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बीमा भारती : इधर की न उधर की!

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अशोक कुमार
29 अप्रैल 2024

Purnea :‌ बीमा भारती रूपौली से जदयू की विधायक थीं. जदयू और विधानसभा की सदस्यता त्याग पूर्णिया संसदीय क्षेत्र से राजद (RJD) की उम्मीदवार बन गयीं. जदयू छोड़ने का कोई‌ बड़ा राजनीतिक कारण नहीं था. मान-सम्मान नहीं मिलने का आरोप उछाल वह उससे दूर हो गयीं. वैसे, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का कुछ और कहना रहा. एक चुनावी सभा में उन्होंने कहा कि मंत्री का पद मांग रही थीं, धैर्य रखने को कहा गया तो अनाप‌-शनाप बातें कर राजद में शामिल हो गयीं. क्या था क्या नहीं, यह जदयू (JDU) का आंतरिक मामला है. वैसे, यह कोई छिपी बात नहीं है कि फरवरी 2005 के चुनाव को छोड़ 2000 से रूपौली (Rupauli) से लगातार विधायक निर्वाचित हो रहीं बीमा भारती (Bima Bharti) को सुर्खियों में रहने का शगल है. कभी बाहुबली पति अवधेश मंडल के कारनामों को लेकर चर्चा में रहती हैं तो कभी अपनी राजनीतिक उच्चाकांक्षाओं को लेकर.

मान बैठी हैं ‘अपराजेय’
विश्लेषकों की समझ में सबसे बड़ी बात यह है कि पांच बार विधायक (MLA) निर्वाचित होने के बाद वह खुद को ‘अपराजेय’ मान बैठी हैं. राजनीति हैरान है कि राजद नेतृत्व भी उनके ‘अपराजेय’ के भ्रम में फंस गया. अगर यह निर्दलीय ताल ठोक रहे राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (Pappu Yadav) की राह को निष्कंटक बनाने की सुविचारित रणनीति थी तब तो नहीं, सामान्य स्थिति में इसे ‘राजनीतिक अपरिपक्वता’ ही मानी जायेगी. तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) के संज्ञान में शायद यह बात नहीं आयी या नहीं आने दी गयी कि पूर्णिया संसदीय क्षेत्र में रूपौली से बाहर बीमा भारती की कहीं कोई राजनीतिक (Political) पकड़ नहीं है. मतदान में इसकी स्पस्ट झलक दिखी भी.

कोई बड़ा खेल तो नहीं
विश्लेषकों ने महसूस किया कि बीमा भारती की उम्मीदवारी की वजह से राजद कहीं मुख्य संघर्ष में नहीं दिखा. राजद समर्थक सामाजिक समूहों में तेजस्वी प्रसाद यादव के प्रति नहीं, पप्पू यादव के प्रति दीवानगी दिखी. इससे इस संदेह को मजबूती मिली कि बीमा भारती को सामने रख जदयू की राह रोकने के लिए पर्दे के पीछे कोई बड़ा खेल तो नहीं हुआ. खैर, जो हुआ सो हुआ, बीमा भारती का अब क्या होगा? मतदान का रूख बताता है कि सांसद बनने की उनकी महत्वाकांक्षा को मतदाताओं ने करीब-करीब खारिज कर दिया है.‌ इस बीच विधानसभा की सदस्यता भी चली गयी. नहीं गयी होगी तो चली जायेगी.


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माया मिली न राम
बताया जाता है कि राजद की उम्मीदवारी लेने से पहले उन्होंने सदन की सदस्यता नहीं त्यागी थीं. दलबदल कानून की चपेट में आने से बचने के लिए चुनाव (Election) अभियान के बीच में त्याग पत्र दिया था . त्याग पत्र किस तारीख में दिया यह नहीं मालूम. मंजूर हुआ या नहीं,यह भी नहीं मालूम. बहरहाल, पूर्णिया (Purnea) का परिणाम जो आये, आज न कल रूपौली में विधानसभा का उपचुनाव होना ही है‌. बीमा भारती की मंशा वहां की विरासत जिला पार्षद पुत्री रानी भारती (Rani Bharti) को सौंपने की थी. अब वहां क्या होगा क्या नहीं, यह वक्त के गर्भ में है. फिलहाल यह माना जा सकता है कि बीमा भारती की हालत ‘माया मिली न राम‌’ जैसी हो गयी है. वैसे, गांव- समाज में खूब प्रचलित एक कहावत भी यहां चरितार्थ होती दिख‌ रही है.

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