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सरकार और बलात्कार

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बांके बिहारी साव
26 सितम्बर 2024
हां-जहां सरकार रहते हैं,
वहां-वहां बलात्कार होता है.
बलात्कार और सरकार (rape and government) में अन्योन्याश्रय संबंध है. बलात्कार युगों-युगों से होता आ रहा है. सरकार चूंकि इलाके के ताकतवर लोग होतेे हैं इसलिए बलात्कार एक जायज पुरुष-कर्म है. वैसे भी बलात्कार सरकार (Government) की ताकत का मापदंड है. बहुत से सरकार तो अपनी सरकारें बचाने के लिए अपने यहां की सुंदर लड़कियों का बलात्कार करवाते हैं. आज के वोट युग में यदि कोई सरकार दस-पांच हजार वोटरों का मालिक है और बलात्कार करता है, तो सरकार भी उसे बचाने की पूरी कोशिश करती है. क्योंकि ‘वह नहीं तो सरकार नहीं’.
मामला कहीं का हो, व्यक्ति या राज्य का नाम लेकर हम स्वयं को बदनाम नहीं करना चाहते क्योंकि बलात्कार करने वाले सरकार तो सरकारी संरक्षण में बटन खोलकर घूमते हैं और बलत्कृत सुंदरियों को या तो सुसाइड करना पड़ता है या फिर मुंह छिपाकर जीना पड़ता है. वैसे भी बलत्कृत लड़कियां करें भी क्या? केस लड़ने में और बदनामी है. जीना मुश्किल हो जाता है.

तब अनाज ही काफी था
पहले का बलात्कार एक मजबूर बलात्कार था. वह धीरे-धीरे घरेलू व्यापार (Gharelu Vyapar) में बदल जाता था. तब सरकार की नजर जिस बलात्कार योग्य लड़कियों पर या बहुओं पर पड़ती थी, उसे इज्जत से अपने उपभोग की वस्तु बनाकर रख लेते थे. कमजोर और भूखा पति इसका विरोध भी नहीं कर पाता था. उस वक्त तो दो शाम का अनाज ही काफी था. लेकिन, चिंता की बात यह है कि आज कल अस्सी करोड़ लोगों के फ्री-फूड प्रोग्राम (free-food program) के बावजूद सरकार बलात्कार कर रहे हैं. ऐसा क्यों हो रहा है- यह तो शोध का विषय है.
एक बार एक बड़े बलात्कारकांड के इज्जतदार बलात्कारी बंधु से मैंने पूछा था- ‘भैया…, आपके जैसा इज्जतदार आदमी ऐसा क्यों करता है,’ तो उसने हंसकर जवाब दिया था-‘यह बात तुम नहीं समझोगे बिहारी…! बलात्कार एक ऐसा पुरुष-धर्म है जो यह सिद्ध करता है कि समाज में मर्दानगी जिंदा है.’
‘पकड़ाने पर सजा भी तो भुगतनी पड़ती है.’
‘यह सब कमजोर सरकार के विरुद्ध होता है. मजबूत सरकार इसका इंतजाम पहले से कर लेते हैं.’
‘यानी बलात्कार करने के बाद भी आप शर्मिंदा नहीं हैं?’
‘इसमें शर्मिंदा क्या होना? शर्मिंदा तो वे लड़कियां और औरतें होती हैं जिनका बलात्कार होता है. शर्मिंदा तो उनके परिवार वाले होते हैं. हमारा क्या…?’

खुद शर्मिंदा हो गया
ओह…! ऐसा जवाब सुनकर मैं खुद शर्मिंदा हो गया. वैसे भी शर्मिंदा बलत्कृत को या फिर उसके परिवार को ही होना पड़ता है. लिहाजा हम शर्मिंदा हो गये. शर्मिंदा होना कोई वाजिब काम थोड़े ही है? फिर भी…, आपका शर्मिंदा होना ही आपका धर्म है. शर्मिंदा होना इतना पवित्र कार्य है कि बलात्कारी को सजा होने के बावजूद बलकृत के परिवार को शर्मिंदा होना पड़ता है. क्योंकि इज्जत तो सिफ स्त्रियों के पास होती है. पुरुषों की तो कोई इज्जत होती ही नहीं है. अगर पुरुषों के पास इज्जत होती तो क्या वे निर्लज्ज होकर शान से समाज में घूमते?
हमारे दादा भल्लू साव कहा करते थे-
‘बेटा, पुरुष जन्म से ही दोगला है. पुरुष का जन्म एक्स और वाई क्रोमोसोम के मिलन से होता है. अर्थात इसका बीज ही दोगला होता है. जबकि स्त्रियां एक्स और एक्स क्रोमोसोम के मेल से बनती हैं. जो जन्मजात मजबूत और पवित्र होती हैं.’
‘इसका मतलब तो यह हुआ कि दोगला होने से पुरुष की कोई इज्जत नहीं होती?’
‘होता है बेटा…होता है.’ वैसे पुरुष जो स्त्रियों की इज्जत करते हैं, उनका सम्मान करते हैं और साथ-साथ वे स्त्रियों से प्यार भी करते हैं.’
‘यह प्यार बीच में कहां से टपका ?’
‘प्यार ही तो संसार का रंग-तरंग है बेटा… यह युगों-युगों से होता आ रहा है और होता रहेगा. यह अपवित्र तब होता है, जब इसमें धोखा होता है. ’
‘क्या बलात्कार रोका नहीं जा सकता है?’
‘रोका क्यों नहीं जा सकता है?’
‘तो फिर रोका क्यों नहीं जाता है.’
‘देखो…, इस पर ज्यादा बहस मत करो.’


