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तेजस्वी हैरान‌ : मुंह मोड़ रहे मुसलमान?

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अविनाश चन्द्र मिश्र
30 अप्रैल  2024

इसे कांग्रेस से ‘बगावत’ कहें या पार्टी नेतृत्व की अंदरूनी सहमति, पूर्णिया (Purnea) से उम्मीदवारी के मुद्दे पर राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव राजद के ‘युवराज’ तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) से भिड़ गये.‌‌‌ राजद के दबाव में कांग्रेस की उम्मीदवारी से वंचित‌ कर दिये जाने से तनिक भी विचलित नहीं हुए. दुने जोश से निर्दलीय मैदान में कूद गये. फिर जो हुआ उससे महागठबंधन, विशेष कर राजद में परिणाम निकलने से पहले मातम छा गया. पप्पू यादव (Pappu Yadav) को जमीन सूंघा देने के लिए तेजस्वी प्रसाद यादव ने अतिपिछड़ा समाज की बीमा भारती को आगे रख जो चक्रव्यूह रचा था उसमें कथित रूप से उनके ही समर्थक सामाजिक समूहों ने पलीता लगा दिया. हद तो यह कि यादव और मुस्लिम समाज ने ‌‌ पप्पू‌ यादव को सिर आंखों पर बिठा लिया. यह जानते – समझते हुए भी कि पप्पू यादव किसी और को नहीं, यादव समाज के ‘सिरमौर’ एवं मुसलमानों के बड़े हितैषी राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) और तेजस्वी प्रसाद यादव को ललकार रहे है.

 

विरक्ति का यह भाव क्यों
इसके मद्देनज़र सवाल उठना स्वाभाविक है कि स्थानीय स्तर पर ही सही, इन दोनों समाज में राजद से विरक्ति का यह भाव क्यों पैदा हो गया? पप्पू यादव की हार से जुड़ी तेजस्वी प्रसाद यादव की प्रतिष्ठा का ख्याल क्यों नहीं रखा? यादवों की बात करें तो पप्पू यादव की सामाजिकता का सम्मोहन तो उनमें है ही, पूर्णिया के मामले में उनका नेतृत्व भी तेजस्वी प्रसाद यादव की तुलना में ज्यादा सक्षम-समर्थ और सशक्त दिखा. यही मुख्य वजह रही कि संपूर्ण ताकत खपाने के बावजूद वह स्वजातीय समाज पर छायी पप्पू यादव की दीवानगी को मिटा नहीं पाये. पूर्णिया (Purnea) में पड़ाव डाले तकरीबन तीन दर्जन विधायकों की ताकत भी किसी काम‌ की नहीं रही. लाख कोशिशें के बावजूद तेजस्वी प्रसाद यादव राजद के गैर यादव उम्मीदवार को यादवों का संपूर्ण समर्थन नहीं दिला‌ पाये. इससे क्या साबित होता है? यही न कि राजद को यादव समाज का समर्थन-समर्पण अखंड नहीं है. यह दल से नहीं, जाति से बंधा है. जहां जाति नहीं वहां दल है. पूर्णिया में ही अतिपिछड़ा वर्ग की बीमा भारती की जगह यादव या मुस्लिम समाज से कोई राजद का उम्मीदवार होता तो पूरा दृश्य बदला- बदला दिखता.


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मौन प्रतिकार भी है यह
पप्पू यादव की जीत या हार, वक़्त के गर्भ में‌ है. पूर्णिया में राजद (RJD) के प्रति मुसलमानों की बेरूखी भी राजनीति के लिए हैरान करने वाली बात रही. अब यह सामाजिकता का असर था या असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम के समर्थन का, मुसलमानों का लगभग मुकम्मल साथ पप्पू यादव को मिलता दिखा. वैसे, विश्लेषकों का मानना है कि यह सब तो है, पर उम्मीदवारी के मामले में मुसलमानों की हकमारी का यह ‘मौन प्रतिकार’ भी है. आम समझ है कि बिहार में मुसलमान राजद के साथ हैं. पर, अब जहां कहीं ‘धर्मनिरपेक्ष विकल्प’ दिख रहा है , समर्थन की दिशा बदल दे रहे हैं. पूर्णिया के बाद ऐसा ही कुछ नजारा सीवान में दिख सकता है जहां‌ पप्पू यादव जैसे हालात में ही मरहूम पूर्व सांसद‌ शहाबुद्दीन की पत्नी हीना शहाब निर्दलीय मैदान में हैं. अंतर सिर्फ‌ इतना है कि पूर्णिया में ‘माय’ का रंग बदल गया था. सीवान में मुट्ठियां सिर्फ मुसलमानों की ही बंधी नजर आ रही हैं. यादव मूल रंग में ही हैं.

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