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बिहार में उच्च शिक्षा : सड़ांध भरी है संपूर्ण व्यवस्था में!

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विजय शंकर पांडेय
03 अक्टूबर 2024

Patna : कुलाधिपति पद पर राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर (Rajendra Vishwanath Arlekar) के आसीन होने के बाद उच्च शिक्षा में पवित्रता की जो उम्मीद जगी थी वह निर्मूल साबित होती दिख रही है. उच्च शिक्षा से जुड़े लोग महसूस करते हैं कि उनके पदभार ग्रहण करने के लगभग डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी किसी भी स्तर पर कोई खास बदलाव परिलक्षित नहीं हो रहा है. बल्कि संपूर्ण व्यवस्था में पूर्व की तरह ही सड़ांध भरी हुई ही नजर आती है. उदाहरण देखिये, आरटीआई कार्यकर्ता डा. रोहित कुमार और पूर्णिया जिला राजद के प्रवक्ता आलोक राज (Alok Raj) ने कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में वित्त संवर्धन शास्त्री कालेज में राज्य सरकार एवं कुलाधिपति कार्यालय की बिना अनुमति, की गयी नियुक्ति के खिलाफ विश्वविद्यालय से लेकर राज्य सरकार एवं कुलाधिपति कार्यालय तक को दर्जनों बार लिखा. लेकिन, आज तक उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. डा. रोहित कुमार के मुताबिक भ्रष्टाचारी (Corrupt) सर उठा कर इसलिए चल रहे हैं कि राज्य सरकार और कुलाधिपति कार्यालय द्वारा उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है. इसकी एक बानगी देखिये. बात थोड़ी पुरानी है. पर, प्रसंगवश उसकी चर्चा की जा रही है.

रंगे हाथों पकड़ा था…
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय (Kameshwar Singh Darbhanga Sanskrit University) के तत्कालीन प्रति कुलपति प्रोॉ सिद्धार्थ शंकर सिंह ने सीवान स्थित महर्षि दयानंद आयुर्वेदिक महाविद्यालय एवं अस्पताल में कथित तौर पर बिना नीट परीक्षा के 29 छात्रों का नामांकन लेने की बात कही थी. दरभंगा (Darbhanga) स्थित रामेश्वर लता संस्कृत महाविद्यालय में आयोजित परीक्षा में उसी आयुर्वेदिक महाविद्यालय (Ayurvedic College) के दर्जनों विद्यार्थियों को कदाचार करते रंगे हाथों पकड़ा था. परंतु, उन छात्रों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं हुई. प्रति कुलपति ने कुलाधिपति कार्यालय को भी लिखा. कोई असर नहीं हुआ. हालांकि, इधर एक वर्ष से राज्य सरकार ने उच्च शिक्षा पर ध्यान देना शुरू किया है. ऐसा कहा जाता है कि राज्य सरकार उच्च शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का प्रयास तो करती है, पर कुलाधिपति कार्यालय के हस्तक्षेप (Interference) के कारण वैसा संभव नहीं हो पा रहा है.

इससे बदतर और क्या होगा?
वर्तमान में बिहार (Bihar) की उच्च शिक्षा का हाल यह है कि कुछ अपवादों को छोड़ अधिकतर विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में नैक निरीक्षण कराने के लिए आधारभूत संरचनाओं का घोर अभाव है. मसलन, प्रयोगशाला, पुस्तकालय, वर्ग कक्षाओं और छात्रावास तो नहीं ही हैं, शिक्षकों की भी भारी कमी है. शोध कार्य, सेमिनार आदि आयोजित करने की समुचित व्यवस्था नहीं है. कहते हैं कि हाल फिलहाल जो भी नैक निरीक्षण हुए उनमें 95 प्रतिशत मामलों में ‘बोरो प्लेयर’ के तौर पर दूसरे महाविद्यालयों से शिक्षकों एवं शिक्षकेतरकर्मियों की व्यवस्था की गयी. वैसे ही महाविद्यालयों से फर्नीचर, प्रयोगशाला और पुस्तकालय की सामग्री ला खानापूर्ति की गयी. इसके बाद भी अस्सी प्रतिशत महाविद्यालयों को नैक ग्रेडेशन नहीं मिला है.

उच्च शिक्षा पर सिर्फ ऊंची-ऊंची बातें
यहां सवाल उठना स्वाभाविक है कि जहां शोध कार्य शिथिल हो, क्लास नियमित नहीं हो, एकेडमिक कैलेंडर के अनुरूप समय पर परीक्षा और परीक्षाफल का प्रकाशन नहीं हो, वहां उच्च शिक्षा पर ऊंची -ऊंची बातें छात्रों के साथ मजाक नहीं तो और क्या है? उच्च शिक्षा (Higher Education) के मामले में इस राज्य का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) के ओवरऑल रैकिंग में बिहार के एक भी विश्वविद्यालय या महाविद्यालय का नाम नहीं है. तीन विश्वविद्यालयों-तिलकामांझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, पटना विश्वविद्यालय, पटना तथा भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा ने रैकिंग के लिए आवेदन दिया था. इनमें सिर्फ पटना विश्वविद्यालय (Patna University) को ही राज्य विश्वविद्यालय श्रेणी में 51 से ऊपर स्थान मिला.


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बदहाली की वजह से…
कृषि श्रेणी में बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर को 36वां स्थान प्राप्त हुआ. केन्द्रीय श्रेणी (Central Range) में आईआईटी पटना, एनआईटी पटना एवं एम्स, पटना के अलावा राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा को 29 वां स्थान प्राप्त हुआ. इसी तरह राज्य के 151 महाविद्यालयों ने रैकिंग के लिए आवेदन दिया था. उनमें से सिर्फ पटना वीमेंस कालेज को ही रैकिंग प्राप्त हो सकी. इस आधार पर इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि बिहार में उच्च शिक्षा की स्थिति क्या है. इस बदहाली की वजह से ही राज्य के हजारों छात्र बेहतर उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए देश के दूसरे राज्यों में जाने को विवश हैं. मुख्य रूप से बिहार के छात्रों से ही प्राप्त धन से उन राज्यों के शैक्षिक संस्थान (Educational Institute) फल-फूल रहे हैं.

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