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डर से चुप्पी लगा गये…
और फिर दादाजी के डर से हम चुप्पी लगा गये. लेकिन, भगवान (God) की मर्जी कुछ अलग थी. एक दूसरे बलात्कारी बंधु से भेंट हो गयी. वह जमानत पर था. हमने पूछा-‘इतना जघन्य बलात्कार करने के पश्चात भी आपको जमानत कैसे मिल गयी?’
‘यह सब वकील (Advocate) और कानून (Law) का सवाल है.’
‘आखिर, आपने ऐसा क्या किया?’
‘बस एक बड़ा वकील और एक मजबूत गवाही की खरीदारी.’
‘एक प्रश्न आपसे और पूछूं?’
‘पूछो …’
‘आखिर, आपने एक सुशील कन्या का बलात्कार किया ही क्यों?’
‘वह बहुत सुंदर थी. नये डिजाइन के सुंदर-सुंदर कपड़े पहनती थी. देखने में वह बहुत आकर्षक लगती थी. इसलिए मेरा मन पिघल गया.’
‘एक बात कहूं…, आपकी बहन भी तो बहुत सुंदर है. बन-ठनकर कालेज जाती है. दिखने में भी आकर्षक है. यदि किसी का मन उस पर भी पिघल गया, तब?’
‘किसकी मजाल…?’
‘भैया … मन और मजाल सिर्फ आपके पास ही तो नहीं है?’
‘जो ऐसा करेगा …, उसकी जान ले लूंगा.’
‘खैर, … सबकुछ समय बतायेगा.’

आंखें लाल हो गयीं उसकी
और कहकर हम उसके सामने से निकल गये. हमारे प्रश्न ने उसकी आंखें लाल कर दी थी. संयोग से एक सप्ताह बाद ही उसकी सुंदर बहन का अपहरण हो गया. तीन दिनों बाद बलात्कारियों ने उसकी इज्जत उतारकर उसे इज्जत से उसके गांव में छोड़ दिया. बहन जब घर पहुंची तो हमारे बलात्कारी बंधु ने उसे दरवाजे पर रोककर कहा-
‘अब इस घर में तुम्हारे लिये जगह नहीं है.’
‘क्यों भैया…? तुमने बलात्कार किया तो तुम्हारे लिए इस घर में जगह सुरक्षित थी. फिर मेरा बलात्कार होने के बाद मेरी जगह मेरे ही घर में सुरक्षित क्यों नहीं है?’
‘क्योंकि तुम्हारी इज्जत लुट चुकी है.’
‘मेरी इज्जत लुट चुकी है, तो फिर आपकी इज्जत कैसे बची रह गयी?’
‘इसलिए कि तुम एक लड़की हो.’
‘इसका मतलब यही हुआ कि तुम मर्दों की कोई इज्जत नहीं है?’
इस पर उसका बलात्कारी भाई (Brother) चुप लगा गया, तो उसकी बहन ने कड़े स्वर में कहा-
‘हिम्मत है तो थाने चलो…, नहीं तो मैं अकेली ही जाऊंगी.’
और फिर बहन (Sister) थाने गयी, अपनी बूढ़ी मां के साथ. भाई थाने में जाकर क्या बोलता?
रास्ते में लड़की (Girl) ने मां से पूछा-‘मां… आखिर भाई ऐसा क्यों निकला?’
‘क्या बताऊं बेटी… बताते हुए शर्म महसूस होती है. सच तो यह है कि वह मेरी नाजायज संबंधों वाली संतान है.’
आगे लड़की ने कुछ नहीं पूछा.

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