्न आकार देती रही है. संस्कृति में उत्सवों का लालित्य कला की देन है, तो परंपराएं कला का आधार भी हैं और विस्तार भी. सतभैया नाच कला (Satabhaiya Nach Kala) के आदिम प्रभावों और आधुनिक अर्थों के संयोग से जन्मा कोई शीर्षस्थ स्तंभ रहा, जिसे न सिर्फ बिहार के गलियों-गांवों में प्रतिष्ठा मिली, बल्कि पूरे देश के बड़े मंचों पर जाना-सराहा गया. अस्सी-नब्बे के दशक अर्थात दो दशकों से भी ऊपर के समय में सतभैया नाच छाया

  शंभु राम

रहा. जब भिखारी ठाकुर (Bhikhari Thakur)के बिदेसिया नाच (Bideshiya Nach) के बहाने मंचों पर विदूषक अश्लीलता लेकर उतरने लगे थे, तभी बिदेसिया को सामाजिक स्तर पर संभ्रांत कला की मिली हुई पहचान पिछड़ने लगी थी, उन्हीं दिनों ‘सतभैया नाच’ ने सामाजिक स्तर पर बड़ी क्रांति लायी थी.

शालीनता व शिष्टता का समावेश
सतभैया नाच कला के पारंपरिक और शास्त्रीय पक्षों का समवेत स्वर था. इस नाच में सम्मिलित सात भाई दशकों तक कला के क्षेत्र में अपनी चमक कायम रखने में सफल रहे. इस चमक के पीछे किसी मर्यादा का योगदान रहा. स्वयं गीत बनाकर नृत्य-संगीत के मौलिक प्रयोगों की प्रस्तुति देनेवाले


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सतभैया के सातो भाई आकाश के सप्तर्षि की तरह इसलिए चमके कि इन्होंने अपने गीत-नृत्य में शालीनता और शिष्टता का समावेश किया. तभी समाज के बड़े और प्रतिष्ठित परिवारों ने इनकी कला को सराहा और हर प्रकार से मान-सम्मान दिया. यह वह वक्त था जब समाज में जातीय आधार पर छुआछूत की प्रथा कठिन स्वरूप में थी, सवर्ण और अवर्ण का वर्ग विभेद था. सरकारी सुविधाएं भी अवर्णों तक कम पहुंच रही थीं. सतभैया के कलाकार समाज में कथित निम्न कुल से आते थे. लेकिन, इनकी कला के कारण ऊंचे कुलों ने भी इन्हें सम्मान दिया, धन दिया.

सात भाइयों का नृत्य-संगीत दल
‘सतभैया’ सात सगे भाइयों का नृत्य-संगीत दल था, जिसमें एक-एक भाई की अहमियत अपनी-अपनी थी. बड़े भाई रामाशीष राम हारमोनियम बजाते थे. अर्थात ‘मास्टर’ थे, दूसरे भाई विलास राम तबला बजाते थे. रामप्रीत राम, त्रिवेणी राम, गणेश राम, महेश राम और शंभु राम गाने और नृत्य करने के

   महेश राम और रामप्रीत राम.

लिए पहचाने गये. इन सातों भाइयों को कला विरासत में मिली थी. पिता नथुनी राम (Nathuni Ram) ने सिखाया और मंच पर प्रस्तुति कराकर जीविका का माध्यम बनाया. पिता ने कला की बारीकियां स्वयं अपने पूर्वज से सीखी थी. नथुनी राम के पिता जयगोविंद दास (Jay Govinda Ram) अंगरेजी शासन काल में जमींदारों के दरबारों में गाते-बजाते थे. वह सारंगी के उस्ताद कलाकार थे. जयगोविंद दास के पुत्र नथुनी राम ने गाना-बजाना अपने पिता से सीखा और अपने सात बच्चों में वह कला हस्तांतरित कर दी. इस प्रकार सतभैया छा गया. सतभैया के दो भाई अब नहीं हैं. शेष पांच भाइयों ने नाच पार्टी खत्म कर दी.

इस कारण बिखर गयी नाच पार्टी
1968 से लोककला के क्षेत्र में धूम मचानेवाली सतभैया नाच पार्टी नब्बे के दशक तक नाचती-गाती रही. उसके बाद टूट गयी. टूटने का एक कारण यह भी हुआ कि त्रिवेणी राम, गणेश राम और महेश राम को सरकारी नौकरी मिल गयी. सबसे छोटे शंभु राम आकाशवाणी केंद्र, पटना (Akashvani, Patna) में लोकसंगीत विभाग के प्रोड्यूसर होते-होते रह गये. शंभु राम का आरोप है कि परीक्षा पास करने के बावजूद वह इसलिए उस नौकरी में नहीं जा सके, क्योंकि वह सवर्ण नहीं थे. ‘सतभैया पार्टी’ भले टूट गयी, लेकिन पार्टी के दो भाइयों शंभु-महेश के गायन ने अपना जलवा बरकरार रखा. उनके गीत ने रेडियो पर धूम मचा दी –
बनौले हरि बाना
बनौले हरि बाना
बनौले हरि बाना
मोहिनी रूप’ बनौले हरि बाना
श्रीवृंदावन के कुंज गलिन में
इक सखिया पहिचाना
उहे गुजरिया हमरा से कहली
नारी न हउए ई हउए मरदाना
बनौले हरि बाना.

शंभु-महेश के गीत ने बना दिया कीर्तिमान
जिन दिनों महेंदर मिसिर के एक गोदना गीत में कृष्ण के लीला-रूपों का वर्णन करने वाला एक गीत गूंज रहा था, उन्हीं दिनों शंभु-महेश के इस गीत ने ऐसी धूम मचायी कि महेंदर मिसिर (Mahendra Misir) के उक्त गोदना गीत का कीर्तिमान टूट गया. शंभु-महेश ने आकाशवाणी के अनेक केंद्रों से बज्जिका और भोजपुरी के दर्जनों गीत गाये. सतभैया नाच पार्टी में लोकगीतों के साथ-साथ फिल्मी गीतों के गायन और नृत्य की उम्दा प्रस्तुतियों ने इन्हें जबरदस्त प्रसिद्धि दिलायी थी, तो शंभु-महेश का गायन दिल्ली, लखनऊ, अगरतला, सिल्चर, शिलांग, कटक आदि में अवस्थित आकाशवाणी केंद्रों से गूंजा. रेडियो और दूरदर्शन की प्रस्तुतियों ने बेहिसाब दौलत और शोहरत दिलायी.

परिवार का हर कोई है कलाकार
शंभु-महेश अपने गायन को लेकर अब भी सक्रिय हैं. पर, उम्र बढ़ चली है,बीमारियों का प्रभाव भी झेलना पड़ रहा है. परिवार में इनकी अगली पीढ़ियों ने भी कला की विरासत संभाल ली है, पर लोकसंगीत (Lok Sangeet) के बदले हुए स्वरूप के कारण सतभैया फिर से खड़ा नहीं हो पा रहा. वैशाली जिले के गोरौल प्रखंड में है सोंधो गांव. सतभैया के जीवित बचे पांच भाई और उनके परिवारों में आपसी समन्वय प्रेरणा पाने योग्य है. अनुसूचित जाति के इस परिवार के पास कुछ खेती-बारी भी है, पर लोककला की जो चमक है वह खेती-बारी से ऊपर यश और धन दिलाने में कामयाब रही है. शंभु राम टॉर्च-रेडियो के मिस्त्री भी हैं, अन्य भाई खेती-बारी में रमे रहते हैं. लेकिन, परिवार का हर कोई कलाकार (Artist) है.

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