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नाम है रूपकुंड और निकलते हैं नरकंकाल!

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तापमान लाइव ब्यूरो
08 अगस्त 2023

Patna : रूपकुंड… कितना सुन्दर और आकर्षक नाम है. पर, यह जानकर हैरानी होगी कि इसका इतिहास बहुत ही विस्मयकारी है. यह हिमालय  (Himalaya) के ग्लेशियरों के पिघलने से उत्तराखंड  (Uttarakhand) के पहाड़ों में बनने वाली छोटी सी झील हैं, जो 16 हजार 499 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. प्राकृतिक छटाएं तो प्रसिद्धि की वजह है ही, यह झील वहां मिलने वाले नरकंकालों के कारण भी काफी चर्चित है. गर्मियों में बर्फ पिघलने के साथ ही नरकंकाल (Hell Skeleton) दिखाई देना आम बात है. यह बागेश्वर  (Bageshwar) से सटे चमोली में बेदनी बुग्याल के निकट है. नरकंकाल मिलते रहने के कारण रूपकुंड झील (Roopkund Lake) को मुर्दा और नरकंकाल का कुंड भी कहा जाता है.

भगवान शिव ने दिया नाम
इस झील का निर्माण और रूपकुंड नाम क्यों और कैसे पड़ा इसकी कथा कुछ यूं है. स्थानीय स्तर पर ऐसी मान्यता है कि इसका निर्माण भगवान शिव (Lord Shiva) ने पार्वती (नंदा) के लिए करवाया है. कहा जाता है कि जब देवी पार्वती मायके से ससुराल हिमालय को जा रही थीं तब उन्हें रास्ते में प्यास लग गयी. भगवान शिव से उन्होंने पानी पीने की इच्छा जाहिर की. भगवान शिव ने उनकी प्यास बुझाने के लिए उसी जगह अपने त्रिशूल से कुंड का निर्माण कर दिया. माता गौरी कुंड से पानी पीती हैं तो पानी में दिखे उनके सुन्दर प्रतिबिम्ब से मोहित शिव जी ने उसका नाम रूपकुंड नाम दे दिया.


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नरकंकाल का रहस्य
रूपकुंड झील में नरकंकाल क्यों मिलते हैं. हर कोई इस रहस्य को जानना चाहेगा. स्थानीय लोगों द्वारा जो जानकारी दी जाती है उसके अनुसार एक बार राजा जसधावल (Raja Jasdhawal) संतान प्राप्ति की कामना लिये नंदा देवी (Nanda Devi) की तीर्थ यात्रा पर निकले. स्थानीय पंडितों ने इतने बड़े तामझाम के साथ देवी दर्शन जाने को मना किया. राजा ने ध्यान नहीं दिया. आशंका के अनुरूप दिखावे वाली यात्रा से देवी नाराज़ हो गयीं. अचानक हुए हमले में सबकी अकाल मृत्यु हो गयी. अवशेषों में वहां कुछ चूड़ियां और गहने मिले जिससे पता चला कि उस समूह में महिलाएं भी थीं. दूसरी किवंदती है कि तिब्बत  (Tibet) में 1841के युद्ध के दौरान सैनिकों का एक समूह इस कठिन रास्ते से गुज़र रहा था. उसी क्रम में भटक गया. वे तमाम सैनिक कभी नहीं मिले.

शोध का है यह निष्कर्ष
एक अन्य शोध में इस स्थान पर पायी जाने वाली हड्डियों पर रोशिनी पड़ी. शोध के अनुसार ट्रेकर्स का एक समूह इस स्थान में हुई भारी ओलावृष्टि में फंस गया. उसमें सभी की दर्दनाक मौत हो गयी. हड्डियों के एक्स – रे और अन्य तरह के प्रयोगों में पाया गया कि हड्डियों में दरारें पड़ी हुई थीं. इससे अनुमान लगाया गया कि कम से कम क्रिकेट की बाल के आकार के ओले रहे होंगे. वहां तकरीबन 35 किलोमीटर के दायरे में कोई गांव नहीं था. सिर छुपाने की भी कोई जगह नहीं थी. शोध के अनुसार यह माना जाता है कि यह घटना 850 ए डी के आसपास की रही होगी.

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